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Best Winter Dishes Recipe: मेथी के पराठे एक स्वादिष्ट और पौष्टिक व्यंजन हैं जो सर्दियों के मौसम में सेहत के लिए फायदेमंद हैं. इसमें भरपूर मात्रा में विटामिन, फाइबर और खनिज होते हैं जो पाचन स्वास्थ्य, डायबिटीज और दिल की सेहत को बेहतर बनाने में मदद करते हैं. इस लेख में मेथी के पराठे बनाने की सरल रेसिपी दी गई है.रीवा. सर्दी का मौसम आते ही बाजार में तरह-तरह की हरी सब्जियां आना शुरू हो जाती हैं. इन पत्तेदार सब्जियों में से एक है मेथी. इस सब्जी की मदद से आप काफी कुछ चीजें तैयार कर सकते है. इस मौसम में फ्रेश मेथी के पराठे स्वाद में लाजवाब लगते हैं. इसे हर कोई अलग-अलग तरीके से बनाता है. यहां हम आपको एक अलग तरीके से मेथी के पराठे की बनाने के तरीके के बार में बता रहे हैं.
मेथी के पराठे एक स्वादिष्ट और पौष्टिक व्यंजन होते हैं, जो सेहत के लिए बेहद फायदेमंद होते हैं. मेथी में भरपूर मात्रा में विटामिन, खनिज, और फाइबर होता है, जो पाचन स्वास्थ्य, रक्त शर्करा को नियंत्रित करने और शरीर की समग्र सेहत को बेहतर बनाने में मदद करता है. मेथी के पराठे का सेवन विशेष रूप से डाइबिटीज और हाई कोलेस्ट्रॉल के मरीजों के लिए फायदेमंद हो सकता है.
मेथी के पराठे के फायदेमेथी के बीज में डायबिटीज़ को नियंत्रित करने वाले गुण होते हैं. यह ब्लड शुगर के स्तर को स्थिर रखने में मदद करते हैं. मेथी में फाइबर होता है, जो पाचन प्रक्रिया को सुधारता है और कब्ज जैसी समस्याओं को दूर करता है. मेथी का सेवन कोलेस्ट्रॉल को कम करने में मदद करता है, जिससे दिल की सेहत पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है. मेथी में कैल्शियम, फास्फोरस और आयरन जैसे खनिज होते हैं, जो हड्डियों को मजबूत बनाते हैं और हड्डियों की समस्याओं को रोकते हैं.
मेथी के पराठे बनाने की रेसिपीमेथी के पत्ते – 1 कप (कटी हुई).आटा – 1 कप.हरी मिर्च – 1 (कटी हुई).अदरक – 1 छोटा टुकड़ा (कद्दूकस किया हुआ).अजवाइन – 1/2 चम्मच.नमक – स्वाद अनुसार.हल्दी – 1/4 चम्मच.तेल – पराठा सेंकने के लिए.
तैयार करने का तरीकासबसे पहले मेथी के पत्तों को अच्छे से धोकर बारीक काट लें. एक कटोरी में आटा, कटी हुई मेथी, हरी मिर्च, अदरक, अजवाइन, हल्दी और नमक डालकर अच्छे से मिला लें. थोड़े-थोड़े पानी से आटे को गूंध लें. आटा न ज्यादा सख्त और न ही ज्यादा मुलायम होना चाहिए. अब आटे को कुछ देर के लिए ढककर रख दें, ताकि मेथी का स्वाद अच्छे से मिल जाए. गूथे हुए आटे से लोई बनाकर बेलन से पराठा बेलें. तवे पर तेल डालकर पराठे को सुनहरा और क्रिस्पी होने तक सेकें. गरमा-गरम मेथी के पराठे दही या अचार के साथ सर्व करें. (एजेंसी) -
PM 2.5 Increase Risk of Corona Death: अब तक यही माना जाता रहा था कि कोरोना में इतनी ज्यादा मौत की वजह खतरनाक वायरस है लेकिन एक नई रिसर्च में यह बात सामने आई है कि कोरोना में इतनी ज्यादा और तेजी से होने वाली मौत को वायु प्रदूषण और पार्टिकुलेट 2.5 मुख्य रूप से जिम्मेदार था.
PM 2.5 Increase Risk of Corona Death: कोरोना की कहर ने विश्व में 70 लाख से ज्यादा लोगों को मौत के मुंह में समा दिया. मृत्यु दर इतनी तीव्र थी कि वैज्ञानिक भी नहीं समझ पा रहे थे कि आखिर हो क्या रहा है. पर अब एक नए अध्ययन में यह बात सामने आई है कि कोरोना के समय में इतनी तेज मृत्यु दर का कारण वायुमंडल में घुल रहे प्रदूषण जिम्मेदार था. स्टडी में कहा गया कि पार्टिकुलेट मैटर 2.5 के कारण कोरोना के वायरस का प्रसार तेजी से हुआ और इस कारण ज्यादा लोगों की जानें गईं. यह अध्ययन ताइवान की नेशनल यांग मिंग चियाओ तुंग यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों द्वारा किया गया है, जिन्होंने पाया कि पीएम 2.5 ने SARS-CoV-2 के संचरण को प्रभावित किया और इस वायरस से होने वाली बीमारी की गंभीरता को भी बढ़ाया.
पीएम 2.5 सबसे बड़ा विलेनशोधकर्ताओं का कहना है कि वायु प्रदूषण, खासकर पीएम 2.5 से ज्यादा प्रदूषकों ने कोविड-19 से होने वाली मृत्यु दर को बढ़ाया. पीएम 2.5 का मतलब होता है वायु में 2.5 एमएम से कम वाले छोटे कण जो वायु में घुलकर सांस के जरिए शरीर में प्रवेश कर जाते हैं. यह विशेष रूप से श्वसन प्रणाली को प्रभावित करते हैं. ताइवान के शोध में यह पाया गया कि जब पीएम 2.5 की मात्रा को बढ़ाया गया तो चूहों में खास प्रोटीन ACE2 उत्प्रेरित हो जाता है जो संक्रमण की दर को तेजी से बढ़ा देता है. इससे यह संकेत मिलता है कि पीएम 2.5 ना केवल वायरस के प्रसार को बढ़ाता है, बल्कि यह बीमारी की गंभीरता को भी प्रभावित करता है, जिससे संक्रमण का प्रभाव और भी ज्यादा बढ़ जाता है. शोध के मुताबिक वैज्ञानिकों ने चूहों पर किए गए प्रयोगों के माध्यम से यह देखा कि पीएम 2.5 के संपर्क में आने से श्वसन प्रणाली में एसीई2 प्रोटीन तेजी से उत्प्रेरित हो जाती है जिससे वायरस के संक्रमण में वृद्धि हो जाती. इसके परिणामस्वरूप चूहों के फेफड़ों में एसीई और एसीई2 प्रोटीन की मात्रा में भी वृद्धि हुई और इस कारण सार्स-सीओवी-2 के प्रभाव में और भी वृद्धि देखी गई.
वायु प्रदूषण पर कड़े कदम उठाने की जरूरतशोधकर्ताओं ने इस निष्कर्ष को एक महत्वपूर्ण साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया जो यह साबित करता है कि पीएम 2.5 के संपर्क में आने से एसीई-2 प्रोटीन की अभिव्यक्ति बढ़ती है और इससे कोविड-19 संक्रमण के प्रसार और गंभीरता में वृद्धि होती है. यह परिणाम पर्यावरणीय प्रदूषण और कोविड-19 के बीच एक मजबूत संबंध को रेखांकित करते हैं.इसके अलावा, एक अन्य अध्ययन में यह भी सामने आया है कि वायु प्रदूषण और कोविड-19 के बीच एक गहरा संबंध है. स्पेन के बार्सिलोना इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल हेल्थ के शोधकर्ताओं ने पाया कि वायु प्रदूषण न केवल कोविड-19 के संक्रमण की गंभीरता को बढ़ाता है, बल्कि यह लंबे समय तक रहने वाले कोविड लक्षणों को भी प्रभावित कर सकता है. अध्ययन में कहा गया कि पीएम 2.5 और पीएम 10 जैसे प्रदूषक तत्वों के संपर्क में आने से कोविड-19 के खतरे में वृद्धि हो सकती है. हालांकि वायु प्रदूषण कोसीधे तौर पर लंबे समय तक कोविड के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता, लेकिन यह शुरुआती संक्रमण की गंभीरता को बढ़ा सकता है, जो अंततः लंबे समय तक कोविड के जोखिम को बढ़ा देता है. यह शोध वैश्विक स्तर पर वायु प्रदूषण और कोविड-19 के बीच एक नए प्रकार के संबंध की ओर इशारा करता है. इन निष्कर्षों से यह स्पष्ट होता है कि वायु प्रदूषण, विशेष रूप से पीएम 2.5, कोविड-19 के प्रसार और गंभीरता को बढ़ावा देता है. इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि सरकारें और स्वास्थ्य संगठन वायु प्रदूषण के नियंत्रण के लिए कड़े उपायों को अपनाएं ताकि भविष्य में कोविड-19 जैसी महामारी की गंभीरता को कम किया जा सके और इस तरह के पर्यावरणीय कारकों के प्रभाव को रोका जा सके. (एजेंसी) -
द न्यूज़ इंडिया समाचार सेवा
एसीआई में कोरोनरी ऑर्बिटल एथेरेक्टोमी पद्धति से हृदय रोगियों के लिए उपचार सुविधा की शुरुआत
स्वास्थ्य मंत्री श्री श्याम बिहारी जायसवाल ने ऐसीआई की पूरी टीम की प्रशंसा की
