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श्री तारन प्रकाश सिन्हा IAS के फेसबुक वाल से
शब्दों के नये वायरस-----------------------------चीन ने सख्त ऐतराज जताया है कि कोविड-19 को चाइनीज या वुहान वायरस क्यों कहा जा रहा है ! बावजूद इसके कि दुनिया का सबसे पहला मामला वुहान में ही सामने आया। चीन का तर्क है कि जब अब तक इस नये वायरस के जन्म को लेकर चल रहे अनुसंधानों के समाधानकारक नतीजे ही सामने नहीं आ पाए हैं, तब अवधारणाओं पर आधारित ऐसे शब्दों को प्रचलित क्यों किया जा रहा है, जो खास तरह का नरेटिव सेट करते हों।चीन शब्दों की शक्ति को पहचानता है। किसी समाज के लिए प्रयुक्त होने वाले विशेषणों के असर को जानता है। इसीलिए वह अपनी छवि को लेकर इतना सतर्क है।जाने-अनजाने में हम हर रोज विभिन्न समाजों, समुदायों, संप्रदायों अथवा व्यक्तियों के लिए इसी तरह के अनेक विशेषणों का प्रयोग करते रहते हैं, जिनका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं होता। हमारे द्वारा गढे़ जा रहे विशेषण कब रूढियों का रूप ले लेते हैं, पता ही नहीं चलता।किसी घटना विशेष अथवा परिस्थितियों में उपजा कोई दूषित विचार कब धारणा बन जाता है और कब वह धारणा सदा के लिए रूढ़ हो जाती है, पता ही नहीं चलता। और कब हम पूर्वाग्रही होकर इन संक्रामक आग्रहों के वाहक बन जाते हैं, यह भी नहीं। यह भी नहीं कि कब नयी तरह की प्रथाएं-कुप्रथाएं जन्म लेने लगती हैं।अस्पर्श्यता का विचार पता नहीं कब, कैसे और किसे पहली बार आया। पता नहीं कब वह संक्रामक होकर रूढ़ हो गया। कब कुप्रथा में बदल गया और कब इन कुप्रथाओं ने सामाजिक- अपराध का रूप धर लिया। उदाहरण और भी हैं...जब यह कोरोना-काल बीत चुका होगा, तब हमारी यह दुनिया बदल चुकी होगी। इन नये अनुभवों से हमारे विचार बदल चुके होंगे। नयी सांस्कृतिक परंपराएं जन्म ले चुकी होंगी। तरह-तरह के सामाजिक परिवर्तनों का सिलसिला शुरू हो चुका होगा। इस समय हम एक नयी दुनिया के प्रवेश द्वार से गुजर रहे हैं।ठीक यही वह समय है, जबकि हमें सोचना होगा कि हम अपनी आने वाली पीढी़ को कैसी दुनिया देना चाहते हैं। क्या अवैज्ञानिक विचारों, धारणाओं, पूर्वाग्रहों, कुप्रथाओं से गढी़ गई दुनिया ? बेशक नहीं। तो फिर हम इस ओर भी सतर्क क्यों नहीं हैं ! कोरोना से चल रहे युद्ध के समानांतर नयी दुनिया रचने की तैयारी क्यों नहीं कर रहे हैं ? हम अपने विचारों को अफवाहों, दुराग्रहों, कुचक्रों से बचाए रखने का जतन क्यों नहीं कर रहे ? हम अपने शब्द-संस्कारों को लेकर सचेत क्यों नहीं है ?महामारी के इस दौर में हमारा सामना नयी तरह की शब्दावलियों से हो रहा है। ये नये शब्द भविष्य के लिए किस तरह के विचार गढ़ रहे हैं, क्या हमने सोचा है? क्वारंटिन, आइसोलेशन, सोशल डिस्टेंसिंग, लक्ष्मण रेखा...परिस्थितिवश उपजे ये सारे शब्द चिकित्सकीय-शब्दावलियों तक ही सीमित रहने चाहिए। सतर्क रहना होगा कि सामाजिक शब्दावलियों में ये रूढ़ न हो जाएं। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल जब सोशल डिस्टेंसिंग के स्थान पर फिजिकल डिस्टेंसिंग शब्द के प्रचलन पर जोर देते हैं, तब वे इसी तरह के नये और छुपे हुए खतरों को लेकर आगाह भी कर रहे होते हैं.... -
