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शासकीय प्राथमिक शाला अकोला में परंपरा, पर्यावरण और नेतृत्व के संग मनाया गया हरेली पर्व

द न्यूज़ इंडिया समाचार सेवा

बेमेतरा : छत्तीसगढ़ी संस्कृति के प्रथम त्यौहार हरेली का पर्व साजा विकासखंड अंतर्गत शासकीय प्राथमिक शाला अकोला में बड़े ही धूमधाम, उत्साह एवं सांस्कृतिक गरिमा के साथ मनाया गया। पूरे विद्यालय परिसर को हरियाली से सजाया गया और छात्र-छात्राएं एवं शिक्षकगण हरे रंग की पारंपरिक वेशभूषा में नजर आए। कार्यक्रम की शुरुआत प्रधान पाठिका श्रीमती हिम कल्याणी सिन्हा द्वारा हरेली पर्व के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व को बताते हुए कहा कि हरेली हमारे छत्तीसगढ़ का पहला त्योहार है, जो कृषि, पर्यावरण, परंपरा और समृद्धि का प्रतीक है। सावन मास की अमावस्या को यह पर्व वर्षा ऋतु के आगमन और नई फसल के स्वागत में मनाया जाता है। यह त्योहार किसान और प्रकृति के बीच आत्मीय संबंध को दर्शाता है।

इस अवसर पर किसानों द्वारा उपयोग में लाए जाने वाले पारंपरिक कृषि औजारों जैसे नागर, कुदाली, रापा, हसिया, टंगिया आदि की पूजा की गई। बच्चों ने भी गेड़ी चढ़कर छत्तीसगढ़ी पारंपरा का जीवंत प्रदर्शन किया। हरेली को गेड़ी त्यौहार भी कहा जाता है क्योंकि इस दिन बच्चे गेड़ी पर चढ़कर उत्सव का आनंद उठाते हैं। शिक्षिका श्रीमती हेमलता ठाकुर ने बच्चों को नीम वृक्ष के औषधीय गुणों की जानकारी दी और पर्यावरण की रक्षा में वृक्षों की भूमिका को सरल भाषा में समझाया। इस अवसर पर बच्चों ने तुलसी, नीम, नींबू सहित कई उपयोगी पौधों का रोपण कर हरियाली को बढ़ावा दिया। बच्चों ने छत्तीसगढ़ी हरेली गीतों पर सांस्कृतिक प्रस्तुतियां भी दीं, जिससे गांव की मिट्टी की सोंधी खुशबू पूरे वातावरण में फैल गई।कार्यक्रम के अंत में सभी बच्चों को जलेबी वितरित कर पारंपरिक मिठास के साथ पर्व को पूर्णता प्रदान की गई।

बाल संसद का गठन: नेतृत्व विकास की ओर एक कदम

इस अवसर पर विद्यालय में बाल संसद का गठन भी किया गया, जिसमें बच्चों को विभिन्न जिम्मेदारियों का दायित्व सौंपा गया। बच्चों ने गुलाल लगाकर नवगठित बाल संसद के पदाधिकारियों का स्वागत किया और नेतृत्व, जिम्मेदारी और अनुशासन के साथ कार्य करने का संकल्प लिया। हरेली पर्व के माध्यम से शासकीय प्राथमिक शाला अकोला ने न सिर्फ संस्कृति और परंपरा को जीवंत किया, बल्कि पर्यावरण चेतना और बाल नेतृत्व विकास की मिसाल भी प्रस्तुत की।
 

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