रायपुर : पंडित जवाहर लाल नेहरू स्मृति चिकित्सा महाविद्यालय रायपुर से संबद्ध डॉ. भीमराव अम्बेडकर स्मृति चिकित्सालय स्थित एडवांस कार्डियक इंस्टीट्यूट में दो हृदय रोगियों के धमनियों में जमे कैल्शियम को ऑर्बिटल एथेरेक्टोमी प्रक्रिया के जरिये हटाते हुए हृदय में रक्त प्रवाह को सुगम बनाया गया। एथेरेक्टोमी एक ऐसी प्रक्रिया है जिसका उपयोग एंजियोप्लास्टी से पहले कैल्सीफाइड ब्लॉक (प्लाक) को खोलने के लिए किया जाता है। इसमें 1.25 मिमी का डायमंड-कोटेड ड्रिल डिवाइस होता है जो कैल्शियम को लगभग दो माइक्रोन आकार के महीन कणों में बदल देता है। सरल शब्दों में कहें तो यह कैल्शियम को चूर-चूर करके महीन आकार के कण बना देता है। इस पद्धति के जरिये धमनियों को अच्छी तरह से साफ करके रक्त प्रवाह को सुगम बनाया जाता है। आर्बिटल एथेरेक्टोमी का उपयोग भारी (हैवी) कैल्सीफाइड कोरोनरी धमनियों वाले रोगियों के इलाज के लिए किया जाता है।इस प्रक्रिया में एक पतले कैथेटर के जरिये धमनी के अंदर अपने अक्ष पर घूमने वाला हीरे का लेप किये हुए बर को प्रविष्ट कराया जाता है जो कैल्सिफाइड सतह को धीरे-धीरे पीस कर बाहर निकालता है और धमनी की सतह को चिकना कर देता है। इस चिकनी सतह में रक्त का प्रवाह सुगमता से होता है जिससे दिल के दौरे पड़ने की संभावना कम हो जाती है।स्वास्थ्य मंत्री श्री श्याम बिहारी जायसवाल ने मरीजों के सफल उपचार के लिए टीम को बधाई देते हुए कहा कि मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय के नेतृत्व में राज्य में स्वास्थ्य सुविधाओं का तेजी से विस्तार हो रहा है। एसीआई में हृदय रोग विशेषज्ञों की अनुभवी एवं समर्पित टीम ने कोरोनरी ऑर्बिटल एथेरेक्टोमी पद्धति से हृदय रोगियों के लिए नयी उपचार सुविधा की शुरुआत की है। शासकीय चिकित्सालय में इस तकनीक का उपयोग कर एसीआई ने उपलब्धि हासिल की है। हृदय रोग के उपचार की दिशा में एसीआई की टीम द्वारा किये जा रहे नवाचार मरीजों में अच्छे जीवन की नई उम्मीद जगा रहे हैं।
केस के संबंध में विस्तृत जानकारी देते हुए कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. स्मित श्रीवास्तव ने बताया कि रायपुर निवासी 77 वर्षीय को-मॉर्बिड बुजुर्ग मरीज को बी. पी., शुगर की समस्या के साथ-साथ उनके हृदय की पम्पिंग क्षमता काफी कम थी। एंजियोग्राफी रिपोर्ट में हृदय की बायीं मुख्य एवं तीनों नसों में कैल्शियम का जमाव था।
इस वजह से सामान्य एंजियोप्लास्टी पद्धति से एंजियोप्लास्टी करना संभव नहीं था। ऐसी स्थिति में ऑर्बिटल एथरेक्टोमी प्रक्रिया के जरिए कैल्शियम को हटाते हुए एंजियोप्लास्टी की गई। वहीं भिलाई निवासी 68 वर्षीय मरीज की नसों में कैल्शियम का जमाव था। बाहर के अस्पताल में एंजियोग्राफी करवाया था। वहां पर बाईपास सर्जरी का सुझाव दिया गया। मरीज वहां से सुझाव लेकर एसीआई आया और एसीआई में उसके लेफ्ट साइड की मुख्य नस में बहुत ज्यादा कैल्शियम जमा होने की वजह से ऑर्बिटल एथेरेक्टोमी पद्धति का उपयोग करते हुए सफलतापूर्वक एंजियोप्लास्टी कर दी गई। एक दिन में ही मरीज स्वस्थ होकर अपने घर चला गया।क्या है ऑर्बिटल एथेरेक्टोमी प्रक्रियाकार्डियोलॉजी के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. कुणाल ओस्तवाल ने जानकारी देते हुए बताया कि ऑर्बिटल एथेरेक्टोमी प्रक्रिया में धमनी में एक पतली कैथेटर डाली जाती है।
इस कैथेटर में एक घूमता हुआ हीरा-लेपित बर (डायमंड कोटेड बर (किसी उपकरण या धातु की खुरदरी सतह)) होता है जो विशेष वृत्ताकार धुरी पर 360 डिग्री घूमते हुए नसों के अंदर जमे हुए कैल्शियम को खुरचकर निकालता है। कैल्शियम के जमाव को तोड़कर या पीसकर, यह प्रक्रिया रक्त प्रवाह के लिए एक चिकनी सतह बनाती है, जिससे एंजियोप्लास्टी करने एवं स्टंट लगाने में सहूलियत प्राप्त होती है और रुकावटों की संभावना कम हो जाती है। ऐसी नसें जिनमें सामान्य तरीके से एंजियोप्लास्टी एवं स्टंटिंग नहीं की जा सकती। उनमें यह तरीका अपनाया जाता है। यह कैल्शियम को इतने छोटे टुकड़ों में तोड़ता है कि वह आर्टरिज के कैपिलरी के द्वारा ही निकल जाता है। -
एक स्टडी में बताया गया है कि खाने में रेड मीट या प्रोसेस्ड मीट की बजाय नट्स को शामिल करने से समय से पहले होने वाली मौत को 8-17% तक कम किया जा सकता है और कई बीमारियों का खतरा घटाया जा सकता है.Best Diet : खानपान की वजह से आजकल कई खतरनाक और जानलेवा बीमारियों का खतरा बढ़ रहा है. सही डाइट न लेने से लोग डायबिटीज, कैंसर और हार्ट डिजीज का शिकार बन रहे हैं. इनसे बचने के लिए सही डाइट बेहद जरूरी है. न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में पब्लिश एक स्टडी में बताया गया है कि खाने में रेड मीट या प्रोसेस्ड मीट की बजाय नट्स को शामिल करने से समय से पहले होने वाली मौत को 8-17% तक कम किया जा सकता है और कई बीमारियों का खतरा घटाया जा सकता है. आज हम आपको कुछ ऐसे फूड्स बताने जा रहे हैं, जिन्हें अगर डाइट में शामिल कर लें तो कैंसर, डायबिटीज और दिल की बीमारियों को भूल जाएंगे.
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1. ड्राई फ्रूट्स
ड्राई फ्रूट्स (Dry Fruits) खाने से दिल की बीमारियां, हाई कोलेस्ट्रॉल, कैंसर, कमजोरी, कब्ज, एनीमिया और मोटापे जैसी समस्याओं से छुटकारा मिल सकता है. नट्स में प्रोटीन और ऐसे फैट्स पाए जाते हैं, जो दिल की सेहत के लिए फायदेमंद होते हैं. इनमें पाए जाने वाले फाइबर, कैल्शियम और मैग्नीशियम जैसे तत्व बेहद फायदेमंद हैं. अखरोट में पॉलीफिनोल मौजूद होता है, जो कई तरह के कैंसर से बचा सकता है.
2. पालक
पालक (Spinach) खाने से आंखें और दिल हेल्दी रहते हैं. इससे कैंसर का खतरा दूर हो सकता है. पालक खाने से हडि्डयों की कमजोरी और कब्ज की समस्या छूमंतर हो सकती हैं. पालक में ल्यूटिन, बीटा-कैरोटीन और ज़ेक्सैथिन पाए जाते हैं. ये फाइटोकेमिकल्स कैंसर से बचाने में मददगार हो सकते हैं. इस हरी सब्जी में विटामिन-ए, सी, फोलेट, मैंगनीज और मैग्नीशियम भी मिलता है, जो बेहद फायदेमंद है.
3. ब्रॉकली स्प्राउट्स
ब्रॉकली स्प्राउट्स दिल की बीमारियों और कमजोरी से बचाने का काम करता है. इसे खाने से लिवर कैंसर, डायबिटीज और मानसिक समस्याओं का खतरा भी टलता है. ब्रॉकली स्प्राउट्स में कैंसर से निपटने वाला सल्फोराफेन पाया जाता है, जो एंटी माइक्रोबिएल और न्यूरोप्रोटेक्टिव ही है.
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4. मसूर दाल
मसूर की दाल डाइट में शामिल कर कोलेस्ट्रॉल और ब्लड शुगर कंट्रोल कर सकते हैं. इसे खाने से वजन, कब्ज, एनीमिया, हार्ट डिजीज और कैंसर जैसी बीमारियां दूर ही रहती हैं. इस दाल में प्रोटीन और फाइबर भरपूर पाया जाता है. इसके अलावा आयरन, फोलेट, मैग्नीशियम और पोटेशियम भी मौजूद होते हैं, जो सेहत के लिए लाभकारी हैं.
5. खमीर वाली गोभी
पेट की सेहत के लिए खमीर वाली गोभी यानी सॉरक्राउट लाभकारी है. यह पत्तागोभी ही होता है, जो आंत, सूजन, वजन और पेट की समस्याओं से शरीर को दूर रखता है. इसमें पाए जाने वाले फाइबर, एंटीऑक्सीडेंट्स, विटामिन सी और के, आयरन, पोटेशियम, आयोडीन, कैल्शियम, मैग्नीशियम, मैगनीज और सोडियम सेहत को दुरुस्त रखने का काम करते हैं. (एजेंसी) -
Old pain back in winter season: पुराने लोगों से आपने अक्सर सुना होगा कि सर्दी के मौसम में पुराना दर्द वापस आ जाता है. इस बात में कितनी सच्चाई है, इसके लिए न्यूज 18 ने हड्डी रोग विशेषज्ञ डॉ. संदीप सिंह से बात की.
Old pain back in winter season : यूं तो सर्दी आते ही कई लोगों के हाथ-पैरों के ज्वाइंट में दर्द होने लगता है लकिन जिन लोगों को हड्डियों से संबंधित पहले से दिक्कत हैं, उन्हें सर्दी में बहुत परेशानी होती है. इसके अलावा अक्सर कहा जाता है कि जब भी सर्दी आती है चाहे किसी को हड्डियों की कोई बीमारी हो या न हो, अगर कभी चोट लगी होती है तो उसका दर्द भी वापस आ जाता है. क्या इस बात में सच्चाई है. आखिर इसका कारण क्या है. इस बात को लेकर न्यूज 18 ने मैक्स हेल्थकेयर में सीनियर कंसल्टेंट डॉ. संदीप सिंह से बात की.
क्या सच में विंटर में दर्द होताडॉ. संदीप सिंह ने बताया कि सर्दियों में जब ब्लड वैसल्स सिकुड़ती है तो जोड़ों में स्टीफनेस बढ़ जाती है. यानी जोड़ों के पास हार्डनेस बढ़ने लगता है. इसलिए ऑस्टयोपोरोसिस, ऑर्थराइटिस या जिन लोगों को पहले से इस तरह की समस्याएं हैं उनकी हड्डियों में दर्द बढ़ जाता है. लेकिन जरूरी नहीं कि सिर्फ हड्डियों में दर्द ही हो, अगर मांसपेशियों में गहरी चोट लगी है तो भी यह दर्द वापस आ सकता है. दरअसल, तापमान घटने से हड्डियों में जाम होने लगता है.यह नेचुरल प्रोसेस है. बाहर जब तापमान कम होता है तो शरीर इस हीट को अपने अंदर रखने की कोशिश करता है. इसलिए बॉडी के अंदर हीट ज्यादा रहती है. इसलिए वह हीट को छोड़ना नहीं चाहती. लेकिन बॉडी का बाहरी अंग जैसे कि स्किन, हाथ, पैर आदि ठंडे होने लगते हैं. क्योंकि ब्लड वैसल्स सिकुड़ने से वहां तक सर्कुलेशन कम होने लगता है. इससे नसें भी सिकुड़ने लगती है. इसलिए इन अंगों में ऑक्सीजन की सप्लाई कम होने लगती है और दर्द होने लगता है.
