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अनिल बेदाग
मुंबई : लीलावती अस्पताल अँण्ड रिसर्च सेंटर ने रोशनी कैटरेक्ट सर्विस के साथ मिलकर वंचित व्यक्तियों के लिए मोफत नेत्र तपासणी और मोतियाबिंद सर्जरी का नया उपक्रम शुरू किया हैं। इस कार्यक्रम का उद्घाटन किशोर मेहता सहित लिलावती अस्पताल के सम्मानित संस्थापकों और स्थायी ट्रस्टियों द्वारा किया गया। इस वक्त चारू मेहता, राजीव मेहता, राजेश मेहता और प्रशांत मेहता उपस्थित थे। इस पहल का मुख्य उद्देश्य नेत्र स्वास्थ्य के बारे में जागरूकता निर्माण करना और जरूरतमंद लोगों को समय रहते वैदयकीय सेवा प्रदान करना है।
भारत में मोतियाबिंद के कारण अंधापन औऱ दृष्टि हानि की समस्या बढ रही हैं। देशभर में लाखों लोगों मोतियाबिंद की समस्या से पिडीत हैं। मोतियाबिंद के कारण दृष्टि धुंधली हो जाती है जो समय के साथ बिगड़ती जाती है। सर्जरी के बिना, मोतियाबिंद से गंभीर दृष्टि हानि होती है। मोतियाबिंद सर्जरी दृष्टि बहाल करने का एकमात्र तरीका है। समय रहते मोतियाबिंद का निदान औऱ इलाज हुआ तो दृष्टीहानी से बचाया जा सकता हैं।मुंबई के प्रतिष्ठित लीलावती अस्पताल अण्ड रिसर्च सेंटर के ट्रस्टी राजीव मेहता ने कहॉं की, ‘‘दृष्टीहानी की समस्या बढती जा रही हैं। समय रहते जरूरतमंदों को वैदयकीय सुविधा उपलब्ध कराने के लिए लीलावती अस्पताल ने रोशनी कैटरेक्ट सर्विस के साथ मिलकर वंचित व्यक्तियों के लिए मोफत नेत्र तपासणी और मोतियाबिंद सर्जरी का नया उपक्रम शुरू किया हैं। आंखो के स्वास्थ्य के बारे में जागरूकता निर्माण करना इस उपक्रम का मुख्य उद्देश हैं। इस कार्यक्रम के माध्यम से, लीलावती अस्पताल यह सुनिश्चित करके समाज को वापस देने की अपनी विरासत को जारी रखता है कि आर्थिक रूप से वंचित लोगों को भी गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाएँ प्राप्त हों।’’लीलावती अस्पताल अण्ड रिसर्च सेंटर के स्थायी ट्रस्टी राजीव मेहता ने कहॉं की, ‘‘मोतियाबिंद का शीघ्र पता लगाने और उपचार के लिए नियमित नेत्र जांच के महत्व के बारे में लोगों को जागरूक कराया गया। कई बार आर्थिक स्थिती अच्छी न होने के कारण व्यक्ती इलाज नही कराते। समय रहते इलाज नही हुआ तो बिमारी गंभीर स्वरूप धारण कर सकती हैं। इसे ध्यान में रखते हुए लीलावती अस्पताल में वंचित लोगों के लिए निःशुल्क नेत्र जाचं और मोतियाबिंद सर्जरी की नई पहल शुरू की हैं। इस कार्यक्रमों का लक्ष्य उच्च गुणवत्ता वाली स्वास्थ्य सेवा प्रदान करना हैं।’’
लीलावती हॉस्पिटल अण्ड रिसर्च सेंटर के सीओओ डॉ. नीरज उत्तमानी ने कहा कि, मोतियाबिंद भारत में एक प्रमुख मुद्दा है, जिससे ७०% अंधापन और ९०% विकृत दृष्टि होती है। भारत में लाखों लोग इससे प्रभावित हैं। इसलिए इसके लिए तुरंत कदम उठाना काफी जरूरी हैं। मोतियाबिंद की दर कम करने के लिए समयपर निदान और इलाज करना चाहिए। मोतियाबिंद का इलाज नही किया जाए तो काफी नुकसान हो सकता हैं। इसलिए सब लोगो को एकसाथ आकर काम करना चाहिए। इस कारण मोतियाबिंद से संबंधित अंधेपन को कम करने और दृष्टि में सुधार करने, प्रभावित लोगों के लिए जीवन की गुणवत्ता बढ़ाने में मदद कर सकता है।
राजीव मेहता कहते हैं कि रोशनी मोतियाबिंद सेवा के तहत हमने लगभग 200 मरीजों की जांच की है, जिनमें से 29 मरीजों की मुफ्त मोतियाबिंद सर्जरी होने वाली है। लोगों को अंधेपन का सामना न करना पड़े इसके लिए लीलावती हॉस्पिटल सदैव प्रयास कर रहा हैं। हमारा उद्देश 500 से अधिक सफल सर्जरी करने का है। - Health News : मानसून आने में अभी बहुत देरी है. लेकिन अप्रैल के महीने में ही गर्मी अपने तीखे तेवर दिखाने लगी है.वहीं, ऐसे में लोग गर्मी से राहत पाने के लिए फ्रिज का ठंडा पानी पीकर अपनी प्यास बुझाने का प्रयास कर रहे हैं. जिससे लोगों को सर्दी-जुकाम से जूझना पड़ रहा है. साइंस के मुताबिक मिट्टी के घड़े का पानी फ्रिज का पानी पीने की अपेक्षा काफी लाभदायक माना जाता है. इसके पानी का सेवन करने से किसी भी तरह का कोई साइड इफेक्ट नहीं होता है.पहले जब फ्रिज नहीं हुआ करते थे, तो घड़ों में ही पानी रखा जाता है.
वहीं, करनाल के मुगल कैनाल में एक व्यक्ति जो पिछले कई सालों से मिट्टी के घड़े व बर्तन बनाकर बेच रहे हैं. घड़े बेचने वाले नवीन कुमार ने लोकल 18 से बात करते हुए कहा कि उनके पास मिट्टी के घड़े, कैंपर, कुल्हड़, मिट्टी के बर्तन व कई प्रकार की वैरायटी हैं. यह काम उनका खानदानी काम है. पहले उनके पिता यह काम किया करते थे. अब वह मिट्टी के बर्तन बेचते हैं. उन्होंने बताया कि बहुत सा सामान वह खुद बनाते हैं. कुछ समान वह अलग-अलग राज्य से भी मंगवाते हैं, जैसे जयपुर, गुजरात व अन्य स्थानों से भी सामान इनके पास आता है.
मिट्टी के बर्तन काफी फायदेमंद
उन्होंने बताया कि अगर मिट्टी के बर्तन का इस्तेमाल किया जाए. वह सेहत के लिए काफी फायदेमंद होता है. अगर मिट्टी के बर्तन में खाना बनाया जाए, तो वह बहुत ही स्वादिष्ट बनता है. साथ ही स्वास्थ्य के लिए भी अच्छा होता है. इनमें आयरन, कैल्शियम, मैग्नीशियम जैसे कई पोषक तत्व मौजूद रहते हैं , साथ ही साथ लोगों से भी अपील की गर्मी का मौसम है, ऐसे में घरों के बाहर पक्षियों के लिए व जानवरों के लिए आप सब लोग मिट्टी के बर्तन जरूर रखें, जिससे पानी भी ठंडा रहता है.(एजेंसी) - अनिल बेदागमुंबई : फोर्टिस हॉस्पिटल मुलुंड ने 100 बोन मैरो ट्रांसप्लांट्स (बीएमटी) सफलतापूर्वक पूरा करके चिकित्सा के इतिहास में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है। यह उपलब्धि खून की बीमारियों के मरीजों की आशा, मजबूती और बदलाव लाने वाली देखभाल का एक शानदार सफर दिखाती है।बोन मैरो ट्रांसप्लांट्स (बीएमटी) भारत में लगातार बढ़ रहे हैं और हर साल लगभग 2500 ट्रांसप्लांट्स किये जा रहे हैं। लेकिन यह देश की असल जरूरत के 10% से भी कम है। इसके कई कारण हैं, जैसे कि उपचार विकल्पों पर जागरूकता का अभाव, सीमित पहुँच, खर्च और सही समय पर रोग-निदान न होना। इन चुनौतियों को दूर करने और उपचार तक पहुँचने की कमियों को ठीक करने के लिये फोर्टिस हॉस्पिटल मुलुंड में इंस्टिट्यूट ऑफ ब्लड डिसऑर्डर्स की स्थापना हुई थी।फोर्टिस हॉस्पिटल मुलुंड में हीमैटोलॉजी, हीमैटो-ओन्कोलॉजी एवं बोन मैरो ट्रांसप्लांट (बीएमटी) के डायरेक्टर डॉ. सुभाप्रकाश सान्याल ने अपनी सक्षम टीम के साथ मिलकर खून की विभिन्न बीमारियों के मरीजों के लिये सफल बोन मैरो ट्रांसप्लांट्स की एक श्रृंखला चलाई। उनकी टीम में हीमैटोलॉजी एवं बीएमटी के कंसल्टेन्ट डॉ. हम्जा दलाल, ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन की असोसिएट कंसल्टेन्ट डॉ. अलीशा केरकर, इंफेक्शियस डिसीजेस की कंसल्टेन्ट डॉ. कीर्ति सबनीस, ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन के हेड डॉ. ललित धानतोले, आदि जैसे विशेषज्ञ थे। उन्होंने खून की जिन बीमारियों के लिये बीएमटी किये, उनमें मल्टीपल मायलोमा, लिम्फोमा, ल्युकेमिया, मीलोडिस्प्लास्टिक सिंड्रोम, मीलोफाइब्रोसिस, एप्लास्टिक एनीमिया, आदि शामिल थीं।फोर्टिस हॉस्पिटल मुलुंड में हीमैटोलॉजी, हीमैटो-ओन्कोलॉजी एवं बोन मैरो ट्रांसप्लांट (बीएमटी) के डायरेक्टर डॉ. सुभाप्रकाश सान्याल ने बताया कि हॉस्पिटल ने सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि केन्या, तंजानिया और बांग्लादेश से आने वाले मरीजों का भी इलाज किया। उन्होंने जोर देकर कहा कि बीएमटी की जरूरत पर जागरूकता की कमी के कारण चुनौती होती है और इस कारण विशेषज्ञों से परामर्श लेने में अक्सर विलंब होता है। खून की बीमारियों पर जागरूकता कार्यक्रमों समेत डॉ. सान्याल की कोशिशों ने उपचार की कमी को दूर करने और खून की बीमारियों के ज्यादा मरीजों तक पहुँचने में योगदान दिया है।बीएमटी की विधियों में हालिया प्रगति से इलाज में काफी बदलाव आया है, परिणामों में सुधार आया है और दुष्प्रभाव कम किये हैं। डॉ. सान्याल ने सीएआर टी-सेल थेरैपी के महत्व पर रोशनी डाली। यह अत्याधुनिक इम्युनोथेरैपी है, जो कैंसर का मुकाबला करने के लिये इम्युन सिस्टम को आनुवांशिक तरीके से रिप्रोग्राम करती है। इस प्रकार एग्रेसिव लिम्फोमा, ल्युकेमिया और मल्टीपल मीलोमा के मरीजों को निजीकृत एवं लक्षित समाधान मिलते हैं।फोर्टिस हॉस्पिटल मुलुंड के फैसिलिटी डायरेक्टर डॉ. विशाल बेरी ने कहा कि ब्लड कैंसर और सही समय पर होने वाले इलाज के महत्व पर जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता है। उन्होंने जोर देकर कहा कि ब्लड कैंसर का जल्दी पता लगने से जीवित रहने की संभावनाएं काफी बढ़ जाती हैं। उन्होंने दोहराया कि उपचार के दूसरे विकल्पों से थक चुके मरीजों को उम्मीद देने में बीएमटी का प्रभाव काफी बदलाव कर सकता है। टी-सेल थेरैपी को मानक उपचार बताते हुए डॉ. बेरी ने एग्रेसिव लिम्फोमाज से मुकाबला करने में चिकित्सा के आधुनिक तरीकों को शामिल करने पर जोर दिया। यह आधुनिक औषधि-विज्ञान में एक महत्वपूर्ण प्रगति है।