*** महलों के लिए जलने वाला दीप ***
कल यानी रविवार को रात 9 बजे 9 मिनट के लिए सबको कोरोना प्रकाशोत्सव में शामिल होना है. अपने घरों के दरवाज़ों पर या बाल्कनी में खड़े होकर दिया, मोमबत्ती, टॉर्च या मोबाइल की फ़्लैश लाइट जलानी है.लेकिन उससे पहले आपको अपने घरों की सारी बत्तियां बुझानी हैं. जैसा कि प्रधानमंत्री जी के निर्देश हैं, “हमें प्रकाश के तेज को चारों तरफ़ फ़ैलाना है.”अब कई लोग पूछ रहे हैं कि इसका मतलब यह है कि पहले अंधेरा फैलाना है और फिर उजाला करना है. ये नादान लोग प्रधानमंत्री जी की बातों की भावनाओं को समझ नहीं रहे हैं. अगर लाइटें जलती रहीं तो दिए और मोमबत्ती की रोशनी दिखेगी कहां? फ़ोटो अपॉर्चुनिटी मिस हो जाएगी. कोरोना संकट के अंधकार को पता ही नहीं चलेगा कि लोगों ने उजाला फैलाया. कोरोना के संकट को बताना ज़रुरी है कि उजाला हुआ.याद कीजिए मोदी जी ने राष्ट्र को दिए अपने वीडियो संदेश में क्या कहा, “जो इस कोरोना संकट से सबसे ज़्यादा प्रभावित हैं, हमारे ग़रीब भाई बहन, उन्हें कोरोना संकट से पैदा हुई निराशा से आशा की तरफ़ ले जाना है.”उन ग़रीबों की निराशा इस प्रकाशोत्सव से आशा की तरफ़ जाएगी या नहीं? जिसका रोज़गार बंद है, जिसके घर पर राशन नहीं है, जो नहीं जानता कि लॉक-डाउन ख़त्म होने के बाद उसे रोज़गार मिलेगा भी या नहीं उसकी निराशा और हताशा की पैमाइश कोई कैसे कर सकता है? भूखे व्यक्ति को रोटी चाहिए या भूख के समर्थन में देश की एकजुटता?नरेंद्र मोदी जी 130 करोड़ लोगों की महाशक्ति की बात कर रहे हैं. वे शायद भूल रहे हैं कि इनमें से आधे से भी अधिक लोग इस वक़्त निराशा के गहरे गर्त में हैं. वे ले-देकर अपने परिवार के लिए राशन की व्यवस्था करने लायक शक्ति जुटा पा रहे हैं वे महाशक्ति का प्रदर्शन कैसे कर पाएंगे?अगर ग़रीबों की इतनी ही चिंता थी तो आपके निवास लोकसेवक मार्ग से बमुश्किल दस किलोमीटर दूर जब दसियों हज़ार लोग पैदल अपने घरों के लिए चल पड़े थे तो आप कहां थे प्रधानमंत्री जी? उस रात चुप रहे, अगली सुबह चुप रहे. उन सबके अपने घरों तक पहुंच जाने (या रास्ते में दम तोड़ने तक) चुप रहे. आपने माफ़ी भी मांगी तो कड़े निर्णय की मांगी. ग़रीबों को हुई असुविधा के लिए नहीं मांगी.दरअसल आप जब अंधेरे का डर दिखाते हैं प्रधानमंत्री जी तो याद रखना चाहिए कि इस अंधेरे में आपके राज का अंधेर भी शामिल है. आपके प्रकाशोत्सव के आव्हान पर लोगों को व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई जी की रचना याद आ रही है. टॉर्च बेचने वाला. इसमें उन्होंने लिखा है, “चाहे कोई दार्शनिक बने, संत बने, साधु बने, अगर वह अंधेरे का डर दिखाता है तो वह ज़रूर अपनी कंपनी का टॉर्च बेचना चाहता है.” आप भी तो अंधेरे का डर दिखा रहे हैं और रोशनी तो आप भी बेचना चाहते हैं. ग़रीब, बेरोज़गार, बेघरबार और भूखे लोगों को. टॉर्च तो आप भी बेचना चाह रहे हैं, बस कह नहीं पा रहे हैं.