क्यों पुराना आ जाता है वापसजहां पहले से चोट लगी है चाहे वह ठीक ही क्यों न हो गया हो, वहां दर्द उभर जाता है. दरअसल, जब हड्डियों में चोट लगती है तो उस जगह की मांसपेशियां और नसें डैमेज हो जाती है. दवा या प्लास्टर लगाने से बॉडी तो हील हो जाती है लेकिन वहां की जो कुदरती क्षमता होती है वह प्रभावित हो जाती है. इससे वहां की मांसपेशियों और नसों में वो ताकत नहीं रह पाती जो पहले से रहती है. इसलिए जब सर्दी आती है तब हड्डियों में लगी पुरानी चोट वापस आ सकती है और दर्द होने लगता है.हालांकि यह सबके साथ हो, जरूरी नहीं. कुछ लोगों में सब कुछ पहले जैसा हो जाता है और फिर उसे दर्द नहीं होता. लेकिन जिन लोगों में दर्द के कारण मांसपेशियों को क्षति होती है, तो उन जगहों पर दोबारा कुदरती ताकत नहीं आ पाती है. इसलिए यह सबसे वीकेस्ट प्वाइंट हो जाता है. इसलिए इन जगहों पर सर्कुलेशन कम हो जाता.ऐसे में यहां दर्द होना शुरू हो जाता है.
क्या करें कि दर्द न होडॉ. संदीप सिंह ने बताया कि पुराना दर्द हो या सर्दी का दर्द, इससे बचने का सबसे बेहतर तरीका है कि ठंड से खुद को बचाएं. ज्यादा ठंड में बाहर कम निकलें. घर को अंदर से गर्म रखें. जहां दर्द हो रहा है वहां गर्म पानी से सिंकाई करें. अगर सूजन के साथ दर्द है तो गर्म पानी में नमक डालकर इससे सिंकाई करें. सर्दी में अच्छे से शरीर को ढके. बर्तन साफ करते समय गर्म पानी का इस्तेमाल करें. अगर हड्डियों की समस्या है तो बर्फ में जाने से बचें.(एजेंसी) -
लोगों को लगता है कि जो नॉनवेज खाने वालो में वेजिटेरियन के मुकाबले ज्यादा ताकत होती है, लेकिन एक रिसर्च में खुलासा हुआ है कि वेजिटेरियन डाइट लेने वाले लोगों को 32% तक हार्ट हेल्थ का खतरा कम होता है.
Benefits Of Vegetarian Diet : वेजिटेरियन फूड के फायदे जानकर आजकल कई लोग नॉनवेज (Non Veg) छोड़कर वेजिटेरियन (vegetarian) या वीगन डाइट फॉलो करते हैं. बड़े-बड़े सेलिब्रिटी जैसे- विराट कोहली, अनुष्का शर्मा, जॉन अब्राहम भी वेजिटेरियन हो गए हैं, क्योंकि वेजिटेरियन डाइट के बेहतरीन फायदे होते हैं.
हाल ही में इंग्लैंड और स्कॉटलैंड में हुई एक रिसर्च में भी पाया गया है कि नॉन वेजिटेरियन की तुलना में वेजिटेरियन लोगों में दिल की बीमारी (Heart disease) से मौत का जोखिम 32% तक कम है, क्योंकि वेजिटेरियन डाइट में फाइबर और मिनरल्स भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं, जो हार्ट हेल्थ को बढ़ावा देते हैं. वहीं, कोलेस्ट्रॉल लेवल को भी कम करते हैं, तो चलिए आपको बताते हैं इस रिसर्च के बारे में और वेजिटेरियन डाइट से होने वाले फायदे के बारे में.
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क्या कहती है वेजिटेरियन डाइट पर की गई रिसर्च
हाल ही में इंग्लैंड और स्कॉटलैंड में हुई एक रिसर्च में बताया गया है कि वेजिटेरियन खाने में सैचुरेटेड फैट कम मात्रा में पाया जाता है, जो हार्ट संबंधी बीमारियों के खतरे को कम करता है. इतना ही नहीं वेज डाइट में एंटीऑक्सीडेंट्स, फाइबर, मिनरल भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं, जो आपकी हार्ट हेल्थ को बेहतर करते हैं. रिसर्च में 45000 लोगों की ईटिंग हैबिट को 1 साल तक मॉनिटर किया गया, जिसमें पाया गया कि नॉनवेज डाइट की तुलना में वेज डाइट हार्ट हेल्थ के लिए ज्यादा फायदेमंद है.
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वेज और प्लांट बेस्ड डाइट के फायदे
एनिमल बेस्ड डाइट की तुलना में प्लांट बेस्ड डाइट का सेवन करने से न सिर्फ हार्ट हेल्थ बल्कि क्रॉनिक इन्फ्लेमेशन भी कम होता है. इससे ब्लड प्रेशर कंट्रोल रहता है, साथ ही ब्लड शुगर लेवल को बैलेंस करने में भी मदद मिलती है. प्लांट बेस्ड डाइट का सेवन करने से पाचन तंत्र दुरुस्त रहता है.
पेट संबंधी समस्याएं नहीं होती है और वेट लॉस के लिए भी प्लांट बेस्ड फूड आइटम बेहतर माने जाते हैं. एक्सपर्ट्स का मानना है कि वेजिटेरियन डाइट लेने के साथ ही रोज एक्सरसाइज करना भी जरूरी है. इसके साथ खानपान का विशेष ध्यान रखना, स्ट्रेस ना लेना और हर 6 महीने में लिपिड प्रोफाइल टेस्ट करना भी जरूरी होता है. (एजेंसी) -
अगर सुबह उठने के बाद पेट ठीक से साफ न हो तो दिनभर गैस, एसिडिटी और कई अन्य समस्याएं होने लगती हैं. कब्ज और बवासीर से परेशान लोगों को रोजाना खाना चाहिए ये 1 फल.गलत खान-पान की वजह से कब्ज की समस्या बढ़ जाती है. सर्दियों में ज्यादा गर्म चीजों का सेवन और कम पानी पीने से लोगों को कब्ज, गैस, एसिडिटी और अपच की समस्या हो जाती है. कई बार घंटों पॉट पर बैठने के बाद भी पेट ठीक से साफ नहीं हो पाता है. अगर आपको भी ऐसी ही समस्या है. अगर आप कब्ज या बवासीर के मरीज हैं तो डाइट में ये एक फल जरूर शामिल करें. इसे दिन में एक बार खाने से आपका पेट बिल्कुल साफ हो जाएगा. ये फल फाइबर से भरपूर होता है और ये सेहत के लिए किसी वरदान से कम नहीं है. जानिए कब्ज से राहत पाने के लिए कौन सा फल खाना चाहिए.
पुरानी से पुरानी कब्ज का खात्मा
इस फल में पुरानी से पुरानी कब्ज को भी ठीक करने की शक्ति होती है. सर्दियों में मिलने वाले हरे और हल्के पीले रंग के अमरूद कब्ज और बवासीर के लिए फायदेमंद माने जाते हैं. सुबह अमरूद खाने से मिनटों में पेट साफ हो जाता है. अमरूद पेट और पाचन के लिए बहुत अच्छा फल माना जाता है. अगर आप हर रोज 1 अमरूद खाते हैं तो कब्ज की समस्या हमेशा दूर रहेगी.
अमरूद में काला नमक मिलाकर खाएं
फाइबर से भरपूर अमरूद बवासीर के लिए सबसे कारगर फल माना जाता है. कब्ज के लिए सबसे फायदेमंद फल कौन सा है? दिन में किसी भी समय एक पका हुआ अमरूद खाएं. आप अमरूद पर थोड़ा सा काला नमक लगाकर भी खा सकते हैं. इससे अमरूद का स्वाद काफी बढ़ जाता है. अमरूद को पाचक माना जाता है. इसलिए जिनका पेट साफ नहीं रहता उन्हें अमरूद खाना चाहिए. हल्का पका हुआ अमरूद खाना ज्यादा फायदेमंद रहेगा.
अमरूद में सेब से ज्यादा गुण होते हैं
अमरूद खाने के फायदे कहा जाता है कि अमरूद में सेब से भी ज्यादा गुण होते हैं. सर्दियों में अमरूद को सबसे फायदेमंद फल माना जाता है. अमरूद में विटामिन सी भरपूर मात्रा में होता है जो रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है. आयरन की कमी होने पर अमरूद का सेवन करना चाहिए. अमरूद में पोटैशियम, मैग्नीशियम और फाइबर होता है, जो रक्तचाप को नियंत्रित करता है और हृदय स्वास्थ्य को बेहतर बनाता है। कैलोरी में कम होने के कारण अमरूद वजन घटाने में भी मदद करता है. अमरूद डायबिटीज के मरीजों के लिए भी काफी फायदेमंद फल माना जाता है.(एजेंसी) -
Health News : करेला अपने औषधीय गुणों के कारण डायबिटीज के मरीजों के लिए बेहद लाभकारी है। न्यूट्रिशनिस्ट के अनुसार, करेले में इंसुलिन जैसे गुण होते हैं, जो डायबिटीज के मरीजों के लिए बेहद फायदेमंद साबित होते हैं। इसमें मौजूद यौगिक जैसे पॉलीपेप्टाइड-पी (प्लांट इंसुलिन), ग्लाइकोसाइड, और चरैन्टिन ब्लड शुगर लेवल को नियंत्रित करने में मदद करते हैं। यह न केवल ब्लड शुगर लेवल को नियंत्रित करता है, बल्कि इसके सेवन से कई और स्वास्थ्य लाभ भी होते हैं।
ये यौगिक शरीर में इंसुलिन की तरह काम करते हैं और टाइप 2 डायबिटीज के मरीजों के लिए विशेष रूप से फायदेमंद होते हैं। करेला विटामिन और खनिजों से भरपूर है। इसमें विटामिन ए, विटामिन सी, आयरन, कैल्शियम, पोटैशियम, जिंक और मैग्नीशियम जैसे पोषक तत्व पाए जाते हैं। इसके अलावा, इसमें मौजूद एंटीऑक्सीडेंट शरीर को डिटॉक्सिफाई करने और कोशिकाओं की मरम्मत करने में मदद करते हैं।करेला भूख को कम करने में भी सहायक होता है। यह बार-बार लगने वाली भूख और मीठा खाने की क्रेविंग को नियंत्रित करता है, जिससे डायबिटीज के मरीजों को अपने शुगर लेवल को स्थिर बनाए रखने में मदद मिलती है। करेला कई रूपों में सेवन किया जा सकता है। इसका जूस बनाकर पीना सबसे लोकप्रिय है। जूस के स्वाद को बेहतर बनाने के लिए इसमें नींबू, सेब का रस या खीरा मिलाया जा सकता है। इसके अलावा, इसे सब्जी, अचार, या अन्य व्यंजनों में शामिल किया जा सकता है। हालांकि करेला कई फायदे देता है, लेकिन इसका सेवन सीमित मात्रा में ही करना चाहिए।(एजेंसी) -
High Protein Foods: हमारे शरीर के हर कतरे में प्रोटीन मौजूद है. मसल्स बनाने से लेकर खून बनाने तक में प्रोटीन की जरूरत पड़ती है. प्रोटीन की कमी से पूरा शरीर का सिस्टम बिगड़ सकता है. इसलिए आपको यहां हम प्रोटीन से लबरेज 5 सस्ते फूड के बारे में बता रहे हैं जो आपके लिए ताकतवर डोज साबित हो सकता है.