- अनिल बेदाग
मुंबई : प्रोस्टेट ग्लैंड एक महत्वपूर्ण अंग है जो पुरुषों में प्रजनन संबंधी समस्याओं और मूत्र प्रणाली को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह ग्लैंड उम्र बढ़ने के साथ बड़ा होता है और कई प्रोस्टेट संबंधी समस्याओं का कारण बन सकता है, जिसमें प्रोस्टेट बढ़ना, प्रोस्टेट कैंसर, और मूत्र निकास की समस्याएं शामिल हैं।
मुंबई के जे जे अस्पताल एवं ग्रांट मेडिकल कॉलेज के प्रोफेसर और इंटरवेंशनल रेडियोलाजिस्ट डॉक्टर शिवराज इंगोले का कहना है कि प्रोस्टेटिक आर्टरी एम्बोलिजेशन एक उत्तरदायी इलाज है जो प्रोस्टेट संबंधी समस्याओं का सामान्यत: सुधार करने के लिए प्रयोग किया जाता है। प्रोस्टेटिक आर्टरी एम्बोलिजेशन एक माध्यमिक तकनीक है जिसमें प्रोस्टेट ग्लैंड के लिए जानी जाने वाली प्रोस्टेटिक धमनियों को बंद किया जाता है। यह तकनीक अंतर्निहित धमनियों को बंद करके प्रोस्टेट की आवृत्ति को कम करने के लिए उपयुक्त है। इसका उपयोग बड़े प्रोस्टेट या प्रोस्टेटिक संबंधी लक्षणों के साथ-साथ निकास की समस्याओं को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है।मुंबई : नासिक का रहने वाला 14 साल का लड़का,जिसका पिता किसान है। जन्म के बाद से हाल ही में 2 वर्षों से पीठ में कूबड़ दिखाई दे रहा था। कुछ महीनों से पहले वह चंचल था, जब उसे कमजोरी और लकवा होने लगा, पिछले कुछ सप्ताह में उसके दोनों पैरों में पूरी तरह से लकवा हो गया। दोनों पैरों में सारी संवेदनाएं खत्म हो गईं। उसे पेशाब आना बंद हो गया या चेहरे पर नियंत्रण नहीं रह गया।
माता-पिता नासिक में स्पाइन डॉक्टरों के पास गए, जिन्होंने मुंबई जाने और जेजे अस्पताल में ऑर्थोपेडिक यूनिट के प्रमुख, विशेषज्ञ स्पाइन सर्जन डॉ. धीरज सोनावणे से मिलने का सुझाव दिया। डॉ. धीरज से मिलने पर उन्होंने सीटी स्कैन, एमआरआई और विशेष एक्सरे से माता-पिता को गंभीर काइफोस्कोलियोसिस के साथ न्यूरोफाइब्रोमैटोसिस नामक बीमारी के बारे में परामर्श दिया। इस मरीज़ के सामने कई चुनौतियाँ थीं जैसे रीढ़ की हड्डी का 150 डिग्री का मोड़ जो चट्टान की तरह था, फेफड़ों की ख़राब क्षमता, असामान्य कशेरुकाओं का आपस में चिपक जाना।
बेहतर प्लानिंग के लिए डॉ. धीरज ने पूरी रीढ़ की हड्डी का 3डी प्लास्टिक मॉडल बनाया और सर्जरी करने का फैसला किया। ऑर्थोपेडिक्स के स्पाइन सर्जनों की टीम में डॉ. अजय चंदनवाले (संयुक्त निदेशक डीएमईआर), डॉ. सागर जावले, डॉ. संतोष घोटी, डॉ. कुशल घोइल और मुख्य एनेस्थेटिक डॉ. संतोष गिते शामिल थे।Health News : कड़ाके की सर्दी में हर दूसरा इंसान सर्दी-जुकाम और खांसी से परेशान हैं। इस मौसम में इम्युनिटी बेहद कम हो जाती है जिसकी वजह से लोगों के बीमार पड़ने की संभावना भी ज्यादा होती है। अक्सर लोग इम्युनिटी को स्ट्रॉन्ग बनाने के लिए विटामिन सी का सेवन करने की सलाह देते हैं। विटामिन सी बेशक इम्युनिटी बेहतर करता है, लेकिन एक मिनरल भी ऐसा है जो आपकी परेशानी का समाधान निकाल सकता है। जी हां हम बात कर रहे हैं जिंक की।
जिंक एक ऐसा खास मिनरल है जो सर्दी जुकाम और रेस्पिरेटरी ट्रेक के इंफेक्शन को कंट्रोल करता है। यह शरीर में वायरस को बढ़ने से रोकने में अहम भूमिका निभाता है। बाल पोषण विशेषज्ञ मोना नरूला ने बताया है कि जिंक एक ऐसा मिनरल है जो इम्युनिटी को बढ़ावा देने और संक्रमण से लड़ने में अहम किरदार निभाता है।
एक्सपर्ट के मुताबिक जिंक एक महत्वपूर्ण खनिज है जो विभिन्न प्रकार के पौधों और एनिमल बेस फूड्स में पाया जाता है। यह शरीर के विभिन्न कार्यों जैसे इम्यून सिस्टम को स्ट्रॉन्ग बनाने, घाव भरने और समग्र स्वास्थ्य को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।(एजेंसी)Health News : सुबह की ताजा वायु वर्कशॉप की तरह हमारे बॉडी को रिपेयर करती है। क्या आप जानते हैं हमारी बॉडी को प्रति क्षण, प्राणवायु चला रही है इसलिए सुबह की जो हवा होती है वह हमारी बॉडी के लिए औषधि का कार्य करती है। इसलिए गहरी नींद आती है ताकि हमारी बॉडी विधिवत टूट फूट मरम्मत और सफाई का कार्य कर सके, ताकि हम अगले दिन के लिए पूरी तरह कार्य करने के लिए तैयार हो सके। हमारी बॉडी सुबह ज्यादा रिपेयर करती है और जब गहरी नींद होती है उसी में यह कार्य विधिवत ढंग से हो पता है क्योंकि हमारा दिमाग ऑर्डर देता है हमारा दिमाग शांत होता है इसलिए इस तरह गहरी नींद आती है।
सुबह को ब्रह्म मुहूर्त के नाम से सारी दुनिया जानती है ब्रह्म मुहूर्त अर्थात हमारी जो प्राण शक्ति है हमारे अंदर जो शक्ति है वही यह सब कार्य करती है हमारी बॉडी को रिपेयर करके अगले दिन के लिए तैयार करती है इसीलिए सुबह के समय को ब्रह्म मुहूर्त कहा जाता है और इसीलिए गहरी नींद आती है। आज ऐसी स्थिति हो गई है कि लोग रात्रि 8 के बाद खाना बनाना और खाना खाना शुरू करते हैं इनमें से कोई रात को 10 बजे खाता है कोई 11 या 12 बजे खाता है कितने लोग दो-दो बजे रात को खाते हैं आखिर बॉडी क्या करें ।
जो विधि है खाने की उसमें कहा जाता है कि सुबह 8:00 बजे से लेकर शाम को 6:00 बजे तक डिनर समाप्त हो जाना चाहिए ताकि बॉडी को पूरा खाना डाइजेस्ट करने का समय मिले और टूट-फूट मरम्मत और सफाई का समय मिले ताकि व्यक्ति सुबह 4 बजे ब्रह्म मुहूर्त में स्फूर्ति के साथ जाग जाए और योग ध्यान व्यायाम करें। आप जानते हैं गहरी नींद में हमारी बॉडी टूट फूट मरम्मत करती है यह बॉडी को रिपेयर करती है सुबह की जो वायु होती है वह एक औषधि है।(एजेंसी)द न्यूज़ इंडिया समाचार सेवा
अनिल बेदाग
मुंबई : गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स होल्डर आरके एचआईवी एड्स रिसर्च एंड केयर सेंटर के अध्यक्ष डॉ धर्मेंद्र कुमार और क्रिएटिव आई लिमिटेड के निर्माता निर्देशक धीरज कुमार मुम्बई में फ़िल्म इंडस्ट्री और मीडिया के लिए 28 जनवरी 2024 को डॉक्टर 365 बॉलीवुड महा आरोग्य शिविर का आयोजन करने जा रहे हैं, इस बार इस कैम्प के आयोजन में गणेश आचार्य फाउंडेशन के गणेश आचार्य का भी सहयोग है। इस संदर्भ में मुम्बई में एक प्रेस कांफ्रेंस के द्वारा इसकी घोषणा की गई। इस अवसर पर अतिथि के रूप में निर्देशक ऎक्टर दीपक तिजोरी, बीएन तिवारी, सोमा घोष, हरीश चोकसी, मार्शल आर्ट गुरु चीता याजनेश शेट्टी, अभिनेत्री निहारिका रायजादा, संगीता तिवारी, अविनाश राय सहित कई हस्तियां मौजूद रहीं।Health News : हेल्थ एक्सपटर्स की माने तो गर्मा-गर्म कॉफी एनर्जी देने के साथ-साथ मानसिक स्वास्थ्य को भी ठीक रखने में मदद करती है। रोजाना कॉफी पीने से वजन भी कंट्रोल में रहता है। सिर्फ दूध वाली ही नहीं बल्कि ब्लैक कॉफी भी शरीर को कई तरह के फायदे देती है। एक्सपर्ट्स की मानें तो कॉफी में मौजूद कैफीन मेटाबॉल्जिम को बूस्ट करने में मदद करती है। इसमें मैग्नीजियम, विटामिन-बी3, मैंग्नीज, पोटैशियम, विटामिन-बी, विटामिन-बी5, बी2 मौजूद होता है जो सेहत के लिए बेहद लाभकारी माने जाते हैं।
यदि आप बढ़ते हुए वजन को कंट्रोल में करना चाहते हैं तो ब्लैक कॉफी को अपनी डाइट में शामिल कर सकते हैं। चीनी, क्रीम के बिना ब्लैक कॉफी में कैलोरी काफी कम मात्रा में पाई जाती है। इसके अलावा इसमें मौजूद कैफीन मेटाबॉल्जिम का स्तर बढ़ाने और शरीर में से एक्स्ट्रा फैट कम करने में भी मदद करता है। कॉफी एंटीऑक्सीडेंट्स का भी बहुत अच्छा स्त्रोत मानी जाती है। बिना चीनी की कॉफी पीने से शरीर को दौगुणे फायदे मिलते हैं।
