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महासमुंद : सफलता की कहानी मनरेगा श्रमिकों की मेहनत लाई रंग, पथरीली व चट्टानी भूमि हुई हरी-भरी, बदल गई तस्वीर

 महासमुंद : आईये, आपको आज एक ऐसे स्थान पर ले चलते हैं, जहाँ वन विभाग और पंचायत विभाग के परस्पर तालमेल और मनरेगा श्रमिकों की मेहनत ने पथरीली व चट्टानी भूमि की तस्वीर ही बदल दी है।

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एक दशक पहले तक तो यह कल्पना करना ही असम्भव था कि एक ऐसी पठारी भूमि, जो पूरी तरह से पत्थर-चट्टानयुक्त और वृक्षविहीन हो, वह कभी पेड़-पौधों से हरी-भरी भी होगी।लेकिन श्रमिकों की मेहनत रंग लाई।

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जोश, जुनून और जज्बा हो तो पत्थरों का सीना चीरकर भी पौधों की कोपलें उगाई जा सकती हैं...लक्ष्य के प्रति समर्पण और बदलाव की चाह से जिला मुख्यालय महासमुन्द से 08 किलोमीटर दूरी पर स्थित कौंदकेरा गाँव में वन विभाग ने पंचायत के सहयोग से और मनरेगा श्रमिकों की कड़ी मेहनत के बल-बूते इस तरह के असम्भव से दिखने वाले कार्य को अंजाम देकर एक उदाहरण सबके सामने रख दिया है।दरअसल महासमुन्द से तुमगाँव मुख्य मार्ग पर विकासखण्ड महासमुन्द के कौंदकेरा गाँव में 15 एकड़ की भूमि पत्थर और चट्टानयुक्त, वीरान व बंजर थी।


पहले यहाँ वन विभाग ने पीपल, बरगद व गूलर प्रजाति के पौधों का रोपण किया था। इसके लिए महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (महात्मा गांधी नरेगा) से 14 लाख 50 हजार रुपए स्वीकृत किए गए थे। दो साल तक वन विभाग के मार्गदर्शन में यहाँ 44 महिला और 93 पुरुष मनरेगा श्रमिकों की कड़ी मेहनत और देख-रेख के फलस्वरुप इन चट्टानों और पत्थरों के सीने पर रोपे गए पौधों ने अपनी हरियाली की छठा बिखेरनी शुरु कर दी थी।

हरियाली मुरझाए नहीं, इसके लिए पौधरोपण के बाद इनकी सिंचाई मटका के माध्यम से टपक पद्धति से की गई। पौधे बेहतर तरीके से बढ़े, इसके लिए उनके बीच लगभग 8 मीटर की दूरी रखी गई और समय-समय पर गोबर खाद, डी.ए.पी., यूरिया और सुपर फॉस्फेट भी डाला गया।

विभागों के परस्पर तालमेल और मनरेगा श्रमिकों के श्रम से यह प्रयास अब फलता-फूलता नजर आने लगा है। आज जहाँ यह पथरीली बंजर भूमि हरी-भरी हो गई है, वहीं इस कार्य से गाँव के 54 मनरेगा जॉब कार्डधारी परिवारों को 07 हजार 741 मानव दिवस का रोजगार भी प्राप्त हुआ। इसके लिए उन्हें 09 लाख 44 हजार 410 रुपए का मजदूरी भुगतान किया गया था।

यहाँ रोपे गए पौधे अब 10-15 फीट के हरे-भरे पेड़ बन गए हैं, जिन्हें देखकर आज पूरा गाँव खुश है। वन विभाग, पंचायत और ग्रामीणों को शायद इसी दिन का इंतजार था। सामूहिक प्रयास से यह परिक्षेत्र हरा-भरा होकर ऑक्सीजोन में बदल गया है। अब इसे देखने और यहाँ घूमने-फिरने आस-पास के लोग आने लगे हैं। यहाँ की हरियाली इस बात का सबूत दे रही है कि परस्पर तालमेल से असम्भव को सम्भव बनाया जा सकता है।

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