ब्रेकिंग न्यूज़

बेमेतरा : किसानो को गर्मी मे धान के बदले अन्य वैकल्पिक दलहन, तिलहन एवं मक्का की खेती करने का सलाह
बेमेतरा : कृषि विभाग के अधिकारियों ने किसानों को रबी मौसम मे धान की जगह अन्य वैकल्पिक फसलों दलहन, तिलहन और मक्के की खेती करने की सलाह दी है। कृषि विभाग के अधिकारियों ने कहा कि बेमेतरा जिला वर्षा अश्रित क्षेत्र के अन्तर्गत आता है।
No description available.
इसका आशय है कि खेती के लिए जिले का बहुताय रकबा मानसून के वर्षा पर निर्भर है। इन परिस्थियों मे जिले मे अच्छी वर्षा न होने से भू-जल स्तर वर्षा दर वर्ष नीचे जा रहा है, जिसके कारण गर्मी मे ग्रामीण क्षेत्रों मे पेयजल की समस्या उत्पन्न होती है। परिस्थितियां भयावह होने से पशुओं एवं मवेशियों के लिए भी पेयजल की समस्या हो रही है। बेमेतरा जिला मेकल पर्वत के वृष्टि छाया मे आता है, इस कारण जिले मे बारिश भी कम होती है।
     
      भू-जल स्तर नीचे जाने के अनेक कारणों मे से एक प्रमुख कारण यह भी है कि खरीफ मे धान की खेती होने के बाद भी जिले मे लगभग 1.7 हजार हेक्टेयर क्षेत्र मे गर्मी मे धान की खेती की जाती है। गर्मी में सिंचाई पूरी तरह नलकूपों से की जाती है। एक किलोग्राम धान उत्पादन मे लगभग 3-5 हजार लीटर पानी की आवश्यकता होती है।

इस आकलन के अनुसार जितने पानी मे ग्रीष्मकालीन धान की खेती की जाती है उतने पानी से बहुत से ग्रामीण परिवारों एवं पशुओं के लिए पेयजल की आपूर्ति की जा सकती है।  धान के एक हेक्टेयर रकबे मे लगने वाले पानी से 3-4 हेक्टेयर में गेंहू तथा दलहन, तिलहन फसलें लेकर आसानी से लेकर लाभ प्राप्त किया जा सकता है।

      कृषि विभाग के अधिकारियों ने बताया कि टेस्ट ग्राउण्ड वाटर बोर्ड के अनुसार वर्ष 2019-20 मे जिले के बेमेतरा एवं नवागढ़ विकासखण्ड को सेमीक्रिटिकल जोन मे शामिल किया गया है, साथ ही अन्य अन्य विकासखण्डों मे भी भू-जल का स्तर लगातार नीचे जा रहा है, जो हमारे लिये आने वाले जल संकट का सूचक है।

धान के बाद लगातार धान फसल लेने से मिट्टी की भौतिक संरचना पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। साथ ही क्षेत्र मे एक ही फसल के हानिकारक कीड़े एवं बीमारियों की संख्या बढ़ती है, जिसके उपचार के लिए किसानों द्वारा अंधाधुंध रासायनिक उर्वरको एवं कीटनाशक दवाईयों का उपयोग किया जाता है। इससे खेती की लागत मे बढ़ोत्तरी होती है। पर्यावरण पर भी स्पष्ट प्रभाव पड़ता है। दलहनी एवं तिलहनी फसल लेने से खेती की जमीन की उर्वरता बढ़ती है। जो हमारे किसानो के हित मे है।
     
       अधिकारियों ने बताया कि ग्रीष्मकालीन धान के बदले कम पानी मे आसानी से गेंहू मक्का, मूंग, उड़द, सरसों, चना की फसल ली जा सकती है। जिनके बाजार मूल्य भी धान से अधिक है। दलहन, तिलहन फसलों से अच्छा उम्पादन प्राप्त करने तथा दलहन तिलहन फसलों के विस्तार के लिए राज्य शासन की योजनाओं का लाभ लेने क्षेत्रीय ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारियों या कृषि विज्ञान केन्द्र ढोलिया बेमेतरा से संपर्क किया जा सकता है। अधिकारियों ने किसानो से अपील करते हुए कहा है कि ग्रीष्मकालीन धान की खेती के स्थान पर वैकल्पिक फसलों का चयन कर पेयजल की समस्या से बचाव मे सहयोग करें।

Related Post

Leave A Comment

छत्तीसगढ़

Facebook