High Protein Foods : प्रोटीन हमारे शरीर का बिल्डिंग ब्लॉक है. इसके बिना हमारा काम एक सेकेंड भी नहीं चल सकता. हमारे शरीर के हर कतरे में प्रोटीन मौजूद है. प्रोटीन ही आपकी हड्डियों में मौजूद रहता है, प्रोटीन से कार्टिलेज बनता है, प्रोटीन से ही मसल्स बनते हैं, प्रोटीन से ही खून, स्किन, एंजाइम, हार्मोन यहां तक कि विटामिन भी बनते हैं. कोशिकाओं की मरम्मत, नई कोशिकाओं के निर्माण, टिशू के रिपेयर, शरीर के विकास में प्रोटीन का सबसे ज्यादा महत्व है. इतना ही नहीं, प्रोटीन हमारे शरीर में फ्लूड को बैलेंस भी करता है कट जाने पर खून में थक्का जमने में मदद भी करता है. ऐसे में जरा सोचिए कि अगर प्रोटीन की शरीर में कमी हो जाए तो इसका क्या असर हो सकता है. ऐसे में हम यहां यहां 5 फूड के बारे में बता रहे हैं जो प्रोटीन का ताकतवर डोज साबित हो सकता है. इससे आपको मसल्स में बायशेप या ट्राई शेप बनाने में बहुत मदद मिल सकता है.
5 शक्तिशाली प्रोटीन फूड
1. बींस वाली सब्जियां-आप अपने भोजन में रोजाना कुछ न कुछ बींस वाली सब्जियों को शामिल करें. हार्वर्ड मेडिकल हेल्थ के मुताबिक बींस वाली सब्जियों में प्रोटीन का खजाना छुपा होता है. इसका अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि एक कप पकी हुई बींस वाली सब्जी से 15 ग्राम प्रोटीन आपके शरीर को मिल सकता है. इतना ही नहीं बींस में उच्च गुणवत्ता वाली कार्बोहाइड्रैट, फाइबर, आयरन, फॉलेज, फॉस्फोरस, पोटाशियम, मैगनीज जैसे तत्व भरे होते हैं. रिसर्च में पाया जा चुका है कि बींस के सेवन से कोलेस्ट्रॉल और शुगर कम रहता है, ब्लड प्रेशर कंट्रोल रहता है और वजन पर लगाम लगता है. बींस में आप विभिन्न तरह की दालें, बींस हरी सब्जी, छोले, राजमा, चना, पिंटो आदि को शामिल कर सकते हैं. सबसे ज्यादा मसूर की दाल में प्रोटीन रहता है.
2. नट्स और सीड्स-बादाम, हेजलनट्स, अखरोट, मूंगफली, चिया सीड्स, पंपकिन सीड्स, सन फ्लावर सीड्स, पीनट बटर आदि प्रोटीन का पावरहाउस है. इन चीजों में प्रचूर मात्रा में प्रोटीन के साथ-साथ हेल्दी फैट, विटामिन और मिनिरल्स भी पाया जाता है. इन चीजों में बहुत अधिक कैलोरी भी रहती है जो शरीर को तुरंत ताकत देती है. नियमित रूप से कुछ दिन अगर इन चीजों को पानी में भिंगोकर खाया जाए तो शरीर में ताकत उबाल मारने लगती है. इससे आपको मसल्स बनाने में बहुत फायदा मिलेगा.
3. अंडा-एक अंडे का रोज सेवन करना चाहिए. डॉक्टर की यह सलाह है. अंडा प्रोटीन का खजाना होता है, यह बात लगभग सभी जानते हैं. एक अंडे में 5 से 6 ग्राम प्रोटीन मिल जाएंगे. इतना ही नहीं अंडे में कई तरह के विटामिन, मिनिरल्स, हेल्दी फैट और एंटीऑक्सीडेंट्स भी पाए जाते हैं. इसलिए आपको एक अंडा रोज खाना ही चाहिए. जो लोग बेजिटेरियन हैं, वे इसके बदले भीगे हुए ड्राई फ्रूट का सेवन करें.
4. क्वनोआ-क्विनोआ मोटा अनाज है. इसके फसल में दाने वाला अनाज होता है. इसकी खेती की जाती है. एक कप क्विनोओ से आपको 8 ग्राम प्रोटीन मिल जाएगा. इसके अलावा इसमें 5 ग्राम फाइबर भी होता है.
5. ओट्स-ओट्स यानी बार्ली प्रोटीन का खजाना होता है. आधे कप बार्ली में 5 ग्राम प्रोटीन और 4 ग्राम फाइबर होता है. ओट्स प्रोटीन के अलावा कई तरह के एंटीऑक्सीडेंट्स का खजाना है. ओट्स को कई तरह से खाया जाता है. ओट्स के अलावा हरी मटर, हेंप सीड्स, टोफू, सोयाबीन, डेयरी प्रोडक्ट आदि भी प्रोटीन के सस्ते स्रोत हैं.(एजेंसी) -
Indian Government Health Advisory: भारत सरकार ने बढ़ते प्रदूषण को लेकर चिंता जताई है. इससे निपटने के लिए केंद्र ने सभी राज्य सरकारों से साथ आने की अपील की है. साथ ही जरूरी दिशा-निर्देश भी दिए हैं.
Health Advisory To All States : केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने वायु प्रदूषण पर आज 19 नवंबर, सोमवार को सभी राज्यों को पत्र लिखकर निर्देश जारी किए हैं. केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव पुण्य सलिला श्रीवास्तव ने वायु प्रदूषण को लेकर चिंता जाहिर की है. मंत्रालय की तरफ से कहा गया है कि बच्चों, गर्भवती महिलाओं, बुजुर्गों, पहले से मौजूद बीमारियों वाले व्यक्तियों और प्रदूषण के संपर्क में आने वाले श्रमिकों सहित कमजोर आबादी विशेष रूप से जोखिम में है. वायु प्रदूषण को लेकर सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश जारी किए गए हैं, जिसमें मौजूदा स्वास्थ्य प्रणालियों को मजबूत करने और कमजोर समूहों और जोखिम वाले व्यवसायों के बीच जागरूकता बढ़ाने की हिदायत दी गई है.
वायु प्रदूषण पर स्वास्थ्य मंत्रालय का एक्शन
स्वास्थ्य मंत्रालय की तरफ से कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन और मानव स्वास्थ्य के लिए राज्य स्तरीय कार्य योजनाएं पहले से ही राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन और मानव स्वास्थ्य कार्यक्रम (एनपीसीसीएचएच) के तहत लागू हैं. अब अगला कदम यह होगा कि एनपीसीसीएचएच के तहत जलवायु परिवर्तन और स्वास्थ्य के लिए जिला और शहर स्तरीय कार्य योजनाएं विकसित की जाएं, जिसमें वायु प्रदूषण के लिए रणनीतियां शामिल हों. इसके अलावा, सभी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश में वायु प्रदूषण से संबंधित बीमारियों की निगरानी के लिए सेंटिनल अस्पतालों का नेटवर्क बढ़ाना भी अत्यंत महत्वपूर्ण है. मंत्रालय ने सभी राज्यों को इस मामले में काम करने के लिए कहा है.
वायु प्रदूषण पर हेल्थ एडवाइजरी
मंत्रालय की तरफ से वायु प्रदूषण पर जो हेल्थ एडवाइजरी जारी की गई है, उसमें सबसे पहले वायु प्रदूषण क्या होता है और इससे कितना खतरा है इस बात का जिक्र किया गया है. वायु प्रदूषण के कारण होने वाले खतरनाक पॉल्यूटेंट्स जैसे PM 2.5, PM 10, कार्बन मोनोऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड के बारे में बताया गया है. इसमें आईसीएमआर की रिपोर्ट का कभी जिक्र किया गया है. साल 2019 में 1.7 मिलियन भारतीयों की मृत्यु वायु प्रदूषण के कारण हुई थी.
भारत में वायु प्रदूषण के कारण होने वाली अक्षमता-समायोजित जीवन वर्ष (DALYs) 11.5 फीसदी है, जिसमें फेफड़ों की बीमारियां (COPD) 22.7 फीसदी, निचले श्वसन तंत्र के संक्रमण 15.5 फीसदी, फेफड़ों का कैंसर 11.3 फीसदी और अन्य बीमारी भी शामिल हैं. हृदय रोग (इस्केमिक हार्ट डिजीज) के मामले 24.9 प्रतिशत, स्ट्रोक के मामले 11.7 प्रतिशत, मधुमेह (डायबिटीज) के मामले 5.5 प्रतिशत और नवजात विकार 14.5 प्रतिशत मामले वायु प्रदूषण के कारण आ रहे हैं. वायु प्रदूषण के कारण 1.5 फीसदी लोगों को मोतियाबिंद की समस्या भी हुई है.
वायु प्रदूषण के क्या हैं कारण?
देश में वायु प्रदूषण के मुख्य स्रोत बाहरी वायु प्रदूषण (एंबिएंट एयर पॉल्यूशन), मानवीय गतिविधियों से उत्पन्न प्रदूषण, औद्योगिक उत्सर्जन (जीवाश्म ईंधन जलने, प्रक्रिया और फ्यूजिटिव उत्सर्जन), वाहनों का एमिशन, सड़क पर उड़ने वाली धूल, निर्माण और विध्वंस गतिविधियां, प्राकृतिक स्रोतों से उत्पन्न प्रदूषण, कूड़ा जलाना (कूड़ा, हॉर्टिकल्चर वेस्ट, फसल अवशेष आदि), खाना पकाने और आतिशबाजी के लिए ठोस ईंधन का उपयोग है. यह आंकड़े दर्शाते हैं कि वायु प्रदूषण भारत में स्वास्थ्य संबंधी गंभीर समस्याओं का कारण है और इसके लिए तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है.