एंटीऑक्सीडेंट्स युक्त होने के कारण यह शरीर को मुक्त कणों के प्रभाव कम करने में मदद करते हैं। इसका सेवन करने से दिल संबंधी बीमारियों, कैंसर और कम उम्र में शरीर के बढ़ते लक्षण कम होते हैं। इसके अलावा यह एंटीऑक्सीडेंट्स कई बीमारियों का जोखिम कम करने में भी मदद करते हैं। यदि आप शरीर को फिट रखने के लिए रोज कसरत करते हैं तो भी आपके लिए बिना मीठा की कॉफी बेहद लाभकारी हो सकती है। इसमें पाया जाने वाला कैफीन एड्रेनालाईन का स्तर बढ़ाकर शारीरिक प्रदर्शन सुधारने में मदद करता है। कैफीन व्यायाम के दौरान ऑक्सीडेशन का स्तर बढ़ाता है जिससे शरीर में मौजूद एक्स्ट्रा एनर्जी और फैट बर्न होता है।
यदि आप रोज साइकिलिंग करते हैं तो इस कॉफी को अपनी डेली डाइट में शामिल कर सकती है।व्यस्त लाइफस्टाइल के चलते कई लोग तनाव से जूझ रहे हैं। बढ़ते तनाव के कारण गुस्सा भी आता है और शरीर भी थका हुआ महसूस करता है। ऐसे में आप बिना चीनी की कॉफी का सेवन कर सकते हैं। यह मूड़ को बेहतर बनाने में मदद करती है। इसमें मौजूद कैफीन दिल में डोपमाइन, सेरोटोनिन और नॉरपेनेफ्रिन का स्तर बढ़ाता है जिससे मूड़ बेहतर होता है। कॉफी की स्मैल भी शरीर को आराम देने में मदद करती है। यह शरीर को जगाने और किसी काम के लिए ध्यान लगाने में मदद करती है।
इसमें पाया जाने वाला कैफीन शरीर को एक्टिव रखने में मदद करता है। कॉफी पीने से शरीर में एक्टिविटी बढ़ती है जिससे पॉजिटिविटी और एकाग्रता में भी सुधार आता है। पुरानी बीमारियों से लड़ने में भी बिना मीठे वाली कॉफी बेहद लाभकारी मानी जाती है। कई शोधों में यह बात साबित हुई है कि नियमित चीनी के बिना कॉफी पीने से टाइप 2 डायबिटीज जैसी कई बीमारियों का खतरा कम होता है।(एजेंसी)
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देशभर में कड़ाके कि ठंड पड़ रही है. हाड कपाने वाली ठंड से खुद को बचाने के लिए लोग तरह-तरह के उपाय अपना रहे हैं. शरीर को अंदर से गर्म रखने और सर्दी से बचने के लिए आप गर्म तासीर वाली ड्रिंक का सेवन कर सकते हैं.
देशभर में कड़ाके कि ठंड पड़ रही है. हाड कपाने वाली ठंड से खुद को बचाने के लिए लोग तरह-तरह के उपाय अपना रहे हैं. कुछ अलाव का सहारा ले रहे हैं, तो कुछ बिस्तर से उठना पसंद नहीं कर रहे हैं. लेकिन आप वर्किंग हैं तो आपको बाहर निकलना ही पड़ेगा. ऐसे में आप अपने आप को हेल्दी रखने के लिए अपनी डाइट में बदलाव कर सकते हैं. शरीर को अंदर से गर्म रखने और सर्दी से बचने के लिए आप गर्म तासीर वाली ड्रिंक का सेवन कर सकते हैं. आज हम आपको अदरक, तुलसी, लौंग और काली मिर्च से बनने वाली ड्रिंक के बारे में बता रहें हैं, जो न केवल आपको ठंड से बचाने बल्कि, सर्दी-जुकाम और खांसी से भी राहत दिलाने में मदद कर सकती है. नीचे देखें पूरी रेसिपी.
इस ड्रिंक में एंटी-ऑक्सीडेंट, पॉलीफैनल, फ्री-रेडिकल्स, बायो-एक्टिव यौगिक और एंटी-इफ्लेमेंट्री गुण पाए जाते हैं, जो शरीर की इम्यूनिटी को बढ़ाने के साथ सेहतमंद भी रखने में मदद कर सकते हैं.
सामग्री:- लौंग, अदरक, इलायची, काली, मिर्च, तुलसी के पत्ते, पानी, दूध, शहद या गुड़
कैसे बनाएं विंटर स्पेशल ड्रिंक:-.इस चाय को बनाने के लिए सबसे पहले आप एक पैन में 2 कप पानी लें..इसके बाद लौंग, अदरक और इलायची, काली मिर्च और तुलसी के कुछ पत्ते इसमें डालें..फिर इसमें एक चम्मच चाय पत्ती डाल दें..अब इसे तब तक उबालें जब तक पानी आधा हो जाए..आप चाहे तो इसमें दूध मिला सकते हैं..इसका फ्लेवर बढ़ाने के लिए आप इसमें शक्कर की जगह गुड़ या शहद का इस्तेमाल कर सकते हैं..आपकी हेल्दी ड्रिंक तैयार है इसे गर्मागरम पीएं.अस्वीकरण:- सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें.द न्यूज़ इंडिया समाचार सेवा
विश्व स्वास्थ्य संगठन के हेल्थ कॉन्फ्रेंस में दंतेवाड़ा की झलककॉन्फ्रेंस में भारत के स्टॉल पर बस्तर की स्वास्थ्य सेवाओं को दर्शाया गयासीमित मानव संसाधन से कैसे बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान की जा रही हैं, इस थीम पर थी प्रदर्शनीकॉन्फ्रेंस में मुख्यमंत्री हाट-बाजार क्लीनिक योजना पर डॉक्यूमेंट्री भी दिखाई गई
दन्तेवाड़ा : छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य सेवाओं की गूंज विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुख्यालय जिनेवा तक पहुंच गई है। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा वहां 6 दिसम्बर और 7 दिसम्बर को ‘ह्यूमन रिसोर्स फॉर हेल्थ ( Human Resource for Health) विषय पर आयोजित दो दिवसीय वैश्विक सम्मेलन ( International Conference) में भारत के स्टॉल ( Indian Corner) पर बस्तर की स्वास्थ्य सेवाओं को प्रदर्शित किया गया था। छत्तीसगढ़ में दूरस्थ अंचलों में किस तरह से स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराई जा रही हैं, इसे वहां दर्शाया गया था। कॉन्फ्रेंस में विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा मुख्यमंत्री हाट-बाजार क्लीनिक योजना पर निर्मित डॉक्यूमेंट्री भी दिखाई गई। छत्तीसगढ़ की स्वास्थ्य सेवाओं को वैश्विक सम्मेलन में देश का प्रतिनिधित्व करने का गौरव मिला है।
जिनेवा में आयोजित अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में भारत के स्टॉल में सीमित मानव संसाधन से बस्तर में किस तरह से बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान की जा रही हैं, इसे दर्शाया गया था। स्टॉल पर बस्तर में स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान कर रही स्वास्थ्य कार्यकर्ता और अधिकारी को खास स्थान दिया गया। दंतेवाड़ा जिले की तुड़पारास हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर की सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारी सुश्री अंजू खरे एवं चितालंका की मितानिन श्रीमती शांति सेठिया का वहां आदमकद कटआउट लगाया गया था। सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व डॉ. रोडरिको ऑफ्रिन ने किया।विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा पूर्व में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री हाट-बाजार क्लीनिक योजना की सराहना विश्व स्तर पर की गई है। डब्ल्यूएचओ ने वनांचलों और दूरस्थ अंचलों के गांवों में लोगों तक स्वास्थ्य सुविधा पहुंचाने में कारगर छत्तीसगढ़ सरकार की इस योजना पर डॉक्यूमेंट्री फिल्म भी तैयार की है। हाल ही में मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल के निवास कार्यालय में स्वास्थ्य मंत्री श्री टी.एस. सिंहदेव की मौजूदगी में इस डॉक्यूमेंट्री को रिलीज किया गया। इस फिल्म का प्रदर्शन भी जिनेवा में आयोजित वैश्विक सम्मेलन में किया गया।द न्यूज़ इंडिया समाचार सेवा
गर्भवती महिलाओं को पूरक पोषण आहार प्रदान करने की दर 99.14 प्रतिशत
सुकमा : नीति आयोग द्वारा अक्टूबर माह में जारी आकांक्षी जिलों की डेल्टा रैंकिंग में सुकमा जिले ने देश में प्रथम स्थान हासिल किया है। आकांक्षी जिला सुकमा को अक्टूबर माह के लिए स्वास्थ्य और पोषण के क्षेत्र में देश में प्रथम रैंक मिला है। लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी एवं ग्रामोद्योग तथा सुकमा जिले के प्रभारी मंत्री गुरू रूद्रकुमार ने इस बेहतर प्रदर्शन के लिए जिला प्रशासन की टीम को बधाई और शुभकामनाएं देते हुए कहा है कि मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल के नेतृत्व में सभी आकांक्षी जिले लगातार अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं।
गौरतलब है कि प्रशासन एवं स्वास्थ्य विभाग द्वारा किए जा रहे लगातार प्रयासों से निश्चित ही जिले में स्वास्थ्य एवं पोषण संबंधी मापदण्डों में स्थिति बेहतर हुई है। जिले में गर्भवती महिलाओं की एएनसी रजिस्ट्रेशन में 4 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। वहीं संस्थागत प्रसव में जिले में 4 प्रतिशत की बढ़ोतरी की है, वर्तमान स्थिति में 90 प्रतिशत संस्थागत प्रसव किए जा रहे हैं।उल्लेखनीय है कि महिला एवं बाल विकास विभाग अन्तर्गत जिले के आंगनबाड़ियों में गर्भवती एवं शिशुवती महिलाओं को पूरक पोषण आहार प्रदान करने की दर 99.14 प्रतिशत है। इसी तरह जिले में टीबी के मरीजों की पहचान में सात प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है, वहीं टीबी मरीजों के सफल इलाज में 12 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
