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बेमेतरा : सावधानी पूर्वक करें धान के कीट व्याधि एवं रोगों का उपचार

 कृषि विभाग ने जारी की सामयिक सलाह


बेमेतरा : जिले में चालू बारिश सीजन के दौरान अच्छी बारिश होने के कारण वर्तमान में खरीफ की सभी फसलें अच्छी स्थिति में हैं। धान की फसल में अच्छी वृद्धि हो रही है।  उप संचालक कृषि श्री एम.डी. मानकर ने किसानों को धान की फसल में पौध संरक्षण की सलाह दी है। उन्होंने कहा है कि धान की फसल में झुलसा रोग का प्रकोप हो सकता है।
 
इसका प्रकोप होने पर धान की पत्तियां ऊपर से सूखने लगती हैं। बाद में पत्तियां पीली और सफेद हो जाती हैं। ऐसे लक्षण दिखाई देने पर खेत का पानी निकाल दें तथा यूरिया खाद का प्रयोग फसल में न करें। झुलसा रोग की रोकथाम के लिए किसान  कॉपर आक्सीक्लोराइड तीन ग्राम प्रति लीटर अथवा स्ट्रेप्टोसाइक्लीन 25 ग्राम प्रति लीटर घोल बनाकर फसल में छिड़काव करें। इसके अलावा 20 किलोग्राम कच्चे गोबर को 100 लीटर पानी में घोल बनाकर फसल में छिड़काव करने से भी झुलसा रोग पर नियंत्रण होता है।

फसलों में कीटों का करें प्रबंधन -वर्तमान में धान में भूरा माहो व हरा माहो की शिकायत कुछ एक क्षेत्रों से प्राप्त हो रही है, निगरानी करते समय यदि इनकी संख्या भूरा माहो 5-10 माहो प्रति पौधा दिखाई दे तो अप्लाईड/बुफरोफेब्जीन 25 ए.सी. 1.25-1.25 मि.ली. प्रति 1 ली. पानी ( 250-300 मि.ली. प्रति एकड़ की दर से) छिड़काव कर सकते है। हरा माहो की शिकयत मिलने पर यदि इनकी संख्या 10-15 माहो प्रति पौधा दिखाई दे तो फुराडान 8-10 मि.ली. प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।
 
साथ ही धान फसल की विविधि अवस्थाओं में गंगई, तनाछेदक, माहो, चितरी, बंकी, गंधीबग एवं कटुआ इल्ली का प्रकोप होता है। कटुआ  इल्ली की संख्या 1इल्ली/पौधा होने पर डाईक्लोरोवास 80 ई.सी. 600 मि.ली./हेक्टेयर की दर से, पत्तीमोड़क (चितरी) की 1-2 पत्ती/पौधा होने पर फिपरोनल 5 एस.सी. 800 मि.ली./हेक्टेयर उपरोक्त दवाओं का 500 ली. पानी में घोल बनाकर शाम के समय में छिड़काव करना प्रभावकारी होता है। गंगई कीट थरहा अवस्था या कंसा अवस्था में धान की उत्पादकता में कमी लाता है, अतरू समय रहते ही नियंत्रण लाभकारी होता है। कार्बोफ्यूरान 3 जी. 33 किलो ग्राम या फोरेट 10 किलो ग्राम प्रति हेक्टेयर मात्रा में देना चाहिए।

         उप संचालक कृषि ने कहा है कि धान में इस समय सीथ ब्लाइट रोग का भी प्रकोप होता है। यह फफूंद से होने वाला रोग है। जमीन की सतह से जुड़े धान के पौधे पर गहरे भूरे धब्बे दिखाई देना इस रोग के लक्षण हैं। यह रोग धीरे- धीरे पूरे तने में फैल जाता है। धान के पौधे में फूल तथा फल बनने के समय इसका प्रकोप अधिक होता है। इसके नियंत्रण के लिए फफूंदनाशी दवा एजेक्सीस्ट्रोबिन 23 ग्राम प्रति लीटर का घोल अथवा हेक्साकोनाजोल पांच प्रतिशत का घोल का छिड़काव करें।