वायु प्रदूषण का बुरा असर
वायु प्रदूषण से सबसे ज्यादा असर बच्चों, गर्भवती महिलाओं और बीमार लोगों पर होता है. स्वास्थ्य मंत्रालय से मिली जानकारी के मुताबिक वायु प्रदूषण से विशेष रूप से पांच वर्ष से कम आयु के बच्चे और गर्भवती महिलाओं पर खतरनाक असर हो सकता है. पहले के समय में लोगों को श्वसन, हृदय और सेरेब्रोवास्कुलर सिस्टम से जुड़ी बीमारियों से अधिक खतरा होता था.
इसके इलावा निम्न सामाजिक-आर्थिक स्थिति, खराब पोषण स्थिति, खराब मकान में रहने, खाना पकाने, हीटिंग और लाइटिंग के लिए अवैध ईंधन का उपयोग करने वाले लोग भी जोखिम में हैं. बाहरी काम करने वाले समूह जैसे यातायात पुलिस, निर्माण श्रमिक, सड़क साफ करने वाले, रिक्शा खींचने वाले, ऑटो-रिक्शा ड्राइवर, सड़क किनारे विक्रेता और अन्य बाहरी वायु प्रदूषित वातावरण में काम करने वाले लोग भी जोखिम में हैं. घरेलू कामकाज करने वाली महिलाएं, खाना पकाने के लिए आग जलाने और धूल के संपर्क में आने वाले लोग भी इस प्रदूषण का सामना कर रहे हैं.
पिछले महीने भी दिए गए थे निर्देश
पिछले महीने 19 अक्टूबर को भी स्वास्थ्य मंत्रालय की तरफ से बढ़ते वायु प्रदूषण के स्तर को देखते हुए निर्देश जारी किए गए थे. उन्हें निर्देशों का सख्ती से पालन करने और मौजूदा स्वास्थ्य प्रणालियों को मजबूत करने पर जोर दिया गया था, जिसमें सार्वजनिक जागरूकता अभियान को तेज करने, स्वास्थ्य देखभाल कार्यबल की क्षमता और प्रहरी निगरानी प्रणालियों में भागीदारी बढ़ाना, जलवायु परिवर्तन और मानव स्वास्थ्य पर सार्वजनिक जागरूकता बढ़ाना, व्यक्तिगत डीजल या पेट्रोल से चलने वाले वाहनों के अलावा सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा देना, डीजल-आधारित जनरेटर पर निर्भरता और धूम्रपान पर अंकुश लगाना शामिल था. इसके साथ ही घर में खाना पकाने के लिए स्वच्छ ईंधन का चयन करना, खेल-कूद जैसी आउटडोर गतिविधियां और व्यायाम प्रतिबंधित होना चाहिए.
वायु प्रदूषण से निपटने के लिए राज्यों को निर्देश वायु गुणवत्ता जानकारी प्राप्त करना राज्य स्वास्थ्य अधिकारी शहरों में दैनिक वायु गुणवत्ता डेटा की निगरानी करें, विशेष रूप से एनसीएपी शहरों में. सीपीसीबी वेबसाइट या राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से जानकारी प्राप्त की जा सकती है. समीर ऐप का भी उपयोग जानकारी प्राप्त करने के लिए किया जा सकता है.
स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत करना
वायु प्रदूषण से संबंधित स्वास्थ्य समस्याओं के लिए सेवाओं को मजबूत करना. सामुदायिक स्तर पर गतिविधियों के लिए वायु गुणवत्ता डेटा का उपयोग करना. जन जागरूकता अभियान आईईसी सामग्री: पोस्टर, जीआईएफ, ऑडियो-वीडियो स्पॉट, सोशल मीडिया संदेश. स्थानीय भाषाओं में अनुवादित आईईसी सामग्री और संदेश. सोशल मीडिया पर अभियान चलाना. जागरूकता अभियान के लिए चैनल सोशल मीडिया: ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब, व्हाट्सएप. पोस्टर, वॉल पेंटिंग, स्ट्रीट प्ले. रेडियो, टेलीविजन चैनल. सार्वजनिक परिवहन वाहन. स्वास्थ्य सेक्टर में क्षमता निर्माण और प्रदूषण से संबंधित बीमारियों पर निगरानी
स्वास्थ्य सेवाओं के लिए कार्य योजना विकसित करना (जिला, शहर स्तर आदि) प्रशिक्षण कैलेंडर प्रशिक्षण मॉड्यूल विकसित करना और ट्रेनिंग ऑफ ट्रेनर्स (TOT) का आयोजन कार्यक्रम अधिकारियों, निगरानी नोडल अधिकारियों, सामुदायिक स्तर पर कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित करना निगरानी और मॉनिटरिंग राज्य और केंद्र स्तर पर एनपीसीसीएचएच कार्यक्रम अधिकारियों की भूमिका सेंटिनल अस्पतालों की स्थापना और विस्तार प्रत्येक सेंटिनल अस्पताल से दैनिक वायु प्रदूषण से संबंधित बीमारियों की रिपोर्टिंग स्वास्थ्य सेवा प्रतिक्रिया तंत्र स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत करना डॉक्टरों और स्टाफ को प्रदूषण से संबंधित मुद्दों पर प्रशिक्षित करनामरीजों की देखभाल सेवाएं आपातकालीन सेवाएं रेफरल सेवाएं एम्बुलेंस सेवाएं आउटरीच सेवाएं दवाओं की उपलब्धता डायग्नोस्टिक लैब सेवाएं
मेडिकल उपकरण जैसे ऑक्सीजन आपूर्ति, नेबुलाइज़र, वेंटिलेटर
स्वास्थ सचिव की तरफ से कहा गया है कि वायु प्रदूषण हाल के वर्षों में एक महत्वपूर्ण स्वास्थ्य चुनौती बनकर उभरा है. वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) अक्सर खराब से लेकर गंभीर तक के स्तर की रिपोर्ट करता है. खासकर सर्दियों के महीनों के दौरान वायु प्रदूषण के स्वास्थ्य प्रभाव बहुआयामी हैं, जो न केवल गंभीर बीमारियों को बढ़ावा देते हैं, बल्कि श्वसन, हृदय और मस्तिष्क संबंधी प्रणालियों आदि को प्रभावित करने वाली पुरानी स्थितियों को भी बिगाड़ते हैं. इसलिए इस पर सभी को मिलकर काम करने की ज़रूरत है. (एजेंसी) -
Ragi Benefits : नए जेनरेशन में बहुत से लोगों ने रागी को खाया भी नहीं होगा. यह सुनहरे या काले रंग का बहुत बारीक दाने के रूप में होता है जैसा सरसों के दाने. कुछ दशक पहले तक संपन्न लोग इसे नहीं खाते थे लेकिन जब रागी में मौजूद गुणों के बारे में पता चला तो अब यह बड़े लोगों को भी नसीब नहीं होता है. दरअसल, रागी के आटे आमतौर पर मजदूरों को खिलाया जाता था. समय के साथ मजदूरों में भी संपन्नता आई तो इस रोटी को खाना बंद कर दिया. फिर इसकी उपज कम होने लगी लेकिन अब यह सुपरफूड बन चुका है. नतीजा सैकड़ो रुपये में भी नहीं मिल रहा. रागी मिलेट में आता है. पूरी दुनिया में मिलेट्स को लेकर जागरूकता बढ़ी है. रागी में अथाह कैल्शियम पाया जाता है. इसके साथ ही इसमें कई तरह के विटामिन, मिनिरल्स और फाइबर पाए जाते हैं. वहीं इसमें कई तरह के एंटीऑक्सीडेंट्स हैं जिनमें एंटी-कैंसर गुण भी होता है.रागी हार्ट डिजीज से लेकर डायबिटीज और मसल्स के लिए बेहद फायदेमंद है.अमेरिकी एनसीबीआई के रिसर्च पेपर के मुताबिक रागी कैंसर जैसी बीमारी के जोखिम को भी कम कर सकता है.
रागी के फायदे
1. हड्डियों की मजबूती के लिए– रागी के दाने में बेहिसाब कैल्शियम होता है. इतना ही नहीं इसमें जिंक, फॉस्फोरस और अन्य मिनिरल्स भी काफी होते है जो हड्डियों की मजबूती के लिए जरूरी है. अगर रागी की रोटियों का बचपन में सेवन किया जाए तो बड़े होने पर ऐसे बच्चों में हड्डियां बहुत मजबूत रहती है, ऑस्टियोपोरोसिस का खतरा बहुत कम हो जाता है.
2. डायबिटीज में- स्टडी के मुताबिक रागी के दाने में डाइट्री फाइबर बहुत ज्यादा होता है. इसलिए यह ग्लूटेन फ्री भी होती है. इसका मतलब हुआ कि रागी में ग्लाइसेमिक इंडेक्स बहुत कम होता है. रागी में 0.38 प्रतिशत कैल्शियम, 18 प्रतिशत डाइट्री फाइबर और 3 प्रतिशत फेनोलिक कंपाउंड पाया जाता है जिसके कारण यह एंटी-डायबेटिक और एंटी-ट्यूमरजेनिक बन जाता है. इसे खाने के बाद ब्लड शुगर नहीं बढ़ता है. जिन लोगों को डायबिटीज है उनके लिए रागी का सेवन बहुत फायदेमंद साबित हो सकता है.
3. कैंसर के जोखिम से बचाव- एनसीबीआई की रिसर्च के मुताबिक रागी में एंटी-कैंसर गुण होता है यानी यह कैंसर के जोखिम को कम करता है. स्टडी में कहा गया है कि रागी में मौजूद फेनोलिक कंपाउड पेट के कैंसर को रोकने में बहुत सक्षम है. रागी में मौजूद एंटी-ऑक्सीडेंट्स तत्व सेल्स से फ्री रेडिकल्स को कम करता है जिसके कारण कोशिकाओं के अंदर ऑक्सीडेटिव स्ट्रैस भी कम होता है. इससे कैंसर कोशिकाओं का पनपना मुश्किल हो जाता है.
4. हार्ट डिजीज के जोखिम को कम करती है-हेल्थ लाइन की खबर के मुताबिक रागी में मौजूद फाइबर पेट में चिपचिपा पदार्थ में बदल जाता है. यह फैट डिपॉजिट को खुद में चिपका लेता है जिससे कोलेस्ट्रॉल बढ़ने का खतरा बहुत कम हो जाती है. अध्ययन के मुताबिक रागी के सेवन से ट्राइग्लिसेराइड्स का लेवल भी कम हो सकता है.