अक्टूबर माह के ओवरऑल रेंक में मिला तीसरा स्थान
जिला प्रशासन द्वारा जिले में स्वास्थ्य, पोषण, शिक्षा, कृषि, मूलभूत सुविधाओं के विकास, कौशल विकास, जल संसाधन के क्षेत्र में बेहतर कार्य किया गया है। जिसके परिणाम स्वरूप नीति आयोग द्वारा जारी आंकड़ों के आधार पर अक्टूबर माह के ओवरऑल रेंक में सुकमा जिला को तीसरा स्थान मिला है, जो कि जिले में स्वास्थ्य, पोषण, शिक्षा के साथ ही अन्य क्षेत्रों में भी किए जा रहे बेहतर प्रदर्शन को दर्शाता है और सुकमा जिलेवासी इससे लाभांवित हो रहे हैं।-अनिल बेदाग-
इनट्यूटिव ने देश में उल्लेखनीय रूप से 100 सर्जिकल सिस्टम्स लगाए
मुंबई : नवंबर 2022: मिनिमली इनवेसिव केयर में वैश्विक प्रौद्योगिकी और रोबोट-असिस्टेड सर्जरी में अग्रणी, इंट्यूटिव ने देश के सबसे बड़े कार्डियक सेंटर यूएन मेहता इंस्टीट्यूट ऑफ कार्डियोलॉजी में भारत में अपना सौवां रोबोट-असिस्टेड सर्जिकल सिस्टम स्थापित किया है। इस अति महत्वपूर्ण अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में भारत के माननीय प्रधानमंत्री, श्री नरेंद्र मोदी जी की गरिमामय उपस्थिति रही।इंट्यूटिव इंडिया के वाइस प्रेसिडेंट और महाप्रबंधक, मनदीप सिंह कुमार ने कहा, "हम भारतीय सर्जनों और उनकी देखभाल टीमों को रोगी से जुड़े बेहतर परिणाम हासिल करने, रोगी एवं देखभाल टीम को बेहतर अनुभव प्रदान करने और इलाज की कुल लागत को कम करने में मदद करने के लिए प्रयास करते हैं।"श्री कुमार ने आगे कहा, “हम रोबोटिक-सहाय्यित सर्जरी सहित न्यूनतम इन्वेसिव देखभाल के प्रति अस्पतालों की वचनबद्धता से उत्साहित हैं। इनट्यूटिव के लिए भारत भर के अस्पतालों को इनट्यूटिव पारिस्थितिकी तंत्र - जिसमें प्रौद्योगिकी प्रशिक्षण, विशिष्ट ग्राहक सहायता एवं सेवा शामिल है - के माध्यम से अपने रोबोटिक्स प्रोग्राम्स को स्थापित करने और विकसित करने में मदद करना सम्मान की बात है। और, शहरी और अधिकाधिक ग्रामीण स्थानों में उन्नत सर्जिकल तकनीक को अपनाया जाना इनट्यूटिव के लिए बेहद खुशी की बात है।"इंट्यूएटिव के दा विंची शी (da Vinci Xi) सिस्टम के इंस्टॉलेशन पर टिप्पणी करते हुए, डॉ. चिराग दोशी, प्रमुख, कार्डियोवास्कुलर और थोरैसिक सर्जरी, यू.एन. मेहता इंस्टीट्यूट ऑफ कार्डियोलॉजी, ने कहा, “हम बेहतर रोगी परिणाम हासिल करने हेतु हमेशा से उन्नत और किफायती स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने के नए तरीके खोजने में सबसे आगे रहे हैं। इंट्यूएटिव के दा विंची शी सर्जिकल सिस्टम के इंस्टॉलेशन के साथ, हम कार्डियोथोरेसिक सर्जरी के क्षेत्र में अकादमिक अनुसंधान और रेजीडेंसी प्रशिक्षण कार्यक्रमों को संभावित रूप से बढ़ाने और बेहतर रोगी देखभाल एवं अनुभव प्रदान करने की दिशा में अपने प्रयासों को जारी रखने की उम्मीद करते हैं।"इस सबसे हालिया उपलब्धि से पहले, इनट्यूटिव ने शिक्षण, सेवा एवं समाधानों के नवोन्मेषी एवं बढ़ते इकोसिस्टम से समर्थित उन्नत रोबोटिक तकनीक के माध्यम से भारत में न्यूनतम इनवेसिव देखभाल को सुविचारित रूप से आगे बढ़ाया है। देश भर के प्रमुख निजी और सरकारी अस्पतालों, चिकित्सा शिक्षा संस्थानों और राज्य सरकार के मेडिकल कॉलेजों में कई रोबोट प्रोग्राम्स इंस्टॉल्ड हैं। इंट्यूटिव की दा विंची तकनीक पर 800 से अधिक सर्जनों को प्रशिक्षित किया जा चुका है और इसे अपनाने में उल्लेखनीय वृद्धि में वो मदद कर रहे हैं।द न्यूज़ इंडिया समाचार सेवा
रायपुर : लोगों में निमोनिया के प्रति जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से प्रत्येक वर्ष विश्व निमोनिया दिवस 12 नवंबर को मनाया जाता है। विश्व निमोनिया दिवस पहली बार वर्ष 2009 में मनाया गया था। निमोनिया की समस्या छोटे बच्चों में ज्यादा देखने को मिलती है। लेकिन निमोनिया किसी भी उम्र में हो सकता है। निमोनिया फेफड़े का इंफेक्शन हैं। इसमें फेफड़ों में पानी, मवाद भरने से सांस लेने में दिक्कत, या कफ की समस्या होती हैं। समय रहते इसका इलाज जरूरी है नहीं तो यह रोग गंभीर रूप धारण कर लेता है। किन्तु समय रहते इलाज मिल जाने पर यह रोग ठीक हो जाता है।
इस सम्बन्ध में जिला अस्पताल पंडरी के सिविल सर्जन डॉ. पीके गुप्ता ने बताया,’’विश्व निमोनिया दिवस पहली बार 12 नवंबर 2009 को ग्लोबल कोएलिशन अगेंस्ट चाइल्ड न्यूमोनिया (Global Coalition against Child Pneumonia) द्वारा मनाया गया था। तब से हर साल यह दिन एक नई थीम के साथ सेलिब्रेट किया जा रहा है। इस दिन तरह-तरह के कार्यक्रमों का आयोजन कर लोगों को इस बीमारी के बारे में जागरूक करने का प्रयास किया जाता है। निमोनिया सांस से जुड़ी एक गंभीर समस्या है, जिसमें फेफड़ों में इंफेक्शन हो जाता है। निमोनिया होने पर लंग्स में सूजन आ जाती है और कई बार पानी भी भर जाता है। निमोनिया वायरस, बैक्टीरिया और कवक सहित कई संक्रामक वाहकों की वजह से होता है। जिला अस्पताल पंडरी में भी विश्व निमोनिया दिवस पर जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा।“
निमोनिया के लक्षण
आमतौर पर सर्दी, जुकाम से होती है। जब फेफड़ों में संक्रमण तेजी से बढ़ने लगता है, तेज बुखार के साथ सांस लेने में तकलीफ होती है। सीने में दर्द की शिकायत होती है। कम उम्र के बच्चों को बुखार नहीं आता लेकिन खांसी और सांस लेने में परेशानी होती है।
निमोनिया से बचाव
जन्म के बाद टीकाकरण के माध्यम से निमोनिया को रोका जा सकता है। इससे बचाव के लिए शिशुओं बच्चों और वयस्कों को टीके भी लगाए जाते हैं। निमोनिया से बचाव के लिए दूसरे तरीकों में धूम्रपान से दूरी, साफ सफाई रखने, मास्क पहनने, पौष्टिक आहार लेने, व्यायाम, योग के माध्यम से निमोनिया से बचा जा सकता है।द न्यूज़ इंडिया समाचार सेवा
बाहर से आने के बाद आंखों को सीधे न छुएं, हाथ बार-बार धोते रहें
रायपुर : आंख हमारे शरीर का बहुत नाजुक व महत्वपूर्ण अंग है। यह शरीर के अन्य हिस्सों की तुलना में वायु प्रदूषण के प्रति अधिक संवेदनशील होता है। वायु प्रदूषण का आंखों पर दुष्प्रभाव बिना किसी लक्षण से लेकर गंभीर जलन और पुराने दर्द तक हो सकता है। कॉन्टैक्ट लेंस के उपयोग के बावजूद आंखें इन दुष्प्रभावों के प्रति संवेदनशील होती हैं। वायु प्रदूषण फेफड़ों, हृदय और हड्डियों सहित हमारे लगभग सभी अंगों को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है।
लंबे समय तक वायु प्रदूषण के संपर्क में रहने से आंखों का सामान्य स्वास्थ्य और दृष्टि क्षमता भी खराब हो रही है। यदि आंखें नियमित रूप से प्रदूषित वायु के संपर्क में रहती हैं, तो ड्राई आई सिंड्रोम, आंखों में पानी व जलन और धुंधली दृष्टि जैसी समस्याएं भी हो सकती हैं। वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) के खतरनाक रूप से उच्च स्तर पर पहुंचने से यह हमारी आंखों को बहुत ही गंभीर रूप से प्रभावित करता है। यह हमारी आंखों के स्वास्थ्य और इनकी रोशनी या दृष्टि के लिए गंभीर जोखिम पैदा करता है।
*वायु प्रदूषण के संपर्क से आंखें इस तरह से हो सकती हैं प्रभावित*
वायु प्रदूषण से मुख्य रूप से आंखों में लाली और जलन, आंखों से पानी बहना, आंखों में खुजली, डिस्चार्ज, आंखों में सूजन और आंखें खोलने में कठिनाई के साथ एलर्जी, आंखों में सूखेपन का रोग या ड्राई आई डिसीज जैसे लक्षण दिखाई देते हैं। इन लक्षणों में से कोई भी लक्षण दिखाई देने पर तुरंत डॉक्टर से परामर्श लेना चाहिए।
*प्रदूषण से आंखों को बचाना जरूरी*
अंधत्व नियंत्रण कार्यक्रम के राज्य नोडल अधिकारी डॉ. सुभाष मिश्रा ने बताया कि कुछ निवारक क्रियाओं जैसे धूप का चश्मा पहनने और वायुजनित दूषित पदार्थों के साथ आंखों के संपर्क को सीमित करने से आंखों को होने वाले नुकसान से बचाने में मदद मिल सकती है। आई ड्राप आंखों को चिकनाई देने और जलन को दूर रखने में सहायक हो सकते हैं।
