दुर्ग : जल, जंगल और जमीन को बचाने कारगर अभियान बनाकर करे कार्य - श्री चुरेन्द्र
शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में जल प्रबंधन के करे उपाय
दुर्ग 17 मार्च : संभागायुक्त श्री जी.आर चुरेन्द्र ने संभाग के सभी कलेक्टरों को जल संकट से बचाव और भूमिगत जल स्तर को बढ़ाने के लिए कारगर उपाय करने के लिए निर्देश जारी किए है। उन्होंने कहा कि बढ़ती आबादी के साथ जल, जंगल, जमीन के दोहन में भी इजाफा हुआ है। इसलिए समय रहते इनको बचाने के बेहतर प्रबंधन की जरूरत है। इसके लिए अभियान चलाकर काम करना होगा। उन्होंने कहा कि इसी उद्देश्य को लेकर भारत सरकार द्वारा जल शक्ति अभियान की शुरूआत भी की गई है। ताकि ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में बारह महीने जल उपलब्ध रहे। जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल-वार्मिंग जैसी समस्याओं के कारण अनियमित वर्षा, न्यून वर्षा व असमान वर्षा की स्थिति निर्मित हो रही है। इसलिए जल संकट के समाधान हेतु क्रमबद्ध तरीके से प्रयास करना होगा। जिसमें स्थानीय प्रशासन व जिला प्रशासन के अमलों की भूमिका महत्वपूर्ण है।
भूमिगत जल बचाने ग्रामवासियों को आना होगा आगे रबी सीजन में कम पानी की जरूरत वाली फसलें लेने की अपील
. श्री चुरेन्द्र ने ग्राम वासियों से अपील करते हुए कहा कि गांव में विभिन्न जल स्त्रोतों में सालभर पानी उपलब्ध रहे, इसके लिए ग्राम वासियों को आगे आना होगा। उन्होंने कहा कि धान की फसल में बहुत अधिक पानी की जरूरत होती है। इस दृष्टि से ग्राम सभा की बैठक में निर्णय लिया जाए कि खरीफ मौसम के बाद रबी मौसम एवं गर्मी के मौसम में अब नदी-नालों, तालाबों, जलाशयों, बांध, ट्यूबवेल आदि से धान की फसल के स्थान पर दलहन-तिलहन, मक्का, गन्ना, साग-सब्जी आदि की फसल लें। ताकि भूमिगत पानी बचाया जा सके। उन्होंने कहा कि ऐसे क्षेत्र जहाॅ बांध, जलाशयों, तालाब के नीचे धरातल में जल का रिसाव ज्यादा हो, दलदल की स्थिति हो, वही पर धान की फसल लें। इसका क्षेत्रफल ग्रामसभा के द्वारा तय किया जाना चाहिए।
सोलर पम्पों से ले जरूरत के मुताबिक पानी
श्री चुरेन्द्र ने कहा कि सौर सुजला योजना के तहत स्थापित सौलर पंप से किसान आवश्यकता के अनुरूप ही पानी सिंचाई करें। किसी भी स्थिति में पानी अनावश्यक न बहे।
उन्होंने कहा कि ग्रामीण/नगरीय क्षेत्रों में स्थित तालाब/डबरी, टारबांध, डायवर्सन स्कीम, चेकडेम, स्टाॅपडेम आदि में पानी भरने के लिए आवश्यकता अनुसार उसके कैचमेंट एरिया में नहर नाली का निर्माण आउटलेट व इनलेट के साथ अनिवार्य रूप से नरेगा या अन्य योजना में या अभिशरण से कराया जावे। स्टाॅपडेम में जब नदी-नालों में पानी का बहाव रहता है तब ही अच्छी तरह बांधा जाए। साथ ही नदी-नालों में अस्थाई नाला बंधान एवं बोरी बंधान उपयुक्त समय पर गांव के सभी पारा, मोहल्ला में एक-एक बंधान श्रमदान की व्यवस्था में किया जाए।
जल संरक्षण के लिए रेनवाटर हार्वेस्टिंग जरूरी, कुओं का करें संरक्षण