5. उम्र के असर को कम करती-अध्ययन के मुताबिक रागी में फेनोलिक कंपाउड उम्र के असर को भी कम करता है. रागी में मौजूद पोलीफेनॉल बॉडी के फंक्शन को तेज कर देता है जिसके कारण स्किन में हमेशा ग्लोइंग बरकरार रहता है और इससे उम्र का असर कम हो जाता है.(एजेंसी) -
द न्यूज़ इंडिया समाचार सेवा
नेहरू चिकित्सा महाविद्यालय में बीएलएस एवं एसीएलएस के तीन दिवसीय प्रशिक्षण कार्यशाला का हुआ समापन
छात्रों ने विशेषज्ञों से हाई क्वालिटी सीपीआर, डिफिब्रिलेशन, कार्डियोवर्शन एवं पेसिंग का प्रशिक्षण प्राप्त कियारायपुर : कार्डियक अरेस्ट के केस में सही समय पर कार्डियोपल्मोनरी रिससिटेशन ( सीपीआर) नहीं मिलने पर रोगी की मृत्यु हो जाती है। कार्डियक अरेस्ट के केस में यह देखने को मिला है कि सही समय पर सीपीआर मिलने से व्यक्ति के जीवित रहने की संभावना 30 प्रतिशत तक बढ़ जाती है। वहीं सही समय पर सीपीआर नहीं मिलने पर हर एक मिनट में मृत होने की संभावना बढ़ती जाती है और लगभग 6 से 8 मिनट में मरीज की पूर्णतः मस्तिष्क क्षति हो जाती है जिसे मेडिकल भाषा में हाइपोक्सिक ब्रेन डैमेज कहते हैं।यह स्थिति तब निर्मित होती है जब मस्तिष्क को पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिलता है।’’ यह जानकारी बेसिक लाइफ सपोर्ट एवं एडवांस कार्डियक लाइफ सपोर्ट की कार्यशाला के अंतिम दिन प्रशिक्षण देते हुए कोर्स इंस्ट्रक्टर डॉ. प्रतिभा जैन शाह ने प्रतिभागी चिकित्सा छात्रों को दी। पंडित जवाहर लाल नेहरू स्मृति चिकित्सा महाविद्यालय के चौथी मंजिल स्थित स्किल लैब में आयोजित इस कार्यशाला में प्रतिभागियों को आज हाई क्वालिटी सीपीआर, डिफिब्रिलेशन, कार्डियोवर्शन एवं पेसिंग की प्रैक्टिस करवाई गई।
पं. नेहरू चिकित्सा महाविद्यालय एवं अम्बेडकर अस्पताल के एनेस्थेसिया एवं पेन मैनेजमेंट विभाग द्वारा आयोजित इस कार्यशाला की कोर्स कोऑर्डिनेटर एवं इंस्ट्रक्टर विभागाध्यक्ष डॉ. प्रतिभा जैन शाह एवं इमर्जेंसी मेडिसिन विशेषज्ञ डॉ. शिवम पटेल हैं। इनके साथ ही श्री बालाजी इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस रायपुर की डॉ. अनीषा नागरिया, रामकृष्ण केयर हॉस्पिटल रायपुर के इमरजेंसी मेडिसिन विशेषज्ञ डॉ. बालाजी शाह, गुजरात के डॉ. जनक खम्बोल्झा और एम्स जोधपुर की डॉ. भारती गिंडलानी ने छात्रों को बीएलएस एवं एसीएलएस कोर्स का प्रशिक्षण दिया।आपात स्थितियों में लोगों की जीवन रक्षा करने के लिए आयोजित इस कार्यशाला की सराहना करते हुए अधिष्ठाता डॉ. विवेक चौधरी ने कहा कि व्यक्ति को कार्डियक अरेस्ट कहीं भी, किसी भी जगह हो सकता है ऐसे में बेसिक लाइफ सपोर्ट कोर्स से प्राप्त प्रशिक्षण की मदद से हम लोगों का बहुमूल्य जीवन बचा सकते हैं। यह कोर्स हमें सिखाता है कि विपरीत पस्थितियों में बिना घबराये नाड़ी और श्वसन गति का परीक्षण करके हम व्यक्ति की जान बचा सकते हैं।इमर्जेंसी मेडिसिन विशेषज्ञ डॉ. शिवम पटेल ने हाई क्वालिटी सीपीआर का प्रशिक्षण देते हुए बताया कि 30 बार चेस्ट कंप्रेशन के बाद 2 बार ब्रेथ देना होता है। सीपीआर कोई भी कर सकता है इसके लिए डॉक्टर या मेडिकल टीम होना जरूरी नहीं है। आजकल स्कूल-कॉलेज में भी बेसिक कार्डियक लाइफ सपोर्ट की ट्रेनिंग दी जाती है। लोगों की अधिक से अधिक जीवन रक्षा के लिए इस प्रशिक्षण पर और अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है और ऐसे प्रोग्राम को सपोर्ट करने की जरूरत भी है।विशेषज्ञों ने बेसिक लाइफ सपोर्ट के अंतर्गत छात्रों को चेस्ट कंप्रेशन (जीवन रक्षा के लिए छाती पर दबाव डालने की विधि) की प्रक्रिया के बारे में विस्तार से बताया और मैनकिन (डमी) में बारी-बारी से सबको अभ्यास करवाया। एडवांस कार्डियक लाइफ सपोर्ट के बारे में पढ़ाते हुए विशेषज्ञ डॉ. जनक खम्बोल्झा ने कार्डियक अरेस्ट के पहले मरीज में होने वाले साइन और सिम्पटंम्स के बारे में पढ़ाया। उन्होंने कार्डियक अरेस्ट को रोकने के उपाय बताये। मरीज को कब, कितने एनर्जी से शॉक देना है और हार्ट रेट एवं रिदम को नॉर्मल लाने की प्रैक्टिस करवायी गई। सभी छात्रों को ग्रुप में बांट कर, बारी-बारी सबको टीम लीडर बनाकर रियल टाइम केस सिनेरियो देकर प्रैक्टिस करवाई गई। सभी की लिखित और प्रायोगिक परीक्षा ली गई जिसमें उत्तीर्ण होने का अंक 84 प्रतिशत था। सभी छात्र इस परीक्षा में शत-प्रतिशत उत्तीर्ण हुए। -
Symptoms of Cancer : बीते दिन यानी 7 नवंबर को हर साल भारत में कैंसर के बढ़ते बोझ के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए ‘राष्ट्रीय कैंसर जागरूकता दिवस’ (NCAD) मनाया जाता है. इस दिन को सेलिब्रेट करने के पीछे मुख्य उद्देश्य है लोगों को कैंसर के जोखिमों, रोकथाम और उपचार के बारे में शिक्षित और जागरूक करना. ये सच है कि कैंसर जैसी घातक और जानलेवा बीमारी का नाम सुनकर ही लोगों में डर बैठ जाता है. कुछ लोग कैंसर को हरा नहीं पाते तो कुछ अपनी जिंदगी को बचाने के लिए इस जंग में जीत जाते हैं. हालांकि, कैंसर के लक्षणों को शुरुआत में ही भांप जाएं तो इससे बच पाना आसान हो जाता है. जो इसके लक्षणों को नहीं भांप पाते हैं, उन्हें कई गंभीर परिणामों का सामना करना पड़ता है. ऐसे में कैंसर के शुरुआती लक्षणों, इसके प्रकार और कैंसर को मात कैसे दिया जा सकता है, इन तमाम महत्वपूर्ण बातों पर विस्तार से बताया फोर्टिस हॉस्पिटल के अतिरिक्त निदेशक एवं मेडिकल ऑन्कोलॉजी के प्रमुख डॉ. सुहैल क़ुरैशी ने…
शुरुआत में लक्षणों को पहचान लें तो उपचार संभव (Symptoms of cancer and treatment)
डॉ. सुहैल क़ुरैशी कहते हैं कि बेशक कैंसर एक गंभीर बीमारी है, लेकिन समय रहते इसके शुरुआती लक्षणों को पहचान लिया जाए तो इसका इलाज भी उपलब्ध है. जब कोई पीड़ित अपनी बीमारी को लेकर मनोवैज्ञानिक रूप से तैयार रहता है तो डॉक्टर भी उसका उपचार बेहतर तरीके से कर पाते हैं.
कई तरह के कैंसर हैं और सभी के अलग-अलग शुरुआती लक्षण होते हैं. हालांकि, कई बार लोग इन लक्षणों को पहचान नहीं पाते हैं. ब्रेस्ट कैंसर की बात करें तो इसमें शुरुआती लक्षण (Symptoms of Breast cancer) गांठ, निप्पल से डिस्चार्ज होना, निप्पल का लाल होना, एक ब्रेस्ट का साइज दूसरे से अलग होना. ऐसे में महिलाएं ब्रेस्ट कैंसर के इन शुरुआत लक्षणों को पहचान कर डॉक्टर से तुरंत संपर्क कर सकती हैं.
फूड पाइप के कैंसर की बात करें तो इसमें शुरुआत में खाना अटकने लगता है. भोजन एवं पानी का नीचे न जा पाना, निगलते समय दर्द या दिक्कत महसूस करना. वहीं, खून की उल्टी होना, वजन कम होना, उल्टी होना, भूख न लगना आदि ये सब पेट के कैंसर के लक्षण होते हैं. शरीर के किसी भी हिस्से में गांठ होना, सूजन आना, बिना वजह वजन कम होना आदि लक्षण कैंसर के हो सकते हैं, इसलिए ऐसे लक्षण दिखने पर डॉक्टर से सलाह लें.
कैंसर के प्रकार और उपचार
डॉ. सुहैल क़ुरैशी कहते हैं कि कैंसर कई प्रकार के होते हैं. कुछ कैंसर बहुत तेजी से फैलते हैं, जिनका उपचार जल्दी करना पड़ता है. कुछ कैंसर बहुत धीमी रफ्तार से फैलते हैं, जिनका उपचार ओरल टैबलेट के जरिए भी किया जा सकता है. लक्षण नजर आने पर पहले सबसे पहले इस बात की पुष्टि करनी चाहिए कि यह कैंसर (Cancer) है या नहीं. इसके लिए पूरी बॉडी का स्कैन कराने की जरूरत पड़ती है. इसमें बीमारी के स्तर का पता चलता है कि बीमारी कहां-कहां फैली हुई है. इसके अलावा, बायोप्सी टेस्ट भी किया जाता है, जिससे मरीज में कैंसर की पुष्टि होती है और ये पता चलता है कि मरीज को किस प्रकार का कैंसर है.
कुछ कैंसर ऐसे होते हैं, जिसमें बायोप्सी के बिना ही सिर्फ ब्लड टेस्ट के जरिए ये पता चल जाता है कि शरीर में कैंसर है या नहीं. कुछ कैंसर काफी अग्रेसिव होते हैं. ऐसे में इस बात की संभावना रहती है कि वह दोबारा अटैक कर दें. ऐसे में समय-समय पर जांच कराने के लिए हॉस्पिटल जाना ही पड़ता है.