डॉ. मिश्रा ने बताया कि आंखों के संक्रमण के जोखिम को कम करने ज्यादा प्रदूषण के दिनों में आंखों की सुरक्षा का विशेष खयाल रखना चाहिए। कोशिश करें कि बाहर से आने के बाद अपनी आंखों को सीधे न छुएं और बार-बार हाथ धोते रहें। किसी भी बीमारी या प्रतिकूल परिस्थिति से लड़ने के लिए फिट रहना बहुत ज़रूरी है। आंखों की अच्छी सेहत के लिए जरूरी पोषक तत्व जैसे विटामिन 'ए', प्रोटीन एवं ओमेगा-3 फैटी एसिड से भरपूर आहार लें। हरी पत्तेदार सब्जियां, पालक, बादाम, जामुन, गाजर और मछली आंखों के लिए काफी फायदेमंद हैं। इनका नियमित रूप से सेवन करना चाहिए।-अनिल बेदाग-
मुंबई : ग्लोबल हेल्थ लिमिटेड ने 52 एंकर निवेशकों को 19,692,584 इक्विटी शेयर आवंटित किए हैं और 336 रुपए प्रति शेयर के ऊपरी मूल्य बैंड पर कंपनी के प्रस्तावित आईपीओ से 661.67 करोड़ रुपए जुटाए हैं। आगे कंपनी आईपीओ के माध्यम से 2,206 करोड़ रुपए जुटाने का इरादा रखती है, जो पिछले पांच महीनों में बाजारों में आने वाला सबसे बड़ा आईपीओ है।
एंकर निवेशकों में सिंगापुर सरकार, मॉनेटिरी अथॉरिटी ऑफ सिंगापुर, और नोर्गेस बैंक जैसे मार्की सॉवरेन फंड्स की भागीदारी देखी गई, जिन्हें एक साथ एंकर बुक आवंटन के 9 प्रतिशत से अधिक के हिस्से का आवंटन किया गया। एंकर बुक में दुनिया भर के बड़े एफआईआई नाम भी देखे गए जैसे - स्टिचिंग डिपॉजिटरी, ओंटारियो टीचर्स पेंशन प्लान बोर्ड, और इन्फिनिटी होल्डिंग्स (नोवो होल्डिंग्स का एक सहयोगी, लाइफ साइंस में विशेषज्ञता वाला एक डेनिश निवेश फंड, जिसने प्री-आईपीओ राउंड में शेयर भी खरीदे थे)। एंकर निवेशक हिस्से की सदस्यता लेने वाले अन्य केवल बड़े एफआईआई प्रतिभागियों में प्रूडेंशियल एश्योरेंस कंपनी लिमिटेड (एम एंड जी इन्वेस्टमेंट मैनेजमेंट द्वारा प्रबंधित), एलियांज ग्लोबल इन्वेस्टर्स, नोमुरा और पोलर कैपिटल थे।एक्सिस एएमसी, आदित्य बिड़ला सन लाइफ एएमसी, एसबीआई म्यूचुअल फंड और निप्पॉन म्यूचुअल फंड जैसे शीर्ष घरेलू म्यूचुअल फंड हाउस ने भी एंकर बुक में भाग लिया, जो एंकर निवेशक हिस्से का 39 प्रतिशत हिस्सा है।आईपीओ में 500 करोड़ रुपए के इक्विटी शेयरों का एक नया इश्यू और 5.08 करोड़ इक्विटी शेयरों की बिक्री के लिए एक प्रस्ताव (ओएफएस) शामिल है। प्राइस बैंड के ऊपरी छोर पर कंपनी को आईपीओ के जरिए 2,206 करोड़ रुपए हासिल होने की उम्मीद है। ताजा इश्यू से प्राप्त राशि का उपयोग ऋण और सामान्य कॉर्पाेरेट उद्देश्यों का भुगतान करने के लिए किया जाएगा।एजेंसी
यहां बच्चों में होने वाला ब्लड कैंसर ल्यूकेमिया के लक्षणों के साथ जोखिम कारकों के बारे में बताया गया है.बचपन का ल्यूकेमिया या ब्लड कैंसर दुनिया भर में किशोरों और बच्चों में पाया जाने वाला सबसे आम प्रकार का कैंसर है, जबकि सही समय पर उपचार और निदान बहुत जरूरी हैं और किसी के स्वास्थ्य के भाग्य का फैसला करते हैं. बच्चे वयस्कों की तुलना में इस तरह के उपचारों के प्रति अधिक ग्रहणशील प्रतीत होते हैं. यहां आपको बच्चों में होने वाला ब्लड कैंसर ल्यूकेमिया के बारे में सब कुछ बताया गया है.
ब्लड कैंसर क्या है और यह आपके शरीर को कैसे प्रभावित करता है?ल्यूकेमिया एक ब्लड कैंसर है जो संक्रमण और बीमारियों से लड़ने के लिए जिम्मेदार आपकी श्वेत रक्त कोशिकाओं को प्रभावित करता है. श्वेत रक्त कोशिकाएं हमारे शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली यानि इम्यूनिटी का एक प्रमुख हिस्सा हैं. जब ये कोशिकाएं प्रभावित होती हैं, तो अस्थि मज्जा में असामान्य सफेद कोशिकाएं बनती हैं जो ब्लड फ्लो से होकर हेल्दी कोशिकाओं पर दबाव डालते हुए आपके शरीर के अन्य हिस्सों तक पहुंचती हैं. जब ये हेल्दी कोशिकाएं असामान्य हो जाती हैं, तो शरीर के संक्रमण और बीमारियों को आकर्षित करने की संभावना बढ़ जाती है और यह कमजोर हो जाता है. इस तरह के संक्रमण से लड़ने के लिए बच्चों और किशोरों को वयस्कों की तुलना में अधिक मजबूत माना जाता है. इसलिए युवा कैंसर के उपचार के लिए बेहतर प्रतिक्रिया देते हैं.बच्चों में ब्लड कैंसर के जोखिम कारकबच्चों में आमतौर पर कोई सामान्य जोखिम कारक नहीं होते हैं जब तक कि कोई मौजूदा बीमारी जिससे आपके बच्चे का शरीर पहले से ही लड़ रहा हो, जिसमें सामान्य संक्रमण और इम्यूनिटी संबंधी समस्याएं शामिल हैं. संभावना बढ़ जाती है अगर परिवार में पहले से ही कोई है जो ब्लड कैंसर से पीड़ित है. इसे ली-फ्रौमेनी सिंड्रोम कहा जाता है जिसका अर्थ है 'वंशानुगत कैंसर की प्रवृत्ति'. संक्रमित जीन के आधार पर बच्चों में कैंसर का खतरा बढ़ जाता है. अगर अतीत में किसी भी उपचार के दौरान बच्चे को किसी भी प्रकार की रेडिएशन थेरेपी या बेंजीन जैसे रसायनों के अत्यधिक उपयोग के संपर्क में लाया गया है, तो शरीर के ब्लड कैंसर को आकर्षित करने का जोखिम बढ़ जाता है.
बच्चों में ब्लड कैंसर के लक्षण
ज्यादातर बच्चे ल्यूकेमिया से पीड़ित होने पर कोई असामान्य लक्षण या संकेत नहीं दिखाते हैं. यह एक इम्यून-संबंधी बीमारी है और लक्षणों में वह सब कुछ शामिल होता है जो एक कॉम्प्रोमाइनज इम्यून सिस्टम वाले किसी व्यक्ति को अनुभव होता है.
अत्यधिक थकान: अगर आपका बच्चा हर समय थका हुआ महसूस करता है, या अन्य बच्चों के साथ खेलते समय शारीरिक रूप से खुद को व्यायाम करने में असमर्थ है, तो यह एक प्रतिरक्षा प्रणाली का संकेत हो सकता है जिस पर हमला किया गया है या किया जा रहा है. वह कमजोर महसूस कर रहा होगा. इसकी जांच कराएं.
खून बहना या चोट लगना: बच्चे हर तरह की चोटों के साथ बड़े हो जाते हैं. छोटे घाव जो कुछ ही दिनों में दूर हो जाते हैं और कुछ गंभीर, जिन्हें डॉक्टर के हस्तक्षेप की जरूरत होती है. अगर आप पाते हैं कि आपका बच्चा हर बार किसी चीज से टकराता है या अन्य बच्चों के साथ खेलते समय बस घूमता है, तो यह एक बड़ी समस्या का संकेत हो सकता है.
संक्रमण और बुखार: बच्चों और वयस्कों दोनों में सभी प्रकार के कैंसर में यह एक सामान्य लक्षण है. अगर आप लगातार बुखार का अनुभव कर रहे हैं और यह देखने के लिए परेशान हैं कि कुछ भी आपके बच्चे को बेहतर महसूस नहीं कराता है, तो यह और टेस्ट करने का समय है. नियमित संक्रमण और बुखार जो सामान्य दवाओं के माध्यम से ठीक नहीं हो रहे हैं तो डॉक्टर के पास जाएं.
सांस लेने में तकलीफ या खांसी: जब तक आपके बच्चे को फेफड़े से संबंधित कोई समस्या न हो, उसे अस्पष्ट खांसी या सांस की तकलीफ का अनुभव नहीं होना चाहिए. अगर शारीरिक परिश्रम से आपके बच्चे की सांस फूल जाती है, तो यह समय कुछ और टेस्ट करवाने और ल्यूकेमिया के जोखिम को दूर करने का है.
ऐसे अन्य लक्षण हैं जो सामान्य नहीं हैं लेकिन रक्त कैंसर से लड़ने वाले बच्चे द्वारा अनुभव किए जा सकते हैं. इनमें मसूड़ों की समस्या, शरीर पर चकत्ते, लगातार वजन कम होना, शरीर के किसी भी हिस्से में सूजन जो बार-बार आती रहती है, जोड़ों में दर्द, दौरे, सिरदर्द और नियमित उल्टी शामिल हैंएजेंसी
भारत में डिपार्टमेंट ऑफ बायोटेक्नोलॉजी और सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया की 10 साल की कोशिश आखिरकार रंग लाई है और इस खतरनाक बीमारी से बचने के लिए टीका इजाद करने में कामयाबी मिली है.
सर्वाइकल कैंसर से बचाव के लिए 1 सितंबर को भारत ने अपनी खुद की वैक्सीन बनाने की घोषणा कर ली है. आने वाले कुछ महीनों में सर्वाइकल कैंसर की वैक्सीन नेशनल इम्यूनाइजेशन प्रोग्राम में शामिल कर ली जाएगी. थोड़ा फ्लैसबैक में ले जाएं तो बता दें इससे पहले अब तक दुनिया में सर्वाइकल कैंसर से बचाव के लिए सिर्फ दो ही टीके मौजूद हैं. भारत में डिपार्टमेंट ऑफ बायोटेक्नोलॉजी और सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया की 10 साल की कोशिश आखिरकार रंग लाई है और इस खतरनाक बीमारी से बचने के लिए टीका इजाद करने में कामयाबी मिली है.
2 साल में तैयार की जाएंगी 200 मिलियन डोज:
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री डॉक्टर जितेंद्र सिंह, मंत्री ने कहा कि नेशनल इम्यूनाइजेशन प्रोग्राम एक लगातार जारी प्रक्रिया है. पहले जो जो मौजूद वैक्सीन थे उनको राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम में शामिल किया गया था. अब आगे इसको भी शामिल किया जाएगा. अगले दो साल में इस टीके के 200 मिलियन डोज तैयार किए जाएंगे और इसकी बाजार में मौजूद बाकी टीकों से कम कीमत होगी.