किसान धान में आभासी कंडवा रोग की रोकथाम के लिए टेबूकोनाजोल 25 प्रतिशत का घोल अथवा ट्राइसाइक्लाजोल 75 प्रतिशत के घोल का छिड़काव धान की फसल पर करें। किसानों को सलाह देते हुए कहा है कि धान की पुरानी पत्तियां अगर ऊपर से पीली-भूरी हो रही हैं तो फसल में पोटाश में कमी है। ऐसी दशा में एक किलोग्राम पोटाश खाद को 200 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।

             झुलसा रोग (ब्लास्ट) से प्रभावित पौधों में पत्तियों, बाली की गर्दन एवं तने की निचली गठानों पर प्रमुख रूप से दिखाई देता है। पत्तियों पर इस रोग के धब्बे देखे जा सकते है। प्रारंभिक अवस्था में निचली पत्तियों में हल्के बैंगनी रंग के छोटे धब्बे बनते हैं। जो बाद में धीरे-धीरे बढ़कर आंख के समान बीच में चैड़े व किनारे से सकरे हो जाते है। रोग के प्रकोप में  धान की बाली में सडन पैदा हो जाती है तथा उपज प्रभावित होती है, क्योंकि बाली टूटकर गिर जाती है। झुलसा रोग के निदान के लिए- ट्राईसाईक्लाजोल कवक नाशी का 6 ग्राम प्रति 10 लीटर दवा का छिड़काव 12-15 दिवस के अंदर करना चाहिए।

जीवणु जनित झुलसा रोग (बैक्टीरियल लीपब्लाईट) रोग के प्रारंभिक लक्षण पत्तियों पर रोपाई या बुवाई के 20-25 दिन बाद दिखाई देते है। रोग ग्रसित पौधे कमजोर हो जाते है और उनमें कंसे कम निकलते है। दाने पूरी तरह नहीं भरते और पैदावार कम हो जाती है। संतुलित उर्वरकों का उपयोग करना चाहिए।

नत्रजनयुक्त खादों का उपयोग निर्धारित मात्रा से अधिक नहीं करना चाहिए। रोग होने की दशा में पोटाश का उपयोग लाभकारी होता है। रोग होने की दशा में खेत से अनावश्यक पानी निकालते रहना चाहिए। तथा 8-10 किलो ग्राम की दर से पोटाश का छिड़काव करने से रोग नियत्रंण किया जा सकता है। शीथ विलगन रोग के लक्ष्य अधिकतर गभोट वाली अवस्था में दिखाई देते है। निचले हिस्से पर हल्के भूरे रंग के धब्बे बनते है जो भूरे रंग की परिधि से घिरे होते  है।

इस रोग के कारण बाली गभोट से बाहर नही आ पाती। इनमें दाने नहीं भरते व ग्रसित बाल पकने  तक सीधी खड़ी रहती है। गभोट अवस्था के समय हेक्साकोलाजोन (0.1 प्रतिशत) कार्बेन्डाजिम (0.1 प्रतिशत) या मैन्कोजेब (0.25 प्रतिशत) का छिड़काव लाभकारी है तथा पर्णच्छद झुलसा रोग के लिए खड़ी फसल में रोग प्रकोप होने पर हेक्साकोलाजोन कवकनाशी (0.1 प्रतिशत) का छिड़काव 10-12 दिन के अंतर से करें।

        सही देखभाल ही बचाव -फसलों की सही देखभाल ही बीमारी से उनका बचाव है। किसानों द्वारा फसलों की देखभाल में लापरवाही करने से धान में बीमारी का प्रभाव ज्यादा बढ़ जाता है। इससे फसल पूरी तरह से चैपट हो जाती है। जबकि फसलों में रोग आने पर उत्पादन में सीधा प्रभाव पड़ता है। अधिक जानकारी के लिए अपने क्षेत्र के कृषि विस्तार अधिकारी से संपर्क कर सकते हैं।

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