दरअसल, जो आप कह नहीं पा रहे हैं वह यह है कि आप की चिंता में ग़रीब है ही नहीं. आपकी चिंता में वह मध्यमवर्ग है जिसके घर में बाल्कनी है. जिसके घर में दिया जलाने को तेल है या फिर मोमबत्ती, टॉर्च या फ़्लैश लाइट दिखाने वाला मोबाइल है. आपको चिंता है कि वह घर पर खाली बैठा अगर आपके छह बरसों का हिसाब कर बैठा तो अनर्थ हो जाएगा. आप जानते हैं कि कोरोना की मार अभी भले ही ग़रीब तबके पर पड़ी हो पर निशाने पर अगला व्यक्ति मध्यमवर्ग से आएगा. वही आपका वोटर है. वही आपका भक्त है. और वही इस समय इस देश का सबसे बड़ा मूर्ख वर्ग है. आप उनसे मुखातिब हैं. आप उनको साधे रखना चाहते हैं.आपका दीप ऊंची इमारतों, अट्टालिकाओं और महलों के लिए है और चंद लोगों की ख़ुशियों को लेकर चलता है. वह ग़रीबों और वंचित लोगों के लिए न है और न उनके लिए जलेगा.मशहूर शायर हबीब जालिब की रचना याद आती है,दीप जिसका महल्लात* ही में जलेचंद लोगों की ख़ुशियों को लेकर चलेवो जो साए में हर मस्लहत** के पलेऐसे दस्तूर को, सुब्ह-ए-बे-नूर कोमैं नहीं मानता मैं नहीं जानता*महल्लात = महलों, **मस्लहत = सुख-सुविधा -
नई दिल्ली। 'कट, कॉपी, पेस्ट' की ईजाद करने वाले कंप्यूटर वैज्ञानिक लैरी टेस्लर का गुरुवार को निधन हो गया है। वो 74 साल के थे। अमेरिका के न्यूयॉर्क में पैदा हुए लैरी कंप्यूटर में कट कॉपी और पेस्ट बटनों के जनक थे। कट कॉपी और पेस्ट की ईजाद ने कंप्यूटर का दुनिया में बड़ा बदलाव ला दिया था। इन तीन बटनों के बिना कंप्यूटर पर काम करना असंभव सा लगता है, इनको लैरी ने दिया था। टेस्लर की कट, कॉपी, पेस्ट कमांड तब मशहूर हुई जब इसे साल 1983 में एप्पल के सॉफ्टवेयर में लिसा कंप्यूटर पर शामिल किया गया।
1945 में जन्में लैरी ने कैलिफोर्निया की स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी से कंप्यूटर साइंस की पढ़ाई की थी। इसके बाद 1973 में लैरी ने जेरॉक्स पालो ऑल्टो रिसर्च सेंटर में काम करना शुरू किया। जेरॉक्स ने ट्वीट कर टेस्लर को श्रद्धांजलि दी है। अमरीकी कंपनी जेरॉक्स में उन्होंने काफी समय तक काम किया था। कंपनी के ट्वीट में लिखा है- " कट, कॉपी, पेस्ट, फाइंड , रिप्लेस जैसी बहुत सी कमांड बनाने वाले जेरॉक्स के पूर्व रिसर्चर लैरी टेस्लर। जिस शख्स की क्रांतिकारी खोजों ने आपके रोजमर्रा के काम को बेहद आसान बना, उसे धन्यवाद। लैरी का सोमवार को निधन हो गया।' -
नई दिल्ली : एक इंवेस्टीगेशन रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है कि दुनियाभर की तकरीबन 43.5 करोड़ विंडोज, मैक और मोबाइल डिवाइसेज पर इंस्टॉल एवास्ट एंटीवायरस ने यूजर्स के डाटा को गूगल और माइक्रोसॉफ्ट को बेचा है। मदरबोर्ड और पीसीमैग की तरफ से की गई इस संयुक्त पड़ताल में सामने आया कि एवास्ट ने ब्रॉउजर प्लगइंस के जरिए यूजर्स का डाटा एकत्र किया और उसे थर्ड पार्टीज को बेच दिया।
दुनियाभर में Avast एंटी वायरस यूजर्स के डेटा को कंप्यूटर्स से कलेक्ट करने के बाद इसे सहायक कम्पनी Jumpshot में ट्रांसफर किया जाता था। इस डेटा को जंपशॉट एक बंडल में तैयार कर उन कम्पनियों को बेच देती थी जो ग्राहकों के डेटा को अपने प्रॉडक्ट और टारगेटिड ऐड्स में यूज करती हैं। कुछ मामलों में यह डेटा लाखों डॉलर की कीमत में बेचा गया है।