कैंसर से बचाव के उपाय
कैंसर से बचने के लिए लाइफस्टाइल में बदलाव लाना बहुत जरूरी है. आजकल लोगों की जीवनशैली बहुत ही खराब होती जा रही है. ना एक्सरसाइज, ना हेल्दी ईटिंग हैबिट्स. स्मोकिंग, एल्कोहल, पान मसाला का इस्तेमाल बिल्कुल न करें. पोषक तत्वों से भरपूर डाइट लेना बेहद जरूरी है. शारीरिक रूप से एक्टिव रहें, एक्सरसाइज करें. समय-समय पर अपने डॉक्टर से परामर्श लेते रहे.(एजेंसी) -
Dry Fruits Powder Benefits : पुरानी कहावत है कि अगर पहलवानों जैसा शरीर बनाना है, तो दूध के साथ ड्राई फ्रूट्स खाने चाहिए. शरीर को पावरफुल बनाने के लिए काजू, बादाम, पिस्ता और किशमिश जैसे ड्राई फ्रूट्स बेहद कारगर हो सकते हैं. ऐसे में अगर आप ड्राई फ्रूट्स को एक-एक करके नहीं खा पा रहे हैं, तो आप इन सूखे मेवों को पीसकर पाउडर बना सकते हैं. इस पाउडर में सभी ड्राई फ्रूट्स मिक्स हो जाएंगे और आप इसे दूध में मिलाकर आसानी से पी सकते हैं. आज डाइटिशियन से जानने की कोशिश करेंगे कि शरीर के लिए ड्राई फ्रूट्स का पाउडर कितना फायदेमंद हो सकता है.
नई दिल्ली के न्यूट्रिफाइ बाई पूनम डाइट एंड वेलनेस क्लीनिक की फाउंडर और डाइटिशियन पूनम दुनेजा ने News18 को बताया कि ड्राई फ्रूट्स को अच्छी तरह सुखाकर पीसने के बाद पाउडर बना लिया जाए और उसे दूध के साथ रोज एक चम्मच लिया जाए, तो इससे शरीर को गजब के फायदे मिल सकते हैं. ड्राई फ्रूट्स का पाउडर शरीर को इंस्टेंट एनर्जी प्रदान करता है और हड्डियों को बेहद मजबूत बनाता है. ड्राई फ्रूट्स में बड़ी मात्रा में पोषक तत्व होते हैं, जो इम्यूनिटी को मजबूत करते हैं और पाचन तंत्र को दुरुस्त कर सकते हैं. यह पाउडर सेहत को सुधारने में बेहद असरदार साबित हो सकता है.
ड्राई फ्रूट्स पाउडर के गजब के फायदे
– बादाम, काजू, अखरोट, पिस्ता और किशमिश जैसे ड्राई फ्रूट्स को पीसकर बनाए गए पाउडर में प्रोटीन, विटामिन्स और मिनरल्स की भरपूर मात्रा होती है. जब इन्हें दूध में मिलाकर पिया जाता है, तो इससे शरीर को भरपूर एनर्जी मिलती है. ड्राई फ्रूट्स में पाए जाने वाले हेल्दी फैट और हाई क्वालिटी प्रोटीन एनर्जी लेवल बढ़ा देता है, जिससे लोग पूरे दिन एक्टिव नजर आते हैं. इसमें जिंक और मैग्नीशियम जैसे मिनरल्स भी होते हैं, जो ओवरऑल हेल्थ बूस्ट करते हैं.
– हड्डियों को मजबूत करने के लिए ड्राई फ्रूट्स पाउडर बेहद असरदार हो सकता है. दूध के साथ ड्राई फ्रूट्स का पाउडर मिलाकर पीने से हड्डियों की सेहत को बड़ा फायदा होता है. कैल्शियम, मैग्नीशियम और फास्फोरस जैसे मिनरल्स से भरपूर होने के कारण यह पाउडर हड्डियों को मजबूत बनाता है. खासतौर से बादाम और काजू में कैल्शियम और मैग्नीशियम की पर्याप्त मात्रा होती है, जो हड्डियों और दांतों की सेहत के लिए जरूरी हैं.
– ड्राई फ्रूट्स में उच्च मात्रा में फाइबर पाया जाता है, जो पाचन क्रिया को बेहतर बनाता है. जब ड्राई फ्रूट्स का पाउडर दूध में मिलाकर पीते हैं, तो यह पाचन तंत्र को स्वस्थ बनाए रखता है. किशमिश और अखरोट जैसे ड्राई फ्रूट्स में फाइबर अधिक होता है, जो आंतों को साफ रखने में मदद करता है और कब्ज की समस्या से राहत देता है. यह शरीर के टॉक्सिन्स को बाहर निकालने में मदद करता है, जिससे पाचन बेहतर होता है और पेट की समस्याएं दूर होती हैं.
– सूखे मेवा का पाउडर का सेवन शरीर के इम्यून सिस्टम को भी मजबूत करता है. इनमें पाए जाने वाले विटामिन C, विटामिन E और जिंक जैसे पोषक तत्व शरीर की रोगों से लड़ने की क्षमता को बढ़ाते हैं. अखरोट और किशमिश में एंटीऑक्सिडेंट्स होते हैं, जो शरीर को हानिकारक तत्वों से बचाते हैं और संक्रमण से लड़ने की क्षमता को बढ़ाते हैं. जब इसे नियमित रूप से दूध में मिलाकर पीते हैं, तो यह सर्दी, जुकाम और अन्य इंफेक्शन से बचाता है.
– ड्राई फ्रूट्स का पाउडर दूध के साथ मिलाकर पीने से स्किन की सेहत में भी सुधार होता है. ड्राई फ्रूट्स जैसे बादाम और पिस्ता में विटामिन E और तमाम एंटीऑक्सीडेंट होते हैं, जो त्वचा को पोषण प्रदान करते हैं और उसे चमकदार बनाते हैं. यह मिश्रण त्वचा को हाइड्रेट करता है, जिससे त्वचा पर झुर्रियां कम होती हैं और उम्र बढ़ने के संकेत धीमे होते हैं. ड्राई फ्रूट्स का पाउडर स्किन को रिपेयर करता है और उसे सॉफ्ट बनाता है. -
5 Side Effects of Raw Milk : दूध एक ऐसी चीज है, जिसका प्रयोग भारतीय भोजन में सदियों से किया जा रहा है. भगवान श्री कृष्ण के गौ-प्रेम से लेकर दूध-दही और माखन खाने तक की कहानियां हम अनंत काल से सुनते आ रहे हैं. शाकाहारियों के लिए दूध प्रोटीन और कैल्शियम का बड़ा सोर्स होता है. जानवरों से मिलने वाला ये पोषक तत्व सदियों से हम इस्तेमाल कर रहे हैं, लेकिन दादी-नानी हमेशा दूध को उबालकर ही इस्तेमाल करने की बात कहती थीं. यूं तो कच्चे दूध का जिक्र आते ही हमें इसके नेचुरल और ऑर्गेनिक होने का एहसास होता है, लेकिन क्या आपको पता है कि इसमें कई खतरनाक बैक्टीरिया भी छिपे हो सकते हैं? कच्चा, बिना पाश्चराइज किया हुआ दूध (जो सीधे गाय, भेड़, या बकरी से आता है) हानिकारक बैक्टीरिया और कीटाणुओं से भरा हो सकता है, जो हमारे शरीर के लिए बड़े जोखिम का कारण बन सकते हैं.
पाश्चराइजेशन, एक हीटिंग प्रोसेस है जिससे दूध के सभी हानिकारक बैक्टीरिया मर जाते हैं और दूध पीने योग्य बनता है. लेकिन कच्चा दूध इस प्रोसेस को स्किप कर देता है, जो इसे बेहद खतरनाक बना सकता है. आइए जानें, कच्चा दूध पीने के साइड इफेक्ट्स और पाश्चराइजेशन क्यों जरूरी है.
1. फूड पॉइज़निंग के लिए रिस्की
कच्चे दूध में सल्मोनेला, ई. कोलाई और कैंपिलोबैक्टर जैसे खतरनाक बैक्टीरिया होते हैं. ये बैक्टीरिया फूड पॉइज़निंग का कारण बन सकते हैं, जिससे आपको मितली, दस्त, पेट दर्द और बुखार जैसे लक्षण हो सकते हैं. CDC (सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल) की रिपोर्ट के अनुसार, कच्चे दूध से कई फूडबॉर्न बीमारियों के फैलने की घटनाएं हो चुकी हैं. खासकर बच्चों और बुजुर्गों के लिए, यह समस्याएं गंभीर रूप ले सकती हैं.
2. गर्भवती महिलाओं के लिए बेहद खतरनाक
गर्भवती महिलाओं के लिए, कच्चे दूध का सेवन और भी जोखिम भरा होता है. इसमें मौजूद लिस्टेरिया बैक्टीरिया (Listeria) गर्भावस्था में लिस्टेरियोसिस नामक गंभीर बीमारी का कारण बन सकता है. इससे मिसकैरेज, प्री-मेच्योर डिलीवरी, या बच्चे का स्टिलबर्थ हो सकता है.
3. कमजोर इम्यून सिस्टम वालों के लिए गंभीर बीमारियों का खतरा
जिन लोगों का इम्यून सिस्टम कमजोर होता है, जैसे HIV/AIDS मरीज, कैंसर के मरीज, या बुजुर्ग, उनके लिए कच्चे दूध का सेवन और भी खतरनाक हो सकता है. कमजोर इम्यून सिस्टम के कारण ये लोग आसानी से बैक्टीरियल इंफेक्शंस का शिकार बन सकते हैं, जो कि अस्पताल में भर्ती होने या कभी-कभी मृत्यु का कारण भी बन सकते हैं.
4. लंबे समय तक चलने वाली बीमारियों का रिस्क
कुछ मामलों में, कच्चे दूध के बैक्टीरिया के कारण लंबे समय तक चलने वाली गंभीर बीमारियां भी हो सकती हैं. उदाहरण के लिए, कैंपिलोबैक्टर इंफेक्शन से गिलेन-बैरे सिंड्रोम (Guillain-Barré syndrome) नामक बीमारी हो सकती है. इसमें इम्यून सिस्टम नर्व्स पर हमला करता है, जिससे लकवा जैसी स्थिति भी हो सकती है.
5. बच्चों के लिए हाई रिस्क
बच्चों का इम्यून सिस्टम अभी विकसित हो रहा होता है, इसलिए उनके लिए कच्चा दूध पीना बेहद खतरनाक हो सकता है. CDC की रिपोर्ट में बताया गया है कि कच्चे दूध से होने वाले फूडबॉर्न इंफेक्शंस बच्चों और टीनेजर्स को अधिक प्रभावित करते हैं. छोटे बच्चों में इस प्रकार के बैक्टीरियल इंफेक्शंस जल्दी गंभीर स्थिति में पहुंच सकते हैं, जिसके चलते अस्पताल में भर्ती होना भी पड़ सकता है. एक रिपोर्ट के अनुसार, 5 साल से कम उम्र के बच्चे फूड पॉइज़निंग से सबसे जल्दी प्रभावित होते हैं, इसलिए उनके लिए केवल पाश्चराइज्ड दूध देना सबसे सेफ होता है.