कितने साल की महिलाओं को दिया जा सकेगा टीका?
सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के सीईओ अदार पूनावाला ने कहा कि कुछ महीनों में हम टीका को लॉन्च करेंगे. कीमत 200 - 400 रुपये के बीच रहने की संभावना है पर इसका फैसला मंत्रालय से बात करेंगे आगे आने वाले वक्त में करेंगे. ये टीका 9 से 26 साल के युवा और युवतियों को दिया जा सकता है.
सर्वाइकल कैंसर वैक्सीन की कीमत कितनी होगी?
इस घोषणा के बाद से सभी जानना चाहते हैं कि सर्वाइकल कैंसर वैक्सीन की कीमत कितनी होगी, तो आपको बता दें टेके की कीमत 200 से 400 रुपये के बीच होगी.
सर्वाइकल कैंसर से हर साल 67 हजार मौतें होती हैं:
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) का अनुमान है कि भारत दुनिया के सर्वाइकल कैंसर के बोझ का पांचवां हिस्सा वहन करता है, जिसमें 1.23 लाख नए मामले और प्रति वर्ष 67,000 मौतें होती हैं. सरकारी विश्लेषण के अनुसार, एचपीवी के खिलाफ एंटीबॉडी का उत्पादन करके यह टीकाकरण 6, 11, 16 और 18 स्ट्रेन को रोकता है.
कैसे होता है सर्वाइकल कैंसर?
भारत में महिलाओं में टॉप तीन सबसे अधिक प्रचलित कैंसर में से एक सर्वाइकल कैंसर भी है. मानव पेपिलोमावायरस नामक वायरस के परिणामस्वरूप गर्भाशय ग्रीवा के अस्तर में परिवर्तन होता है, जिसकी वजह से अंततः कैंसर होता है. वायरस बेहद संक्रामक है और यौन संपर्क के माध्यम से पुरुषों और महिलाओं के बीच फैलता है.
यह टीका गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर की घटनाओं को 80 प्रतिशत से अधिक कम कर सकता है और यह विदेशी-विकसित सर्वारिक्स और गार्डासिलो की तुलना में अधिक लागत प्रभावी विकल्प है. वैक्सीन विकास प्रक्रिया के हिस्से के रूप में एसएसआई और डीबीटी द्वारा चलाए गए अध्ययनों के दौरान क्वाड्रिवेलेंट ह्यूमन पैपिलोमावायरस वैक्सीन (क्यूएचपीवी) ने रोगी आबादी में उच्च प्रभावकारिता दिखाई.
सर्वाइकल कैंसर के लक्षण
अर्ली स्टेज में सर्वाइकल कैंसर आमतौर पर कोई लक्षण या संकेत पैदा नहीं करता है. कुछ लक्षण जो बाद में देखे जा सकते हैं उनमें शामिल है:- संभोग के बाद, मासिक धर्म के बीच या रजोनिवृत्ति के बाद योनि से खून बहना.- पानीदार, खूनी योनि स्राव जो हैवी हो सकता है और जिसमें दुर्गंध हो सकती है.- पैल्विक दर्द या संभोग के दौरान दर्द.- माहवारी के बीच या बाद में खून के धब्बे या हल्की ब्लीडिंग- मासिक धर्म रक्तस्राव जो सामान्य से अधिक लंबा और हैवी होता है.- रजोनिवृत्ति के बाद ब्लीडिंग-अनिल बेदाग़-
मुंबई : अपोलो हॉस्पिटल्स ने एक विशेष प्रेस कॉन्फ्रेंस में 53 जीवन रक्षक पीडियाट्रिक लीवर ट्रांसप्लांट सर्जरी पूरी करने की घोषणा की। अस्पताल के सामने अब तक कुल 170 लीवर से संबंधित मामले आए हैं, जिनमें से 34 मृत दाता प्रत्यारोपण से संबंधित हैं और 12 अंतरराष्ट्रीय मामले हैं। पाँच वर्षों में यह महत्वपूर्ण मुकाम हासिल किया। ट्रांसप्लांट वाले बच्चों में 4 महीने के शिशु से लेकर बड़े बच्चों तक शामिल थे, जो बाइलरी अट्रेसिया और जन्मजात लीवर रोग से पीड़ित थे, और लीवर की विफलता की कगार पर थे। अपोलो ने अपोलो हॉस्पिटल्स पश्चिमी क्षेत्र के एचपीबी (HPB) और लीवर ट्रांसप्लांट कार्यक्रम के मुख्य सलाहकार के रूप में 35 से अधिक वर्षों के अनुभव के साथ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध हेपाटो-पैनक्रियाटो-बाइलरी ट्रांसप्लांट सर्जन प्रोफेसर डेरियस मिर्जा के नैदानिक नेतृत्व के तहत महाराष्ट्र और गुजरात राज्य के भीतर मौजूदा लीवर कार्यक्रम के विस्तार की भी घोषणा की। दोनों संस्थान एक सफल लीवर ट्रांसप्लांट प्रोग्राम तैयार के लिए काम करेंगे जो पश्चिमी भारत में लीवर ट्रांसप्लांट केयर में सर्वश्रेष्ठ चिकित्सा विशेषज्ञता और नवीनतम विश्व स्तरीय तकनीकी प्रगति लाएगा।
सुश्री प्रीथा रेड्डी, कार्यकारी-वाइस चेयरपर्सन, अपोलो हॉस्पिटल्स ग्रुप ने कहा, “अपोलो के लिए यह गर्व का क्षण है क्योंकि हम पाँच वर्षों में 53 पीडियाट्रिक लीवर ट्रांसप्लांट का यह मुकाम हासिल किया है। अपोलो हर वर्ष भारत के 15% लीवर ट्रांसप्लांट करता है और सॉलिड ऑर्गन ट्रांसप्लांट में अग्रणी है। ट्रांसप्लांट में 3 दशकों से अधिक के अनुभव जिसमें 4,051 लीवर शामिल हैं, अपोलो ने 50 से अधिक देशों के रोगियों को सेवा दी है। हम सर्वश्रेष्ठ चिकित्सा प्रतिभा को जोड़ना जारी रखते हैं, जैसा कि प्रो.डेरियस मिर्जा के एक बार फिर एचपीबी (HPB) और लीवर ट्रांसप्लांट यूनिट के प्रमुख के रूप में बोर्ड पर आने से स्पष्ट है। मैं बॉम्बे हॉस्पिटल के साथ सहयोग का भी स्वागत करती हूँ, यह एक ऐसा गठजोड़ हैं जो हमें अपनी सेवाएं आबादी के एक बड़े हिस्से तक पहुँचाने में मदद करेगा।”
प्रो.डेरियस मिर्जा, मुख्य सलाहकार- एचपीबी-लीवर ट्रांसप्लांट प्रोग्राम (वेस्टर्न रीजन), अपोलो हॉस्पिटल्स ने कहा, "जब मुझे अपोलो हॉस्पिटल्स में लीवर ट्रांसप्लांट प्रोग्राम विकसित करने का अवसर दिया गया, तो मैंने इसे सभी आयु समूहों और विभिन्न जोखिम स्तरों के रोगियों को लीवर ट्रांसप्लांट केयर की एक पूरी श्रृंखला प्रदान करने की अपनी विशेषज्ञता का उपयोग करने के लिए सबसे उपयुक्त केंद्र पाया। अपोलो हॉस्पिटल्स में पीडियाट्रिक लीवर ट्रांसप्लांट कार्यक्रम में वित्तीय सहायता कार्यक्रमों और गैर सरकारी संगठनों के साथ गठजोड़ के माध्यम से महत्वपूर्ण धन जुटाने की पहल देखी गई है। इससे यह सुनिश्चित होगा कि समाज के वंचित वर्गों के बच्चों को उनकी बीमारियों का सबसे अच्छा इलाज मिल सकेगा। सपोर्ट, पोस्ट ट्रांसप्लांटेशन मेडिकेशन सहायता के लिए भी विस्तारित है।"
डॉ.राजकुमार पाटिल, निर्देशक-चिकित्सा सेवा, बॉम्बे हॉस्पिटल और मेडिकल रिसर्च सेंटर ने कहा, “बॉम्बे हॉस्पिटल और मेडिकल रिसर्च सेंटर जो पिछले 6 दशकों से आम लोगों को अथक और निस्वार्थ चिकित्सा सेवाएँ प्रदान कर रहा है। बॉम्बे हॉस्पिटल एक लीवर ट्रांसप्लांट कार्यक्रम की योजना बना रहा था और हमारे पास पंजीकृत कुछ मरीज़ों का इलाज नवी मुंबई के अपोलो हॉस्पिटल्स में हो चुका था। हम लीवर ट्रांसप्लांट कार्यक्रम के लिए अपोलो हॉस्पिटल्स के साथ सहयोग करके खुश हैं और इससे हमारे चिकित्सकों और टीम की आंतरिक क्षमता का निर्माण होगा।"-अनिल बेदाग़-
~ अपनी अक्षमता को मात देकर समाज के लिये अपना योगदान देने वाले दिव्यांगों को को किया सम्मानित ~
मुंबई : इंसानी जज्बे को सलाम करते हुए, डॉ. बत्राज़ ने पॉजिटिव हेल्थ अवॉर्ड्स के 14वें संस्करण का आयोजन किया। इस पुरस्कार समारोह में मृदुल घोष, ज़ैनिका जगसिया, डॉ. जितेंद्र अग्रवाल, डॉ. फातिमा असला, अमीर सिद्दीकी को सम्मानित किया गया। पॉजिटिव हेल्थ अवॉर्ड्स के 14वें संस्करण में बाधाओं को पार करने और समाज में अपना योगदान देने वालों को उनके उल्लेखनीय साहस और इच्छाशक्ति के लिये सम्मानित और पुरस्कृत किया गया। मुंबई के टाटा थिएटर, एनसीपीए यह अवार्ड्स बजाज ऑटो द्वारा प्रस्तुत किए गए।
प्रख्यात जूरी पैनल में श्री राजीव बजाज - एमडी, बजाज ऑटो, पद्म श्री से सम्मानित और डॉ बत्रा’ज़ ग्रुप ऑफ कंपनीज, संस्थापक, डॉ मुकेश बत्रा, श्रीमती मेनका संजय गांधी, विवेक ओबेरॉय और आर. बाल्की शामिल थे। पैनल के लिये देश भर से आए सैकड़ों आवेदनों में से विजेताओं का चयन करना कठिन काम था।
पद्मश्री से सम्मानित, डॉ. मुकेश बत्रा, फाउंडर-डॉ.बत्रा’ज़ ग्रुप कंपनीज ने कहा, “पॉजिटिव हेल्थ हीरोज हमें प्रेरित करते हैं, ये जीवन में ज्यादा हासिल करने और समाज में अपना योगदान देने में सक्षम हैं। उनका जीवन वास्तव में प्रेरणादायक है और हम परवाह करने वाले एक ब्रांड के रूप में उनकी अद्भुत कहानियों को पेश कर सम्मानित महसूस कर रहे हैं। हमारे पिछले विजेताओं ने भारत में कई और पुरस्कार जीते हैं और हम आशा करते हैं कि उनका धैर्य और दृढ़ संकल्प उन्हें और अधिक ऊंचाइयों को प्राप्त करने में मदद करेगा। इन रियल-लाइफ नायकों को सम्मानित करने के हमारे प्रयास को लगातार सहयोग देने के लिये हम श्री राजीव बजाज का धन्यवाद करते हैं।”