Avast ने जिन कम्पनियों को डेटा बेचा उनमें गूगल, इनट्रूिट, माइक्रोसॉफ्ट, एक्सपीडिया और लॉरिएल जैसे कंपनियां मौजूद हैं। बेचे गए डेटा में यूजर्स के गूगल सर्च, मैप्स पर लोकेशन सर्च के साथ ही लिंक्डइन व यूट्यूब पर की गई ऐक्टिविटी की जानकारी शामिल है। इतना ही नहीं यूजर्स द्वारा सर्च की गई पॉर्न वेबसाइट्स का डेटा भी कम्पनियों को बेचा गया है। Avast द्वारा डेटा लीक होने की खबर सामने आने पर कुछ कम्पनियों ने इस मामले से किनारा कर लिया है। माइक्रोसॉफ्ट का कहना है कि उसका अब जंपशॉट से कोई संबंध नहीं है। वहीं गूगल ने अब तक इस मामले में अभी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। -
एजेंसी
FIFA विश्वकप 2018 के दौरान पहली बार फाइनल में पहुंचने का करिश्मा करने वाली क्रोएशिया की टीम को रविवार को मॉस्को में खेले गए मैच में 4-2 से हराकर फ्रांस ने दूसरी बार वर्ल्डकप का खिताब जीता, और ऐसा कर पाने वाली वह दुनिया की छठी टीम बन गई है. इससे पहले ब्राज़ील पांच बार, जर्मनी व इटली चार-चार बार तथा अर्जेन्टीना व उरुग्वे दो-दो बार खिताब जीत चुके थे. अब इन छह टीमों के अलावा इंग्लैंड और स्पेन ही ऐसी टीमें हैं, जिन्होंने एक-एक बार वर्ल्डकप का खिताब जीता है.
फ्रांस की रविवार की जीत पर दुनियाभर में फुटबॉल के दीवानों ने जश्न मनाया, जिसमें शामिल होते हुए भारतीय केंद्रशासित प्रदेश पुदुच्चेरी की उपराज्यपाल किरण बेदी ने भी एक ट्वीट किया, जिस पर उन्हें आलोचना का सामना करना पड़ा.
भारत की पहली महिला IPS अधिकारी होने का गौरव हासिल कर चुकीं किरण बेदी ने रविवार रात को माइक्रो-ब्लॉगिंग वेबसाइट ट्विटर पर लिखा, "हम पुदुच्चेरियनों (पूर्व फ्रांसीसी क्षेत्र) ने वर्ल्डकप जीत लिया है... बधाई हो, मित्रों... मिली-जुली टीम - सभी फ्रांसीसी थे... खेल सभी को जोड़ता है..."
इसके कुछ ही देर बाद जाने-माने पत्रकार शेखर गुप्ता ने ट्विटर पर ही किरण बेदी को जवाब देते हुए कहा, "छोटा-सा सुधार करना होगा, मैडम... पुदुच्चेरी कभी फ्रांसीसी क्षेत्र नहीं रहा है... वह हमेशा भारतीय क्षेत्र रहा है, जिस पर कब्ज़ा कर फ्रांस ने उपनिवेश बना लिया था... कभी किसी की हिम्मत नहीं हो सकती, गोवा को पूर्व पुर्तगाली क्षेत्र बताए..." -
दिग्गज टेक्नोलॉजी कंपनी ‘गूगल’ के सबस्क्राइबर्स गूगल न्यूज ऐप पर मैगजींस का डिजिटल वर्जन नहीं पढ़ सकेंगे। दरअसल, ‘गूगल’ ने निर्णय लिया है कि वह अपने गूगल न्यूज ऐप पर मैंगजींस की पीडीएफ पढ़ने के लिए शुरू की गई ‘print replica’ सर्विस को बंद कर रहा है। ऐसा इसलिए, क्योंकि गूगल ने महसूस किया है कि लोग इस सर्विस पर ‘Rolling Stone’ अथवा ‘Conde Nast Traveller’ जैसी मैगजींस के अलावा ऑनलाइन अखबार भी नहीं पढ़ रहे हैं, इसलिए इस सर्विस को बंद करने का निर्णय लिया गया है।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, इस बारे में कंपनी की ओर से गूगल न्यूज यूजर्स को ई-मेल भेजकर बताया जा रहा है कि नया इश्यू अब नहीं आएगा। इसके साथ ही सबस्क्राइबर्स द्वारा किए गए भुगतान को वापस करने की प्रक्रिया भी शुरू कर दी गई है।
