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राष्ट्रीय पोषण माह अभियान से बदली लीला निषाद की जिंदगी, स्वास्थ्य, जागरूकता और आत्मविश्वास की प्रेरणादायी कहानी

द न्यूज़ इंडिया समाचार सेवा

बेमेतरा : ग्राम देवरी, परियोजना बेरला, जिला बेमेतरा की रहने वाली लीला निषाद आज अपने गाँव की अन्य महिलाओं के लिए एक प्रेरणा बन चुकी हैं। कभी कुपोषण और एनीमिया से जूझने वाली लीला अब स्वस्थ जीवनशैली और संतुलित आहार की मिसाल हैं और इसका श्रेय वह राष्ट्रीय पोषण माह अभियान को देती हैं, जिसने उनके जीवन की दिशा ही बदल दी।

शुरुआती जीवन और संघर्ष

लीला निषाद की शादी वर्ष 2016 में ग्राम देवरी निवासी भागीरथी निषाद के साथ हुई थी। परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर थी - पति मजदूरी कर किसी तरह घर चलाते थे। विवाह के एक वर्ष बाद लीला गर्भवती हुईं, लेकिन उचित जानकारी, पोषण और देखभाल के अभाव में उन्होंने अस्वस्थ एवं कुपोषित बच्चे को जन्म दिया। दुर्भाग्यवश, जन्म के कुछ दिनों बाद ही बच्चे की मृत्यु हो गई। इस घटना से लीला मानसिक रूप से टूट गईं और धीरे-धीरे उनका स्वास्थ्य भी गिरने लगा। जांच के दौरान पता चला कि वह एनीमिया से ग्रस्त हो चुकी हैं।

आंगनबाड़ी कार्यकर्ता से मिली नई दिशा

एक दिन उनके गाँव की आंगनबाड़ी कार्यकर्ता श्रीमती अमरौतिन साहू ने उन्हें घर के बाहर बुलाया और कहा कि “आज आंगनबाड़ी केंद्र में राष्ट्रीय पोषण माह के अंतर्गत पोषण मेले का आयोजन किया गया है, जिसमें सभी ग्रामवासी आमंत्रित हैं। पहले तो लीला झिझकीं, लेकिन कार्यकर्ता दीदी के आग्रह पर वे आंगनबाड़ी केंद्र पहुँचीं। वहाँ उन्होंने पहली बार हरी सब्जियों, अनाज, दालों, फलों और स्थानीय पौष्टिक खाद्य पदार्थों की सुंदर प्रदर्शनी देखी।

पोषण मेले में स्वास्थ्य कर्मियों व कार्यकर्ताओं ने समझाया कि गर्भवती महिला के लिए संतुलित आहार कितना आवश्यक है। आयरन, कैल्शियम, फोलिक एसिड व एल्बेन्डाजोल जैसी दवाओं का नियमित सेवन क्यों ज़रूरी है। स्वच्छता, हाथ धोने की आदत और समय पर जांच कराने के लाभ क्या हैं। इस कार्यक्रम से लीला को यह एहसास हुआ कि कुपोषण और बीमारी अज्ञानता से पैदा होती है, और जानकारी ही सबसे बड़ा इलाज है। उन्होंने तय किया कि अब से वह संतुलित आहार और स्वच्छता पर विशेष ध्यान देंगी।

इसके बाद लीला नियमित रूप से आंगनबाड़ी केंद्र आने लगीं। वे पोषण माह की हर गतिविधि जैसे पोषण परामर्श सत्र, हरी सब्जी प्रतियोगिता, पौष्टिक आहार प्रदर्शनी में उत्साहपूर्वक भाग लेने लगीं। धीरे-धीरे उनके व्यवहार, सोच और जीवनशैली में सकारात्मक बदलाव आने लगा। वर्ष 2019 में जब लीला पुनः गर्भवती हुईं, तब वे तीन माह की गर्भवती थीं। लेकिन इस बार वे पहले से तैयार थीं। उन्होंने संतुलित आहार लिया, नियमित टीकाकरण कराया, आयरन व कैल्शियम सप्लीमेंट का सेवन किया, और सबसे महत्वपूर्ण स्वच्छता व स्वास्थ्य को जीवन का हिस्सा बना लिया।

31 मार्च 2020 को लीला ने एक स्वस्थ बालिका को जन्म दिया। बच्ची को गोद में लेते हुए उनकी आँखों में खुशी के आँसू थे। उन्होंने मन ही मन कहा सचमुच राष्ट्रीय पोषण माह ने मुझे नई जिंदगी दी है। यह केवल एक योजना नहीं, बल्कि एक जन आंदोलन है जिसने हमारे गाँव की महिलाओं को स्वस्थ जीवन का मार्ग दिखाया है। आज लीला निषाद न केवल स्वयं स्वस्थ व आत्मनिर्भर हैं, बल्कि वे अन्य महिलाओं को भी पोषण और स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करती हैं। वे हर वर्ष राष्ट्रीय पोषण माह के आयोजन में सक्रिय भागीदारी निभाती हैं और अपने अनुभव साझा करती हैं। उनकी कहानी इस बात का प्रमाण है कि जब सरकार की योजनाएं जनसहभागिता से जुड़ती हैं, तो वे जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाती हैं।

राष्ट्रीय पोषण माह अभियान ने लीला निषाद जैसी कई महिलाओं के जीवन में नई रोशनी लाई है। यह केवल पोषण का पर्व नहीं, बल्कि स्वस्थ भारत की दिशा में सामूहिक संकल्प का प्रतीक बन चुका है।
 

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