इस कार्यक्रम में उद्योग जगत के लीडर्स, मेडिकल स्टूडेंट्स और एनजीओ शामिल हुए। दृष्टिबाधित ऑर्केस्ट्रा ‘स्वारंगे’ द्वारा गाए गए गानों और ‘मिरेकल ऑन व्हील्स’ द्वारा व्हीलचेयर पर प्रस्तुत किए गए डांस परफॉर्मेंस को देखकर दर्शक मंत्रमुग्ध हो गए। इस कार्यक्रम में सिमी गरेवाल, मधु शाह, भरत दाबोलकर, सिद्धार्थ काक, गौरव शर्मा, रूपाली सूरी, सोनल जिंदल, ग्वेन ऐथेड, सिमरन आहूजा, सोमा घोष, मिकी मेहता और दिलीप पीरामल सहित कई अन्य प्रसिद्ध हस्तियों ने भी शिरकत की।द न्यूज़ इंडिया समाचार सेवा
सर्दी, जुकाम और कफ में हल्दी दूध का सेवन लाभकारी
रायपुर : आम बीमारियों के उपचार से जुड़ी कई चीजें हमारी रसोई में उपलब्ध हैं। उनमें कई गुणों से युक्त हल्दी भी एक है। अपने विशिष्ट औषधीय एवं एंटी-ऑक्सीडेंट गुणों के कारण हल्दी का आयुर्वेद में भी विशेष महत्व है। हल्दी रोगाणुओं को रोकने वाली (रोगाणुरोधक या एंटी-सेप्टिक) होती है। साथ ही यह हमारी इम्युनिटी को बढ़ाता है और कई तरह के संक्रमण की रोकथाम में सहायक है। हल्दी के औषधीय गुण कई बीमारियों के बचाव और उपचार में मदद कर सकते हैं। हल्दी को लेकर किए गए एक शोध में पाया गया कि इसमें एंटी-ऑक्सीडेंट, एंटी-इंफ्लेमेटरी, केलोरेटिक, एंटी-माइक्रोबियल (लिवर को सुरक्षित रखने वाला गुण), कार्डियो-प्रोटेक्टिव और नेफ्रो-प्रोटेक्टिव गुण होते हैं।
चाहे अंदरूनी घाव हो या शरीर के बाहर के घाव, हल्दी उन्हें भरने का काम करती है। खून के रिसाव को रोकने या चोट को ठीक करने के लिए हल्दी का आमतौर पर उपयोग होता है। हाथ-पैरों में होने वाले दर्द से राहत पाने के लिए भी हल्दी वाला दूध फायदेमंद है। सर्दी, जुकाम या कफ की शिकायत हो तो हल्दी वाला दूध पीना लाभकारी होता है। हल्दी मिला गर्म दूध यानि गोल्डन मिल्क सामान्य मौसमी बीमारियों जैसे सर्दी-जुकाम में राहत दिलाते हैं। वहीं यह फेफड़ों के कफ को भी बाहर निकालने यानि एक्सपेक्टोरेंट के रूप में कारगर है। आयुर्वेद पद्धति में हल्दी को रक्त विकारों को दूर करने और एंटी-हिस्टामाइन के रूप में कारगर माना गया है। फलस्वरूप यह एलर्जिक सर्दी-जुकाम तथा इओसिनोफिलिया जैसे रोगों के उपचार में सहायक है।
आयुर्वेदिक कॉलेज के सह-प्राध्यापक डॉ. संजय शुक्ला ने बताया कि हल्दी तिक्त, उष्ण, रक्तशोधक और वायु विकारों को नष्ट करने वाली होती है। हल्दी के सेवन से पेट के नुकसानदेह जीवाणु नष्ट हो जाते हैं। हल्दी एंटी-बायोटिक की तरह ही रोगाणुजनित रोगों के उपचार में सहायक है। हल्दी का उपयोग सदियों से सौंदर्यवर्धक के रूप में होते आया है। इसके उबटन से चेहरा निखरता है तथा यह अनेक चर्म रोगों में भी प्रभावी है। भारत में पाई जानी वाली हल्दी में रासायनिक पदार्थ करक्यूमिन की मात्रा अधिक होती है। हल्दी का इस्तेमाल आयुर्वेदिक (हर्बल) दवाओं में होता है और इससे बनी औषधियां बदन दर्द, थकान दूर करने और सांस संबंधी परेशानियों में असरदार हैं। बाह्य लेप और आन्तरिक सेवन दोनों प्रकार से प्रयोग करने पर शीघ्र लाभ होता है। हल्दी का औषधि के रूप में उपयोग आयुर्वेदिक चिकित्सा विशेषज्ञ के परामर्श में करना चाहिए।एजेंसी
टेड्रोस ने बताया कि दुनिया की दो-तिहाई आबादी को टीका लगाया गया है, जिसमें तीन-चौथाई स्वास्थ्य कार्यकर्ता और वृद्ध लोग शामिल हैं.
जिनेवा : विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के प्रमुख ने गुरुवार को अपने इस दावे को खारिज कर दिया कि कोविड-19 महामारी का अंत करीब है. ये कहते हुए उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि संकट के अंत की घोषणा करने के लिए "अभी भी एक लंबा रास्ता तय करना है". पिछले हफ्ते, टेड्रोस अदनोम घेब्येयियस ने पत्रकारों से कहा कि दुनिया "महामारी को खत्म करने के लिए इनती बेहतर स्थिति में कभी नहीं थी. अंत करीब है."हालांकि, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन रविवार को प्रसारित एक साक्षात्कार में ये कहते दिखे कि संयुक्त राज्य में महामारी "खत्म हो गई है". इधर, न्यू यॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा के अलग गुरुवार को फिर से मीडिया से बात करते हुए, टेड्रोस ने कम उत्साहित होते हुए ये कहा कि "अंत को देख सकते हैं का मतलब यह नहीं है कि हम अंत में हैं."
उन्होंने दोहराया कि महामारी को समाप्त करने के लिए दुनिया अब तक की सबसे अच्छी स्थिति में है. ऐसा इसलिए क्योंकि मौजूदा समय में साप्ताहिक मौतों की संख्या में गिरावट जारी है. जो संख्या जनवरी 2021 में जो चरम पर थे, उसका सिर्फ 10 प्रतिशत अब रह गया है.
टेड्रोस ने बताया कि दुनिया की दो-तिहाई आबादी को टीका लगाया गया है, जिसमें तीन-चौथाई स्वास्थ्य कार्यकर्ता और वृद्ध लोग शामिल हैं. उन्होंने कहा, " हमने ढाई साल एक लंबी, अंधेरी सुरंग में बिताए हैं, और अब हम उस सुरंग के अंत में प्रकाश को देखना शुरू कर रहे हैं." हालांकि, उन्होंने जोर देकर कहा, " अभी भी एक लंबा रास्ता तय करना है. सुरंग अभी भी अंधेरा है, कई बाधाएं हैं जो हमें परेशान कर सकती हैं, अगर हम ध्यान नहीं देते हैं."द न्यूज़ इंडिया समाचार सेवा
बच्चों के संपूर्ण विकास के लिए जरूरी है कृमिनाशक दवा
रायपुर : बच्चों को कृमि के खतरे से बचाने के लिये कल मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी कार्यालय में कृमिनाशक दवा खिलाने के लिए शिक्षकों को प्रशिक्षित किया गया। तीन पालियों में आयोजित इस प्रशिक्षण में प्रथम पाली में शहरी क्षेत्र के प्राथमिक स्कूलों, द्वितीय पाली में हाईस्कूल और हायर सेकेण्डरी स्कूलों तथा तृतीय पाली में निजी स्कूलों के शिक्षकों को प्रशिक्षित किया गया। नेशनल डीवर्मिंग डे (एनडीडी) के नोडल अधिकारी डॉ प्रणव वर्मा एवं एनडीडी के प्रभारी गजेन्द्र डोंगरे द्वारा प्रशिक्षण दिया गया जिसमें एल्बेंडाजोल (कृमिनाशक दवा) खिलाने की विधि के बारे में जानकारी दी गयी ।
सितंबर 9 से शुरू होने वाले इस अभियान के दौरान एल्बेंडाजोल की गोली खिलाई जाएगी जिसका क्रियान्वयन शिक्षा विभाग एवं आईसीडीएस विभाग के समन्वय से किया जाएगा। साथ ही साथ स्वास्थ्य विभाग द्वारा दवा मैनेजमेंट, रिपोर्टिंग फॉर्मेट, आईईसी सामग्री का सहयोग होगा।
इस सम्बन्ध में एनडीडी प्रभारी गजेन्द्र डोंगरे ने बताया: “बच्चों के संपूर्ण विकास के लिए कृमि नाशक दवा जरूरी है। एल्बेंडाजोल एक कृमि (पेट के कीड़े) नाशक दवा है जिसको लेने से बच्चों के पेट के कीड़े ख़त्म हो जाते हैं। एक से 2 वर्ष के बच्चों को एल्बेंडाजोल की आधी गोली पीसकर पानी में घोल कर दी जाती है जबकि 2 वर्ष से 3 वर्ष तक के बच्चों को एक गोली पीसकर दी जाती है। वहीं 3 वर्ष से 19 वर्ष तक के बच्चो व किशोर किशोरियों को यह टेबलेट चबाकर खानी होती है।‘’
इस मौके पर एनडीडी नोडल अधिकारी डॉक्टर प्रणव वर्मा ने शिक्षकों से कहा: “दवा सेवन से पहले थोड़ा बहुत खाना जरूर खाने की सलाह दी जाती है। 9 सितंबर को समस्त आंगनबाड़ी केंद्रों पर 1 से 5 वर्ष तक के सभी पंजीकृत बच्चे, गैर पंजीकृत बच्चे और शाला त्यागी ( स्कूल ना जाने वाले )सभी बालक बालिकाओं को आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं द्वारा दवा खिलाई जाएगी। वहीं 6 वर्ष से 19 वर्ष तक के सभी छात्र छात्राओं को सरकारी ,सरकारी सहायता प्राप्त प्राइवेट स्कूल , मदरसों, केंद्रीय विद्यालय में शिक्षकों के माध्यम से दवा खिलाई जाएगी।“
उन्होंने आगे कहा: “कार्यक्रम के दिन दवा खाने से छूटे हुए बच्चों के लिए 14 सितंबर को माप अप राउंड दिवस के दिन दवा खिलायी जायेगी। समस्त मितानिन 6 से 19 वर्ष तक के स्कूल में जाने वाले बच्चों की सूची बनाकर आंगनवाड़ी केंद्रों को दवा खिलाने में सहयोग प्रदान करेंगी। इस बार रायपुर मे 9 लाख से अधिक बच्चों एवं किशोर किशोरियों को दवा खिलाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।“
