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 लाकडाउन प्रथम चरण की वजह से पाटन की थमी सिंचाई योजनाएं हुईं आरंभ, 25 गांवों के निवासियों को होगा खरीफ में लाभ
26 करोड़ रुपए की लागत की हैं 9 योजनाएं, इनके पूरा होने से आगामी खरीफ सिंचाई में मिलेगा समुचित लाभ
नहर लाइनिंग, रिमाडलिंग और वियर हेड रेग्यूलरेटर के निर्माण के हो रहे हैं काम

दुर्ग : लाकडाउन की वजह से थमी जलसंसाधन विभाग की योजनाएं लाकडाउन के दूसरे चरण में आरंभ हो गई हैं। पाटन में ऐसी नौ योजनाओं पर काम आरंभ हो गया है। 26 करोड़ रुपए की लागत से बन रही इन योजनाएं में लगभग 25 गांवों के कृषकों को आगामी खरीफ फसल में लाभ मिलने की उम्मीद है। इन नौ योजनाओं में नहरों की लाइनिंग और रिमाडलिंग का कार्य शामिल है। जलसंसाधन विभाग के कार्यपालन अभियंता श्री बीजी तिवारी ने बताया कि लाकडाउन के प्रथम चरण समाप्त होने पर निर्माण कार्यों को आरंभ करने की अनुमति मिलते ही इन्हें आरंभ कर दिया गया है। इन पर तेजी से कार्य किया जा रहा है।
 
किन योजनाओं पर हो रहा कार्य- जिन योजनाओं पर कार्य हो रहा है। उनमें बेंदरी व्यपवर्तन नहर लाइनिंग कार्य शामिल है। इसकी निर्माण लागत एक करोड़ 95 लाख रुपए है। पतोरा माइनर का जीर्णोद्धार एवं लाइनिंग कार्य 2 करोड़ 81 लाख रुपए का है। अचानकपुर जलाशय योजना का जीर्णोद्धार एवं लाइनिंग कार्य 2 करोड़ 22 लाख रुपए का है। मुड़पार व्यपवर्तन योजना का जीर्णोद्धार एवं लाइनिंग कार्य एक करोड़ 48 लाख रुपए का है। बेंदरी माइनर नहर कार्य एवं लोहरसी माइनर का  रिमाडलिंग एवं लाइिंग कार्य 2 करोड़ 68 लाख रुपए का है। पुनईडीह माइनर का जीर्णोद्धार एवं लाइनिंग कार्य एक करोड़ 64 लाख रुपए का है। भाठागांव उदवहन सिंचाई योजना का विशेष मरम्मत एवं उन्नयन कार्य 5 करोड़ 51 लाख रुपए का है। इसी प्रकार मोखली व्यपवर्तन के वियर हेड रेग्यूलरेटर का नवीनीकरण एवं नहरों का सुदृढ़ीकरण 6 करोड़ 14 लाख रुपए का है। इन कार्यों के पूरा होने से खरीफ फसल लेने वाले नजदीकी गांवों के किसानों को काफी मदद मिलेगी।
 
समझें क्या फायदा है नहर लाइनिंग का- कच्ची नहर में पानी छोड़ने पर 65 प्रतिशत तक पानी का नुकसान हो जाता है। यदि नहर लाइनिंग बना दी जाए तो यह नुकसान केवल 30 प्रतिशत तक होता है। इस प्रकार 35 प्रतिशत तक पानी का नुकसान बचाया जा सकता है। रिमाडलिंग का कार्य फसलों के अनुरूप पानी की जरूरत बदलने पर अथवा सिंचाई के दायरे के अनुरूप किया जाता है। रिमाडलिंग के माध्यम से अधिकतम किसानों तक पानी का लाभ पहुंचाने की कोशिश की जाती है।

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