महासमुंद (आलेख) : कोरोना के सफर ने जीवन का मोल समझाया और बेहतरी से जीना सिखा दिया
कोरोना को बस में करने के लिए प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग ने किए हैं अच्छे इंतजाम
जांच, उपचार एवं दवाओं सहित आने-जाने और रहने-खाने की सुविधाएं भी निशुल्क हैं
कोरोना वायरस को लेकर फैली अफवाह और भ्रांतियों के कारण बढ़ रहा भय का माहौल
सुरक्षा के नियमों का शब्दशः पालन करते रहने से आपको जरा भी छू नहीं पाएगा कोरोना
बिना डरे हिम्मत से काम लंेगे तो पॉजिटिव से निगेटिव होना पक्का
महासमुंद : नववर्ष के प्रथम माह यानी जनवरी 2020 से देशभर में फूटा कोरोना का विस्फोट देखते ही देखते प्रदेश में भी कहर बरपाने लगा। जब, जिले में दर्जनों लोगों के इसकी चपेट में आने की खबरें आने लगीं, उस वक्त विकासखण्ड बागबाहरा के बारह ऐसे योद्धा उभर कर सामने आए, जिन्होंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था की, यह वायरस चुपके से उनके शरीर में भी घर कर जाएगा। 04 जून 2020 को, उनके कोविड-19 से संक्रमित होने की पुष्टि हुई तो मानों पैरों तले जमीन ही खिसक गई। मानवीय स्वभाव की घबराहट जरूर हुई, किंतु हौसला काबिले-तारीफ रहा, पल भर के लिए भी किसी ने भी हार नहीं मानी और सभी ने कोरोना को परास्त कर दिया।
उल्लेखनीय है कि जुनवानी दुर्ग स्थित शंकराचार्य मेडिकल कॉलेज के डेडिकेटेड कोविड हॉस्पिटल में रिफर होने से लेकर उपचार उपरांत तंदरुस्त हो जाने तक के सफर में जिला प्रशासन की तत्परता और चिकित्सकीय दल की तन्मयता रंग लाई। मरीजों ने भी भरपूर सहयोग किया और महज दस दिनों के भीतर ही शरीर से संक्रमण का कतरा-कतरा जड़ से निकाल फेंक दिया गया। वे अब, स्वस्थ होकर वापस महासमुंद लौट चुके हैं। जहां, सीने से लगाने वाले घर वालों को उनकी सात दिवसीय क्वारंटीन की अंतिम कड़ी पूरी होने का बेसब्री से इंतजार है।
विदित हो कि महासमुंद में कोरोना के पीड़ित बारह मरीज 14 जून 2020 को स्वस्थ होकर लौटे, इन्हें बागबाहरा के प्री मैट्रिक आदिवासी कन्या छात्रावास में दोबारा क्वारंटीन किया गया। मूलतः दस व्यक्तित्व बागबाहरा शहर के निवासी हैं। वहीं, ग्यारहवें ग्राम भदरसी और बारहवें नर्रा गांव के रहने वाले हैं। गौरतलब हो कि इनमें कोई जनप्रतिनिधी है, तो कोई स्वास्थ्य या फिर नगर पालिका से ताल्लुक रखता है, कुछ ऐसे भी हैं जो लंबे समय से संवेदनशील क्षेत्रों में बतौर स्वच्छता कमांडो कोरोना से दो-दो हाथ करते रहे हैं। सोशल डिस्टेंसिंग वाली इस अल्पकालिक गुफ्तगूं में उन्होंने आमजन की ओर राहत भरे स्वरों वीडियो संदेश प्रसारित किया कि अब वे पूरी तरी स्वस्थ हैं। संक्रमण का खतरा उनके शरीर से कोसों दूर है। यह नई जिंदगी के पहले कदम जैसा अहसास यह है, जो सबक देता है कि हम कोरोना से उतना ही डरें जितना जरूरी है, जरूरत से ज्यादा घबराएं भी नहीं। सरकारी व्यवस्थाओं पर भरोसा रखें और स्वास्थ्य के प्रति सजग रहते हुए स्वच्छता, सफाई एवं संक्रमण रोकथाम नियमावली का पालन कर एक-दूसरे को सुरक्षित रखने के लिए अनिवार्य दायित्वों का बखूबी निर्वहन करते रहें।
महामारी के प्रकोप में कोरोना वायरस नियंत्रण एवं रोकथाम के जिला दल ने निरंतर संपर्क बनाए रखा। मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. एसपी वारे के निर्देशानुसार जनसंपर्क प्रभारी असीम श्रीवास्तव उनसे मिलने पहुंचे। दो मीटर की दूरी पर हुई गुफ्तगूं में मरीजों ने अनुभव साझा करते हुए बताया कि इस दौरान उन्होंने क्या महसूस किया, वे कैसे रहे और कैसा उपचार मिला...
आईसोलेशन वार्ड तो वीआईपी रूम से भी बेहतर था
शासकीय सेवा प्रदाता उपचारित मरीज ने बताया कि आईसोलेशन वॉर्ड में प्राइवेट वॉर्ड के चका-चक वीआईपी रूम से अच्छी सुविधाएं थीं। मोटिवेशनल माहौल में संगीत सुनते हुए योग और व्यायाम का अभ्यास ने तनाव तो कम किया ही, ऊर्जा संचार भी बनाए रखा। सादा भोजन, प्रेरक किताबें और घरवालों से बात करने के लिए मोबाइल सहित न्यूज अपडेट, सब कुछ आम दिनचर्या की तरह ही रहा। पता ही नहीं चला कि वे कब स्वस्थ हो गए।
पहली रिपोर्ट निगेटिव आते ही हम रिलैक्स हो गए
स्थानीय जनप्रतिनिधि के रूप में सेवाएं देने वाले उपचारित मरीज ने कांटेक्ट ट्रेसिंग का समय याद कर बताया कि लोग दस तरह की बात कर दिग्भ्रमित कर रहे थे। एक दफा तो लगा कि पता नहीं लौटूंगा भी या नहीं। पर, यथार्थ बहुत अलग था, चिकित्सक दिन में दो बार जांच करते, नर्स हर 10 से 15 मिनट में माइक और स्पीकर के जरिए नाम लेकर हाल-चाल पूछतीं। उनके कहे शब्दों में भी मानो जादू था। इस बीच पहली रिपोर्ट के निगेटिव आते ही हम समझ गए कि अभी तो लंबा जीना है।
ज्यादा दवाएं नहीं खानी पड़तीं
स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े उपचारित मरीज के मुताबिक साथ रहने वाले सभी एसिमटमेटिक यानी लक्षण रहित मरीज थे। उपचार निशुल्क हुआ, हाइड्रॉक्सी क्लोरोक्वीन, विटामिन-सी, मल्टी-विटामिन और ओआरएस का घोल निर्धारित मात्रा में दिए गए। लोगों को इस भ्रम से भी बाहर निकलना चाहिए कि बहुत हाई डोज की एंटीबायोटिक्स लेनी ही पड़ती हैं। दरअसल, ऐसा सिमटमेटिक मलतब लक्षण वाले अतिगंभीर मरीजों के प्रकरण में बीमारी पर काबू पाने के लिए किया जाता है।
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