क्यों जरूरी है दूध का पाश्चराइजेशन?
पाश्चराइजेशन, फ्रेंच वैज्ञानिक लुई पाश्चर द्वारा डेवलप किया गया एक प्रोसेस है. इसमें दूध को एक निश्चित तापमान पर गर्म किया जाता है ताकि सभी हानिकारक बैक्टीरिया खत्म हो जाएं और दूध सुरक्षित हो सके. कुछ लोग मानते हैं कि कच्चे दूध में पोषक तत्व अधिक होते हैं, लेकिन पाश्चराइजेशन से इन पोषक तत्वों पर बहुत कम असर पड़ता है. पाश्चराइजेशन एक ऐसा स्टेप है जिसने अनगिनत लोगों की जानें बचाई हैं और दूध को सुरक्षित बनाने में अहम भूमिका निभाई है (एजेंसी) -
Low-Sugar Diet Benefits: ज्यादा शुगर को सेहत के लिए नुकसानदायक माना जाता है और इस वजह से डॉक्टर छोटे बच्चों को लो शुगर डाइट की सलाह देते हैं. एक हालिया स्टडी में खुलासा हुआ है कि अगर किसी बच्चे को शुरुआती 1000 दिनों तक लो शुगर डाइट दी जाए, तो इससे उसकी जवानी में डायबिटीज और हाई ब्लड प्रेशर का खतरा कम हो सकता है. इतना ही नहीं, अगर कोई महिला प्रेग्नेंसी के दौरान कम से कम शुगर का सेवन करती है, तो उससे भी बच्चे की सेहत को फायदा मिल सकता है. बच्चे के जन्म के बाद भी इसी तरह की प्रैक्टिस बच्चे के शरीर के लिए चमत्कारी हो सकती है.
द गार्जियन की रिपोर्ट के मुताबिक कैलिफोर्निया और मॉन्ट्रियल यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने एक महत्वपूर्ण रिसर्च की है. इसमें पता चला है कि अगर गर्भवती महिला अपनी डाइट में कम चीनी खाती है, तो इससे न सिर्फ उसकी सेहत पर अच्छा असर पड़ता है, बल्कि बच्चे के भविष्य पर भी इसका पॉजिटिव असर देखने को मिलता है. अगर प्रेग्नेंसी के दौरान शुगर का सेवन कम किया जाए, तो बच्चे में डायबिटीज और हाइपरटेंशन जैसी क्रोनिक डिजीज का खतरा कम हो सकता है.
वैज्ञानिकों की मानें तो बच्चे की जिंदगी के पहले 1000 दिन यानी गर्भवस्था के दौरान का समय और जन्म के बाद 2 साल तक बच्चे का विकास बहुत तेजी से होता है. इस समय बच्चे को कम चीनी दी जाए, तो इससे वे स्वस्थ रहते हैं और भविष्य में होने वाली कई बीमारियों का जोखिम भी कम हो सकता है. इससे बच्चे का वजन हेल्दी रहता है और उसकी ओवरऑल ग्रोथ में भी फायदा मिल सकता है.
स्टडी में यह भी पाया गया कि जिन बच्चों को कम चीनी वाली डाइट दी गई, उनके शरीर में ब्लड शुगर का स्तर बेहतर रहता है और उनका वजन भी स्वस्थ रहता है. इस तरह के बच्चों को भविष्य में डायबिटीज और हाइपरटेंशन जैसी बीमारियों का खतरा बहुत कम होता है. शोधकर्ताओं का मानना है कि कम चीनी का सेवन करने से शरीर में इंसुलिन का स्तर सही रहता है, जिससे लंबे समय तक स्वास्थ्य समस्याओं से बचाव होता है. यह अध्ययन यह भी बताता है कि सिर्फ गर्भवती महिला की डाइट ही अच्छी होना जरूरी नहीं है, बल्कि जन्म के बाद भी बच्चे के खान-पान का ध्यान रखना जरूरी है. अगर बच्चे को जन्म के बाद भी कम चीनी वाली चीजें दी जाती हैं, तो उनके विकास में और भी अधिक फायदे हो सकते हैं.(एजेंसी) -
Workout Mistakes To Avoid in Gym: एक्सरसाइज सेहद के लिए बेहद फायदेमंद होती है. कई लोग बेहतर फिटनेस और अट्रैक्टिव बॉडी बनाने के लिए जिम जॉइन कर लेते हैं. जिम में वे रोज घंटों पसीना बहाते हैं, ताकि उन्हें शानदार रिजल्ट मिल सके. हालांकि कई लोग जिम में एक्सरसाइज करते वक्त छोटी-छोटी गलतियां कर बैठते हैं, जिससे उनके शरीर को नुकसान होने लगता है. अधिकतर लोग इस तरह की गलतियों का सामना करते हैं. हेल्थ एक्सपर्ट्स की मानें तो जिम में इन गलतियों को पहचानना और उनसे बचना बेहद जरूरी है. कई बार ये गलतियां गंभीर परेशानियों की वजह बन सकती हैं.
नोएडा के फिटनेस फोर्टियर एकेडमी के ट्रेनर देव सिंह ने News18 को बताया कि जिम में सभी लोगों को एक्सरसाइज शुरू करने से पहले वॉर्म-अप करना चाहिए. इससे मांसपेशियों में ब्लड फ्लो बढ़ता है और वे एक्सरसाइज के लिए तैयार हो जाती हैं. अगर आप वॉर्म-अप नहीं करते हैं, तो मांसपेशियों में खिंचाव या चोट लगने का खतरा बढ़ जाता है. अगर आप अचानक इंटेंस एक्सरसाइज करना शुरू कर देंगे, तो इससे शरीर को नुकसान हो सकता है. ऐसे में सभी लोगों को सबसे पहले अपने शरीर को वर्कआउट के लिए तैयार कर लेना चाहिए. इसका सबसे अच्छा तरीका वॉर्म अप है.
एक्सपर्ट की मानें तो गलत टेक्निक से एक्सरसाइज करना गंभीर चोट का कारण भी बन सकता है. अगर आप वजन उठाते समय अपनी पीठ को झुकाते हैं या सही पोजीशन में नहीं होते हैं, तो इससे रीढ़ की हड्डी को नुकसान हो सकता है. सही तकनीक का पालन करना न केवल आपकी मांसपेशियों को मजबूत करता है, बल्कि चोट से भी बचाता है. इसके अलावा कई लोग यह सोचते हैं कि ज्यादा वजन उठाने से उनकी ताकत जल्दी बढ़ेगी, लेकिन ऐसा नहीं करना चाहिए. आपको अपने शरीर के अनुसार वजन चुनना चाहिए और धीरे-धीरे वजन बढ़ाना चाहिए.
फिटनेस ट्रेनर की मानें तो जितना जिम में जाकर एक्सरसाइज करना जरूरी है, उतना ही वर्कआउट के बाद आराम करना आवश्यक है. वर्कआउट के पास मसल्स को रिकवरी के लिए समय की जरूरत होती है. इस वजह से लोगों को सप्ताह में 4 से 5 दिन वर्कआउट करना चाहिए और बाकी दिन आराम करना चाहिए. लगातार एक्सरसाइज करने से उन्हें पर्याप्त आराम नहीं मिलता. इससे थकावट, मांसपेशियों में खिंचाव और लंबे समय में मसल्स लॉस का सामना करना पड़ सकता है. यह समझने की जरूरत है कि आराम करना आपके फिटनेस रुटीन का एक हिस्सा है.
वर्कआउट के दौरान पर्याप्त पानी पीना भी जरूरी है. कई लोग एक्सरसाइज करते समय हाइड्रेशन को नजरअंदाज कर देते हैं, जिससे शरीर में पानी की कमी हो सकती है. यह थकावट, चक्कर आना और मांसपेशियों में दर्द का कारण बन सकता है. इसलिए कसरत से पहले, वर्कआउट के दौरान और इसके बाद में पर्याप्त मात्रा में पानी जरूर पिएं. इसके अलावा कई लोग बिना प्लान बनाए एक्सरसाइज करना शुरू कर देते हैं, जो कि लंबे समय में परेशानी का कारण बन सकता है. आप अपने फिटनेस गोल सेट करें और उस हिसाब से अपना वर्कआउट रुटीन बनाएं.(एजेंसी) -
HEALTH NEWS : मिथिला की संस्कृति में पान के पत्ते का एक विशेष स्थान है. धार्मिक अनुष्ठानों में पान के पत्ते का होना अनिवार्य माना जाता है. ये पत्ते न केवल पूजा में श्रद्धा का प्रतीक होते हैं, बल्कि इसके साथ-साथ ये स्थानीय परंपराओं और रीति-रिवाजों का भी महत्वपूर्ण हिस्सा हैं. पान के पत्तों का उपयोग विवाह समारोहों, तीज-त्योहारों, और अन्य धार्मिक अवसरों पर किया जाता है, जिससे ये क्षेत्र की सांस्कृतिक विरासत को दर्शाता है.
मिथिला में पान का पत्ता धार्मिक आस्था और औषधीय गुणों का अद्भुत संगम है. ये केवल एक हरी पत्ता नहीं है, बल्कि ये क्षेत्र की समृद्ध सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक है. पान के पत्ते का सही तरीके से उपयोग करना न केवल इसके स्वास्थ्य लाभों को बढ़ाता है, बल्कि ये हमारी परंपराओं को भी बनाए रखने में मदद करता है.
पान के पत्तों में टैनिन, प्रोपेन और एल्कलॉयड जैसे महत्वपूर्ण पोषक तत्व पाए जाते हैं, जो मानव शरीर के लिए बहुत फायदेमंद हैं. पान के पत्ते चबाने से न केवल शरीर में दर्द और सूजन में राहत मिलती है, बल्कि ये यूरिक एसिड के स्तर को भी नियंत्रित करने में मदद करता है.
खास बातचीत के दौरान डॉक्टर राजीव शर्मा ने बताया कि, पान के पत्ते का नियमित सेवन स्वास्थ्य लाभ प्रदान कर सकता है. इससे लोग कई स्वास्थ्य समस्याओं से बच सकते हैं.
पान के पत्तों का उपयोग आयुर्वेद में व्यापक रूप से किया गया है. पान के पत्ते चोट लगने पर राहत प्रदान कर सकते हैं. इसके अलावा, पान के पत्ते का सेवन विभिन्न बीमारियों से लड़ने के लिए एक प्राकृतिक उपाय माना जाता है.
पान की खेती करना बेहद चुनौतीपूर्ण होता है. मिथिला में, पान की खेती पारंपरिक रूप से की जाती थी लेकिन अब कुछ ही किसान इस क्षेत्र में सक्रिय हैं, जो इस समृद्धि को बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रहे हैं.(एजेंसी)