बता दें कि गूगल न्यूज के ‘print replica’ मैगजींस में प्रिंट एडिशंस का पीडीएफ वर्जन होता है, जिसे यूजर्स स्मार्टफोन अथवा कंप्यूटर पर पढ़ सकते हैं। अब यह सर्विस बंद होने के बाद यदि पाठक किसी मैगजीन का ई-वर्जन (इंटरनेट संस्करण) पढ़ना चाहते हैं, तो उन्हें उस मैगजीन की वेबसाइट पर जाना होगा। इस बारे में यूजर्स को नोटिफिकेशन भेजकर बताया जाएगा कि गूगल न्यूज में print replica मैगजींस को बंद किया जा रहा है।
हालांकि, पाठकों द्वारा पूर्व में सबस्क्राइब किए गए मैगजींस के सभी इश्यू गूगल न्यूज एप पर एक्सेस किए जा सकते हैं। गूगल की ओर से कहा गया है कि लेटेस्ट आर्टिकल पढ़ने के लिए अब गूगल न्यूज में उस पब्लिकेशन को सर्च करना होगा अथवा उस पब्लिकेशन की वेबसाइट पर जाना होगा। बता दें कि गूगल ने ‘प्ले मैगजींस एप’ के द्वारा वर्ष 2012 में पाठकों को मैगजीन कंटेंट उपलब्ध कराना शुरू किया था। बाद में कंपनी ने इसका नाम बदलकर ‘प्ले न्यूजस्टैंड’ कर दिया और इसे ‘गूगल न्यूज’ में मिला दिया। -
नई दिल्ली
मोरक्को में एक यूट्यूबर को देश के राजा का अपमान करने के मामले में चार साल की जेल और भारी भरकम जुर्माने की सजा सुनाई गई है. यूट्यूबर का नाम मोहम्मद सेक्कावी बताया जा रहा है उस पर राजा के भाषणों की आलोचना करने का आरोप है. वो फिलहाल सजा के खिलाफ अपील करने वाला है. वैसे तो मोरक्को में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है लेकिन पिछले दिनों ऐसे कई मामले सामने हैं जिनसे स्थानीय राजशाही पर सवाल उठ रहे हैं. मोरक्को में इस ताजा मामले से पहले भी कई ऐसे मामले सामने आ चुके हैं. मोरक्को अफ्रीका का एक देश है जहां करीब 99 फीसदी मुस्लिम आबादी रहती है. इस देश में अरबी और अफ्रीकी भाषा बोली जाती है. वैसे इस देश में कई ऐसे शहर हैं जो टूरिज्म के लिए दुनिया भर में जाने जाते हैं.
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दुनिया की सबसे बड़ी कंपनियों में से एक गूगल और उसकी पैरेंट कंपनी एल्फाबेट का हेड अब एक भारतीय मूल का नागरिक बन गया है. नाम है सुंदरराजन पिचाई. सुंदर का प्रमोशन हुआ है और अब वो अल्फाबेट के CEO बन गए हैं. दरअसल, गूगल को बनाने वाले लैरी पेज और सर्गेई ब्रिन ने अपने पद से हटने का ऐलान किया था, जिसके बाद सुंदर को ये जिम्मेदारी मिली है. बता दें कि साल 2015 में उन्हें गूगल का सीईओ बनाया गया था.
लैरी पेज और ब्रिन ने सिलिकॉन वैली की कंपनी में बड़े बदलाव की घोषणा अपने कर्मचारियों को लिखे पत्र में की, जिसमें पिचाई का बयान भी शामिल ह. अपने बयान में पिचाई ने साफ किया कि इस बदलाव से अल्फाबेट की स्ट्रक्चर में या उसके काम पर कोई असर नहीं पड़ेगा.
उन्होंने लिखा,
‘‘मैं गूगल पर अपना ध्यान केंद्रित करता रहूंगा और साथ ही कम्प्यूटिंग के दायरे को बढ़ाने और गूगल को हर किसी के लिए ज्यादा मददगार बनाने के अपने काम को करता रहूंगा. साथ ही मैं अल्फाबेट और प्रौद्योगिक के जरिए बड़ी चुनौतियों से निपटने के उसके आगे के उद्देश्य को लेकर उत्साहित हूं.’’