श्री चुरेन्द्र ने निर्देश दिए कि कुओं के माध्यम से भूमिगत जलस्त्रोत का संरक्षण संभव है इसलिए ग्रामों/शहरों में जो भी पुराने कुॅंआ हैं, उसकी साफ-सफाई, संरक्षण व मरम्मत करवाएं। भी कुंओं को पाटें नहीं। शासकीय परिसर यथा-कार्यालय परिसर, छात्रावास, आश्रम, विद्यालय परिसर या अर्द्धशासकीय निकायों के परिसरों में पर्याप्त स्थान की उपलब्धता के आधार पर वैकल्पिक जल स्त्रोत की व्यवस्था बनाये रखने के लिए परिसरों में डबरी निर्माण, कुॅुआ निर्माण व सोंखता गढ्ढा का निर्माण, रेन वाॅटर हार्वेस्टिंग सिस्टम आदि अनिवार्यतः कराया जाए। साथ ही निजी व्यक्तियों के मकान परिसर, कोठार, बाड़ी-बखरी आदि में सोंखता गढ्ढा शत-प्रतिशत स्थान में परिवार के सदस्यों के श्रम व सहयोग से बनाया जाकर अधिक से अधिक जल धरती के नीचे लेे जाया जावे।
बारिश का पानी बचाने डबरी, तालाब और जलाशय का गहरीकरण
ग्रामीण एवं नगरीय क्षेत्रों में उपलब्ध जल ढांचों यथा डबरी, तालाब, टारबांध, जलाशयों आदि की जल भराव क्षमता बढ़ाने कैचमेंट का पानी इन ढांचों में शत-प्रतिशत भरने की व्यवस्था के साथ इन ढाचों का गहरीकरण, विस्तारीकण (नाली निर्माण) और इनके मेढ़पारों का सुदृढ़ीकरण हेतु विशेष पहल किया जावे। यदि इन जल ढाचों के कैचमेंट एरिया व कमांड क्षेत्रों में व जल भराव क्षेत्रों में कोई अतिक्रमण हो तो उसे अभियान में हटाने विशेष पहल कराने ग्राम सभा में निर्णय लिया जावे। गांवों में कन्टूर आधारित जो पहाड़ी पठारी क्षेत्र या ऊंचा क्षेत्र विद्यमान होता है, वहाॅ प्राकृतिक रूप से विकसित छोटे-छोटे नरवा, नाला को आपस में जोड़कर नहरनाली का निर्माण कर उस नहर नाली को आगे बढ़ाते हुए ऐसे फील्ड में ले जाये, जहाॅ गांव में बड़ा शासकीय भूमि हो, जहाॅ बड़ा तालाब बन सके, वहाॅ इस तरह बड़ा तालाब का निर्माण शत प्रतिशत महात्मा गांधी नरेगा योजना के तहत जिले में हर विकासखंड के यथा संभव हर गांव में कराया जावे। ऐसे कार्य कराने के लिए निश्चित तौर पर अतिक्रमण विरोधी दस्ता हर सेक्टर स्तर पर एसडीएम व तहसीलदार द्वारा गठित कराया जावे।
जल प्रबंधन समिति का गठन कर समुदाय को करें अभियान में शामिल जैविक खेती और हरियाली बढ़ाने करें प्रयास
श्री चुरेन्द्र ने कहा कि जल संरक्षण के लिए समुदाय की सहभागिता जरूरी है इसलिए हर गांव व नगरीय क्षेत्रों, में जल प्रबंधन समिति का गठन अनिवार्य रूप से करें। जिसमें अधिकारी और आम नागरिक शामिल हों। इस समिति के माध्यम से जल संरक्षण के कार्य संपादित करवाएं। उन्होंने कहा कि पर्यावरण संतुलन के लिए अधिक से अधिक पौध रोपण जरूरी है। इसलिए खाली शासकीय भूमि, नदी-नालों के किनारें अधिक से अधिक पौधें लगवाएं ताकि मिट्टी का कटाव रूके और पेड़ पौधों के जड़ों के माध्यम से पानी का स्तर बढ़े। खेती किसानी में परम्परागत गोबर खाद, जैविक एवं केचुआ खाद के इस्तेमाल को प्रोत्साहित करें। कीट नाशक के रूप में जैविक उत्पादों के इस्तेमाल से अच्छे परिणाम मिल रहे है। इन उपायों से हम जमीन को रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के प्रभाव से बचा सकते है। साथ ही गुणवत्ता युक्त ऑर्गनिक खाद्य सामग्री से अच्छा स्वास्थ्य भी प्राप्त कर सकते है।
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