एविडेंस एक्शन संस्था के राहुल ने कहा: “आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं द्वारा अपने सामने ही दवा खिलाई जानी है। दवा खिलने के पश्चात अगर बच्चे को कोई प्रतिकूल प्रभाव होता है तो घबराए नहीं अपने नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र के अधीक्षक, प्रभारी चिकित्सा अधिकारी को अवगत कराएं साथ ही 102 या 108 नंबर डालकर सहायता प्राप्त की जा सकती है।“
द न्यूज़ इंडिया समाचार सेवा
रायपुर : विश्व रक्तदाता दिवस पर 14 जून को जिला अस्पताल पंडरी में स्वैच्छिक रक्तदान शिविर का आयोजन किया जाएगा । इस शिविर का उद्देश्य रक्तदाताओं से रक्त प्राप्त कर जरूरतमंदों को उपलब्ध कराना है ।
विश्व रक्तदाता दिवस पर आयोजित होने वाले रक्तदान शिविर की जानकारी देते हुए पैथोलॉजिस्ट, डॉ.माधुरी वानखेड़े ने बताया: ‘’कोविड-19 संक्रमण की वजह से जिले में रक्तदान के लियें रक्तदाताओं से सोशल मीडिया के माध्यम से रक्तदान के लिए जागरुक किया जा रहा है । रक्तदान स्वास्थ्य सेवाओं का अति आवश्यक अंग है। वर्तमान में आधुनिक तकनीकों के बावजूद भी रक्त को कृत्रिम रूप से बनाया नहीं जा सकता है। इसका एकमात्र स्रोत रक्तदाता ही है। रक्तदाता ही रक्तदान करके किसी की जान को बचा सकता है
अस्पताल कंसल्टेंट डॉ.ओझा कहते है, रक्तदान से पूर्व रक्तदाता की काउंसलिंग कर इससे होने वाले फायदे के बारे में जानकारी दी जाती है। ऐसे लोग जो स्वस्थ है। वह रक्तदान के लिए पात्र होते हैं। कोविड-19 के नियमों का पालन करते हुए रक्तदान करें । रक्तदाता को हैंड वॉश करना, सेनेटाइजर का उपयोग और मास्क लगाना अनिवार्य है। सावधानियां व व्यक्तिगत सुरक्षा रख कर रक्तदान करने में किसी तरह का भी संक्रमण का खतरा नहीं होता है। दरअसल रक्तदान के महत्व को लेकर किए जा रहे प्रचार-प्रसार के बावजूद आज भी लोगों में बहुत सी कुछ गलत धारणाएं विद्यमान हैं, जिनको दूर करने की जरूरत है।‘’
सीएमएचओ और सिविल सर्जन ने की अपील
मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी रायपुर डॉ.मीरा बघेल और सिविल सर्जन डॉ. पीके गुप्ता ने स्वैच्छिक रक्तदाताओं से रक्तदान करने की अपील की है । साथ ही उन्होंने कहा कि जो लोग रक्तदान करते हैं वह असली रूप में मानव सेवी हैं । रक्त की एक बूंद लोगों की जान बचा लेती है । रक्तदान का महत्व हमको तब समझ में आता है जब हमारे किसी करीबी व्यक्ति को रक्त की आवश्यकता होती है। और जब हम उपलब्ध नहीं करा पाते हैं, तब बहुत कष्ट होता है इसलिए लोगों को ज्यादा से ज्यादा आगे आकर रक्तदान में भाग लेना चाहिए ताकि जरूरत के समय रक्त उपलब्ध हो सके । रक्तदान के प्रति मन में बैठी हुए गलत धारणाओं को नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र पर जाकर भी दूर किया जा सकता है । रक्तदान दुनिया का सबसे बड़ा दान है जो जीवन बचाता है ।
क्यों मनाया जाता है यह दिवस
यह दिवस कार्ल लैंडस्टीनर के जन्मदिन के अवसर पर मनाया जाता है। कार्ल लैंडस्टीनर का जन्म 14 जून 1868 को हुआ था। उन्होंने 1900 में ABO रक्त समूह की खोज की थी। वह एक ऑस्ट्रियाई जीवविज्ञानी और चिकित्सक थे, जिन्हें चिकित्सा के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। इस दिवस का आयोजन पहली बार 2004 में विश्व स्वास्थ्य संगठन और द इंटरनेशनल फेडरेशन द्वारा किया गया था। 2005 में विश्व स्वास्थ्य संगठन की 58वीं बैठक में 192 देशों द्वारा विश्व रक्तदान दिवस को आधिकारिक रूप से मान्यता दी गई थी।
रक्तदान के है कई फायदे
रक्तदान से हार्ट अटैक की संभावनाएं कम होती हैं। आयरन की मात्रा को बैलेंस करने से लिवर हेल्दी बनता है और कैंसर का खतरा भी कम हो जाता है। रक्तदान का एक फायदा यह भी है कि रक्तदान करते समय 7 तरह के टेस्ट किए जाते हैं।अगर किसी व्यक्ति को कोई बीमारी है तो उसका भी पता चल जाता है।
कौन कर सकता है रक्तदान
रक्तदान करने के लिए रक्तदाता की उम्र 18 से 60 साल के बीच होनी चाहिए जिसका वजन 45 किलोग्राम से अधिक हो। और उसको शारीरिक रूप से सेहतमंद होना भी जरूरी है। खून में हीमोग्लोबिन का स्तर 12.5 जी/डीएल या इससे ऊपर होनी चाहिए। रक्तदान करने के 24 घंटे पहले शराब, धूम्रपान और तंबाकू का सेवन नहीं किया गया हो। रक्तदान करने वाले व्यक्ति को ब्लड प्रेशर, कैंसर, एड्स जैसी बीमारी नहीं होनी चाहिए। एक सेहतमंद व्यक्ति हर 3 महीने में रक्तदान कर सकता है।
रक्तदान शिविर में दो गज की शारीरिक दूरी, मास्क एवं सैनिटाइजेशन करते हुए रक्तदान शिविर का आयोजन किया जाएगा ।
ब्रिटेन में वैज्ञानिकों को एक इंसान में कोविड का सबसे लंबा इन्फेक्शन मिला है. कुल नौ लोगों पर किए गए लंबे शोध में कोरोना के बारे में बेहद चौंकाने वाली जानकारियां सामने आई हैं.
505 दिनों तक कोविड पॉजिटिव रहने वाले रोगी पर शोध करने वाले वैज्ञानिकों के मुताबिक, पीड़ित में पहली बार 2020 के मध्य में कोविड-19 इन्फेक्शन मिला. मरीज को सांस लेने में दिक्कत हो रही थी. बाद में दवाओं से आराम जरूर पहुंचा, लेकिन इन्फेक्शन बना रहा. उस रोगी के 45 बार टेस्ट किए गए और सभी पॉजिटिव आए.
शोध की सह-लेखिका कन्सल्टेंट वायरोलॉजिस्ट गाइया नेबिया के मुताबिक मौत से ठीक पहले तक रोगी में लगातार सार्स-कोव-2 इन्फेक्शन मौजूद रहा है. इसी इन्फेक्शन की वजह से कोविड-19 होता है. वैज्ञानिकों का कहना है कि रोगी का इम्यून सिस्टम काफी कमजोर था. यह अकेला मामला नहीं है.
कोरोना के नए वेरिएंट को लेकर चिंताएं
नेबिया और उनके साथियों ने लंदन में काफी लंबे समय तक नौ कोरोना मरीजों पर नजर रखी. टीम यह जानना चाहती था कि अलग-अलग लोगों पर कोरोना कैसा असर डालता है. रिसर्चरों का दावा है कि कमजोर इम्यून सिस्टम वाले रोगियों में कोरोना के नए वेरिएंट सामने आ सकते हैं. समाचार एजेंसी एएफपी से बातचीत में डॉ. नेबिया ने कहा, "वेरिएंट्स के पैदा होने के पीछे यह भी एक अवधारणा है."
स्ट्डी की कोऑथर नेबिया कहती हैं, "नियमित अंतराल पर लिए गए नमूने और वायरस के जेनेटिक एनालिसिस से दिखता है कि 9 से 5 रोगियों में कम से कम एक चिंताजनक वेरिएंट का म्यूटेशन हुआ. कुछ रोगियों में तो जांच में दायरे में आए वेरिएंट्स के कई म्यूटेशन भी सामने आए, मसलन अल्फा, डेल्टा और ओमिक्रॉन वेरिएंट्स."
नेबिया कहती हैं, "हमने जिन लोगों के साथ काम किया, उनमें से किसी में भी ऐसे नए वेरिएंट्स नहीं बने, जो तेजी से फैलने वाले वेरिएंट्स से मिलते हों. शोध में शामिल 9 लोगों में से दो रोगियों में कोविड एक साल से ज्यादा समय तक रहा."
शोध में शामिल सभी रोगी वे लोग थे, जिनका इम्यून सिस्टम अंग प्रत्यारोपण, एचआईवी, कैंसर या किसी अन्य मेडिकल थेरेपी की वजह से जर्जर हो चुका था. वैज्ञानिकों ने मार्च 2020 से लेकर दिसंबर 2021 तक उनका अध्ययन किया. आखिर में 9 में से 5 लोग ही बच सके. दो बिना किसी इलाज के ठीक हो गए. दो को एंटीबॉडी और एंटीवायरल थेरेपी देनी पड़ी. जीवित बचा पांचवा शख्स अब भी संक्रमित है. आखिरी बार उसका टेस्ट 2022 की शुरुआत में किया गया था. तब उसे 412 दिन से कोविड था.
वैज्ञानिकों का कहना है कि अगली बार अगर पांचवें रोगी का टेस्ट किया गया, तो 505 दिन का रिकॉर्ड टूट जाएगा. नेबिया के मुताबिक इस शोध से पता चलता है कि कमजोर इम्यून सिस्टम वाले लोगों के लिए तुरंत नया इलाज खोजने की जरूरत है.
दुनिया महामारी से सबक लेने में नाकाम: रिपोर्ट
अब तक यही माना जाता रहा है कि कोविड-19 का संक्रमण ज्यादा से ज्यादा दो हफ्ते तक शरीर में रहता है. ब्रिटेन के शोध ने इस धारणा को खारिज कर दिया है. शोध के नतीजे अब यूरोपियन कांग्रेस ऑफ क्लीनिकल माइक्रोबायोलॉजी एंड इंफेक्शियस डिजिजेज के सामने पेश किए जाएंगे.
ओएसजे/वीएस (एएफपी, डीपीए)छत्तीसगढ़
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