साल 2004 में गूगल ज्वॉइन करने के साथ ही सुंदर ने कंपनी के कई बड़े प्रोडक्ट को तैयार करने में अहम भूमिका निभाई. इनमें क्रोम और एंड्रॉयड शामिल हैं. उन्होंने क्रोम ब्राउजर पर उस वक्त काम किया जब कई लोगों ने सोचा कि बाजार को एक नए ब्राउजर की जरूरत नहीं है.
पहली बार जब गूगल में हुआ इंटरव्यू
सुंदर ने करीब 11 साल पहले गूगल में नौकरी शुरू की थी. सुंदर ने एक इंटरव्यू में बताया था कि गूगल में जॉब के लिए 1 अप्रैल, 2004 को उनका इंटरव्यू हुआ था. तब उसी दौरान जीमेल लॉन्च हुआ था, लेकिन सुंदर को इसके बारे में जानकारी नहीं थी.
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वीवो मोबाइल इंडिया .प्राइवेट .लिमिटेड ” के दवारा “22 दिसम्बर से 2 जनवरी” तक प्रतिदिन छत्तीसगढ़ में वीवो का मोबाइल खरीदने पर ग्राहकों को ऑनलाइन लक्की ड्रा फार्म भरा जायेगा | जिसका ऑन लाइन ड्रा रोज निकलता है जिसमे प्रथम पुरुस्कार के रूप में 11000 रुपये दिया जाता है दूसरा पुरुस्कार में 4 ग्राहको को प्रति ग्राहक लक्की ड्रा में जिनका नाम होगा उनको 2000 रुपये का पुरुस्कार दिया जाता है , तीसरा पुरुस्कार 5 ग्राहकों को दिया जाता है जिनका ड्रा में नाम होगा उन्हें 1000 रुपये है यह सभी नाम कंपनी के द्वारा ऑन लाइन ड्रा के माध्यम से निकाले जाते है, भाटापारा में माँ दुर्गा मोबाइल बलौदाबाजार से ग्राहक मोहन साहू (प्रहलाद साहू) पिता भारतलाल साहू जी का लक्की ड्रा में नाम आया है | जिनकी माता अंजनी साहू जी को प्रथम पुरुस्कार के रूप में 11000 रुपये दिया गया | पुरुस्कार वीवो मोबाइल बलौदाबाजार के डीलर ” ए.ए सेल्स से अमरजीत सलूजा के द्वारा दिया गया | जिसमे माँ दुर्गा मोबाइल से अनिरुद्ध साहू , कंपनी से सविनय श्रीवास ,लोकनाथ साहू ,राहुल प्रसाद आदि सदस्य उपलब्ध थे | ए.ए सेल्स से अमरजीत सलूजा ने मोहन साहू और उनकी माताजी को प्रथम पुरुस्कार पाने की बधाई दी
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मुंबई : तीन कारोबारी दिनों में बढ़त बनाए रखने के बाद बुधवार को दिल्ली सर्राफा बाजार में सोने की कीमत 110 रुपये की गिरावट के साथ 32,540 रुपये प्रति 10 ग्राम रही. कमजोर वैश्विक संकेत और स्थानीय आभूषण निर्माताओं की ओर से मांग का घटना इसकी अहम वजह रही है. सिक्का ढलाई करने वाली और औद्योगिक इकाइयों की ओर से मांग का समर्थन कम होने चांदी भी 25 रुपये टूटकर 38,550 रुपये प्रति किलोग्राम पर आ गई.
दिल्ली सर्राफा में 99.9 और 99.5 प्रतिशत शुद्धता वाले सोने का भाव 110-110 रुपये घटकर क्रमश: 32,540 रुपये और 32,390 रुपये प्रति 10 ग्राम रहा. पिछले तीन कारोबारी दिनों में सोना भाव 550 रुपये चढ़ गया था.सर्राफा कारोबारियों के अनुसार इसकी अहम वजह स्थानीय आभूषण निर्माताओं की ओर से मांग का कमजोर होना और वैश्विक बाजार में नकारात्मक संदेश होना है. सोने की 8 ग्राम वजनी गिन्नी की कीमत 25,000 रुपये प्रति इकाई पर बनी रही. वैश्विक स्तर पर न्यूयॉर्क में सोने का भाव 1,242.08 डॉलर प्रति औंस और चांदी का भाव 14.57 डॉलर प्रति औंस रहा.